अमेरिका में ‘सीनेट इंडिया कॉकस’ के सह-अध्यक्ष और अमेरिकी सांसद मार्क वार्नर ने कश्मीर के हालात पर चिंता जताते हुए भारत सरकार से अपील की है कि वह प्रेस, सूचना एवं राजनीतिक भागीदारी की आज़ादी देकर लोकतांत्रिक सिद्धांतों का पालन करे.
![Srinagar: Security personnel stand guard during restrictions and shutdown, in Srinagar, Thursday, Sept. 26, 2019. Normal life remained affected on 53rd consecutive day since 5th August due to restrictions and shutdown, after centre abrogated Article 370 and bifurcated Jammu and Kashmir into two union territories. (PTI Photo/S. Irfan)(PTI9_26_2019_000082B)](https://hindi.thewire.in/wp-content/uploads/2019/09/Jammu-Kashmir-PTI9_26_2019_000082B.jpg)
संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस के एक प्रवक्ता ने कश्मीर के हालात पर चिंता जताते हुए कहा कि भारत में संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के कुछ कर्मी कश्मीर में काम कर रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख के प्रवक्ता स्टीफेन दुजारिक ने मंगलवार को संवाददाताओं से नियमित बातचीत में कहा, ‘हम कश्मीर के हालात पर यकीनन चिंतित हैं और यह चिंता लगातार बनी हुई है. मेरा मानना है कि हमारे कुछ मानवीय सहायताकर्मी…भारत में संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के हमारे कुछ कर्मी वहां काम कर पा रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि उन्हें इस पर अभी और जानकारी मिलनी बाकी है. प्रवक्ता से ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’की एक रिपोर्ट के बारे में पूछा गया था कि कश्मीर में संचार पूरी तरह से बंद होने के कारण वहां के लोगों को चिकित्सकीय सहायता नहीं मिल पा रही है. ऐसे हालात में संयुक्त राष्ट्र जरूरतमंदों की मदद के लिए क्या करने जा रहा है.
एक दिन पहले ही ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’की रिपोर्ट पर ही प्रतिक्रिया देते हुए जम्मू कश्मीर की स्थिति पर अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की समिति ने कहा था कि संचार माध्यमों पर पाबंदी लगाने से विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है और समय आ गया है कि भारत इन प्रतिबंधों को हटा ले.
वहीं, अमेरिका में ‘सीनेट इंडिया कॉकस’ के सह-अध्यक्ष एवं डेमोक्रेटिक सीनेटर मार्क वार्नर ने मंगलवार को कहा कि वह जम्मू-कश्मीर में लोगों की आवाजाही और संचार पर लगे ‘प्रतिबंधों के कारण व्यथित’ हैं. वार्नर ने भारत सरकार से अपील की कि वह प्रेस, सूचना एवं राजनीतिक भागीदारी की आजादी देकर लोकतांत्रिक सिद्धांतों का पालन करे.
सीनेटर वार्नर ने ट्वीट किया, ‘मैं इस बात को समझता हूं कि भारत की सुरक्षा संबंधी चिंताएं जायज हैं, लेकिन मैं जम्मू-कश्मीर में संचार एवं लोगों की आवाजाही पर प्रतिबंधों से व्यथित हूं.’ उन्होंने कहा, ‘मैं उम्मीद करता हूं कि भारत प्रेस, सूचना एवं राजनीतिक भागीदारी की स्वतंत्रता देकर लोकतांत्रिक सिद्धांतों का पालन करेगा.’
बता दें, जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त किए जाने और जम्मू कश्मीर तथा लद्दाख को दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने की घोषणा केंद्र सरकार ने पांच अगस्त को की थी. इसके बाद से कश्मीर भर में कड़ी पाबंदियां लगा दी गई थीं.
While I understand India has legitimate security concerns, I am disturbed by its restrictions on communications and movement within Jammu and Kashmir. I hope India will live up to its democratic principles by allowing freedom of press, information, and political participation. https://t.co/5xlWTE6ANu
— Mark Warner (@MarkWarner) October 8, 2019
वार्नर का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वे कई वर्षों से द्विदलीय सीनेट इंडिया कॉकस के डेमोक्रेट सह-अध्यक्ष रहे हैं. इंडिया कॉकस 15 साल पहले अमेरिकी सीनेट में स्थापित पहला देश-विशिष्ट कॉकस है.
