इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद को मिला शांति का नोबेल

नोबेल कमेटी की ओर से कहा गया कि अबी अहमद को शांति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग हासिल करने की उनकी कोशिश और ख़ासकर पड़ोसी इरिट्रिया के साथ सीमा संघर्ष के समाधान के लिए उनकी निर्णायक पहल को लेकर यह सम्मान दिया गया है.

इथियोपिया के प्रधानमंत्री अली अहमद. (फोटो: रॉयटर्स)

नोबेल कमेटी की ओर से कहा गया कि अबी अहमद को शांति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग हासिल करने की उनकी कोशिश और ख़ासकर पड़ोसी इरिट्रिया के साथ सीमा संघर्ष के समाधान के लिए उनकी निर्णायक पहल को लेकर यह सम्मान दिया गया है.

इथियोपिया के प्रधानमंत्री अली अहमद. (फोटो: रॉयटर्स)
इथियोपिया के प्रधानमंत्री अली अहमद. (फोटो: रॉयटर्स)

ओस्लो: दूरदर्शी और सुधारक बताए जाने वाले इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद को पड़ोसी देश इरिट्रिया के साथ लंबे समय से चले आ रहे टकराव को दूर करने के लिए उनके द्वारा किए गए प्रयासों को लेकर शुक्रवार को शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया.

नोबेल कमेटी ने कहा कि अबी को ‘शांति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग हासिल करने की उनकी कोशिश और खासकर पड़ोसी इरिट्रिया के साथ सीमा संघर्ष के समाधान के लिए उनकी निर्णायक पहल को लेकर यह सम्मान दिया गया है.

यह पुरस्कार अफ्रीका के सबसे कम उम्र के इस नेता के लिए उत्साहवर्धक कदम है. हालांकि अभी उन्हें मई 2020 के संसदीय चुनाव से पहले अंतर-सामुदायिक हिंसा की चिंता भी है.

अबी ने फोन कर नोबेल कमेटी से कहा, ‘जैसे मैंने यह खबर सुनी, मैं बहुत रोमांचित हो गया, मैं आभारी हूं.’

यह बातचीत नोबेल पुरस्कार की वेबसाइट पर डाली गई है.

अबी ने कहा, ‘यह अफ्रीका और इथियोपिया को दिया गया पुरस्कार है.’ उन्होंने उम्मीद जताई कि इससे अन्य अफ्रीकी नेताओं को इस बात की प्रेरणा मिलेगी कि ‘शांति स्थापित करने की प्रक्रिया पर काम करना संभव’ है.

अफ्रीका के सबसे कम उम्र के नेता 43 वर्षीय अबी ने पिछले साल अप्रैल में सत्ता में आने के बाद इरीट्रिया के साथ एक ऐतिहासिक तालमेल स्थापित किया था.

पद संभालते ही अबी उन नीतियों पर सक्रिय हो गए, जिनमें हॉर्न ऑफ अफ्रीका (उत्तर-पूर्व अफ्रीका प्रायद्वीप) के इस देश में सालों से घरेलू अशांति के बाद समाज में बहुत बड़ा बदलाव लाने और उसकी सीमा से परे चीजों को नया रूप देने जैसे काम शामिल हैं.

हॉर्न ऑफ अफ्रीका उत्तर पूर्व अफ्रीका प्रायद्वीप है. इस क्षेत्र में चार देश- जिबूती, इरिट्रिया, इथियोपिया और सोमालिया आते हैं.

इरिट्रिया की राजधानी अस्मारा में नौ जुलाई, 2018 को ऐतिहासिक बैठक के बाद अबी और इरिट्रियाई राष्ट्रपति इसैआस अफवेरकी ने दोनों देशों के बीच 20 सालों के गतिरोध को औपचारिक रूप से समाप्त किया जो 1998-2000 के सीमा संघर्ष से शुरू हुआ था.

अबी ने जेल से बागियों को रिहा किया, सरकार की नृशंसता के लिए माफी मांगी और निर्वासन में रह रहे सशस्त्र संगठनों का स्वागत किया. इसके अलावा उन्होंने केन्या और सोमालिया के बीच एक समुद्री क्षेत्र विवाद में मध्यस्थता करने में मदद की. साथ ही सूडान और दक्षिण सूडान के नेताओं को बातचीत के लिए एक साथ लाने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा कि उनके कदमों से हिंसा से प्रभावित अफ्रीका में आशा जगी है. उन्होंने कहा, ‘मैंने अक्सर कहा है कि उम्मीद की बयार अफ्रीका में बहुत तेजी से बह रही है. प्रधानमंत्री अबी अहमद मुख्य कारणों में एक कारण हैं.’

अबी अहमद को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना गर्व की बात: प्रधानमंत्री कार्यालय इथियोपिया

अदीस अबाबा: इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद के कार्यालय ने शुक्रवार को कहा कि देश उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चुने जाने पर गर्व महसूस करता है और यह देश में सुधार लाने एवं इरिट्रिया के साथ शांति कायम करने के प्रयासों का सबूत है.

अहमद को इस पुरस्कार के लिए चुने जाने के बाद उनके कार्यालय ने ट्वीट किया, ‘हम बतौर राष्ट्र गर्व महसूस करते हैं.’

उनके कार्यालय ने यह कहते हुए इस फैसले की प्रशंसा की, ‘यह एकता, सहयोग और सह-अस्तित्व, जिनकी प्रधानमंत्री निरंतर वकालत करते रहे हैं, का कालातीत सबूत है.’

बयान में कहा गया है, ‘अप्रैल 2018 में अबी अहमद ने राजनीतिक नेतृत्व संभालने के बाद से उन्होंने शांति, क्षमादान और मेल-मिलाप को अपने प्रशासन का नीतिगत अंग बनाया है.’

बयान में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर हजारों राजनीतिक बंदियों की रिहाई, मीडिया निकायों एवं राजनीतिक दलों को क्षमादान एवं शांतिपूर्ण संवाद और राजनीतिक दलों के लिए दायरे का विस्तार… कुछ उल्लेखनीय मील के पत्थर हैं.

बयान के अनुसार, क्षेत्रीय स्तर पर इथियोपिया और इरिट्रिया के बीच दो दशक से जारी गतिरोध के खत्म होने से दोनों देशों के बीच संभावनाओं का नया आयाम पैदा हुआ है.

हालांकि अबी के शांति प्रयासों के बावजूद सीमांकन जैसे अहम मुद्दों पर उल्लेखनीय प्रगति नहीं होने के कारण इरिट्रिया करार का महत्व कमतर हुआ है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)