वार्नर भारत के एक मजबूत समर्थन रहे हैं और वे सीनेट में भारत के पक्ष में कई विधेयकों और प्रस्तावों को रख चुके हैं.
साल 2011 और 2013 में, उन्होंने दीवाली के ऐतिहासिक महत्व को पहचानते हुए सीनेट में एक प्रस्ताव पेश किया था. इस साल महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर सीनेट में रखे जाने वाले एक प्रस्ताव के तीन सह-प्रायोजकों में से वे एक थे.
अपने इस बयान के साथ ही वार्नर अमेरिकी सांसदों की उस बढ़ती हुई सूची में शामिल हो गए हैं, जिन्होंने भारत से दो महीने पुराने प्रतिबंधों को हटाने का अनुरोध किया है. हालांकि, उन्होंने अनुच्छेद 370 को खत्म करने को लेकर कोई सवाल नहीं उठाया.
इससे पहले अमेरिकी सांसद क्रिस वान हालेन कश्मीर के हालात देखने के लिए वहां जाना चाहते थे. हालांकि, भारत सरकार ने उन्हें वहां जाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था.
हालांकि, कश्मीर यात्रा की मंजूरी न मिलने के बावजूद हालेन भारत आए और उन्होंने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर सहित भारत के कई अधिकारियों और नागरिक समाज के लोगों से मुलाकात की थी.
इसके बाद हालेन, अमेरिकी सांसद मैगी हसन और अमेरिकी उप राजदूत पाल जोंस एक उच्चस्तरीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल लेकर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के दौरे पर गए और पाक अधिकृत कश्मीर के नेता सरदार मसूद खान और राजा फारूक हैदर से मुलाकात की.
वहीं, 26 सितंबर को, सीनेट की विनियोजन समिति की उपसमिति ने विदेश विभाग और विदेशी कार्यों के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्त पोषण पर एक प्रमुख कानून वाली रिपोर्ट में ‘कश्मीर में मानवीय संकट‘ का उल्लेख किया था.
रिपोर्ट में भारत से संचार पाबंदी, सुरक्षा प्रतिबंधों और रिहाई बंदियों को हटाने के लिए कहा गया. रिपोर्ट में ये बातें जोड़ने का प्रस्ताव डेमोक्रेट सांसद लेकर आए थे और उसे समिति के सभी सदस्यों से द्विदलीय समर्थन मिला था.
इससे पहले बीते महीने अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक नेताओं को हिरासत में लेने और संचार प्रतिबंध लगाए जाने के बाद बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में लेने पर चिंता व्यक्त करते हुए भारत से मानवाधिकारों का सम्मान करने का अनुरोध किया था.
अमेरिका ने भारतीय अधिकारियों से राज्य के स्थानीय नेताओं से राजनीतिक बातचीत शुरू करने और जल्द से जल्द चुनाव कराने को भी कहा था.
इसके बाद कश्मीर में मानवाधिकार स्थिति को लेकर एक भारतीय-अमेरिकी महिला सांसद प्रमिला जयपाल सहित दो अमेरिकी सांसदों ने चिंता जाहिर करते हुए विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ से अपील की थी कि वह कश्मीर में संचार माध्यमों को तत्काल बहाल करने और हिरासत में लिए गए सभी लोगों को छोड़ने के लिए भारत सरकार पर दबाव डालें.
इसके साथ ही राष्ट्रपति पद के दो डेमोक्रेट उम्मीदवारों बर्नी सैंडर्स और एलिजाबेथ वारेन ने भी कश्मीर की स्थिति और प्रतिबंधों को हटाने की आवश्यकता के बारे में अपनी चिंताओं को व्यक्त किया है. एक अन्य उम्मीदवार कमला हैरिस ने कहा था कि कश्मीरियों को याद दिलाना ज़रूरी है कि वे दुनिया में अकेले नहीं हैं. बता दें कि, हैरिस की मां एक भारतीय-अमेरिकी थीं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)