भीमा कोरेगांव: सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा की गिरफ्तारी से संरक्षण की अवधि चार सप्ताह बढ़ाई

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में महाराष्ट्र सरकार के वकील ने जब मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को और अंतरिम संरक्षण दिए जाने का विरोध किया तो सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि उन्होंने एक साल से ज्यादा समय तक उनसे पूछताछ क्यों नहीं की.

गौतम नवलखा (फोटो: यूट्यूब)

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में महाराष्ट्र सरकार के वकील ने जब मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को और अंतरिम संरक्षण दिए जाने का विरोध किया तो सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि उन्होंने एक साल से ज्यादा समय तक उनसे पूछताछ क्यों नहीं की.

गौतम नवलखा (फोटो: यूट्यूब)
गौतम नवलखा (फोटो: यूट्यूब)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को गिरफ्तारी से प्राप्त अंतरिम संरक्षण की अवधि मंगलवार चार सप्ताह के लिए बढ़ा दी. जस्टिस अरूण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने गौतम नवलखा से कहा कि इस मामले में गिरफ्तारी से पहले जमानत के लिए वह संबंधित अदालत में जायें.

महाराष्ट्र सरकार के वकील ने जब नवलखा को और अंतरिम संरक्षण दिए जाने का विरोध किया तो पीठ ने सवाल किया कि उन्होंने एक साल से ज्यादा समय तक उनसे पूछताछ क्यों नहीं की. शीर्ष अदालत ने चार अक्टूबर को नवलखा को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण की अवधि 15 दिन के लिए बढ़ाई थी.

इस मामले में पिछली तारीख पर सुनवाई के दौरान नवलखा के वकील ने कहा था कि वह पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) के सचिव हैं और उन्होंने हमेशा ही हिंसा की निंदा की है. पीठ ने नवलखा से जानना चाहा था कि उन्होंने इस मामले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत अदालत से अग्रिम जमानत के लिए अनुरोध क्यों नहीं किया.

इस पर नवलखा के वकील ने कहा था कि वह अग्रिम जमानत के लिए अदालत जा सकते हैं लेकिन शीर्ष अदालत को उन्हें अंतरिम संरक्षण प्रदान करना चाहिए जो पिछले एक साल से जारी है.

न्यायालय के एक सवाल के जवाब में महाराष्ट्र सरकार के वकील ने पीठ को बताया था कि इस मामले में 28 व्यक्तियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया है. इनमें से 15 आरोपी न्यायिक हिरासत में हैं.

नवलखा के वकील ने पीठ को बताया था कि उनके मुवक्किल के खिलाफ अभी आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है.

बंबई हाईकोर्ट ने 13 सितंबर को गौतम नवलखा के खिलाफ माओवादियों से संपर्क रखने के आरोप में दर्ज प्राथमिकी निरस्त करने से इंकार कर दिया था. अदालत ने कहा था कि पहली नजर में उनके खिलाफ मामले में दम लगता है.

पुलिस ने 31 दिसंबर, 2017 को ऐलगार परिषद के बाद भीमा कोरेगांव में हुयी हिंसा की घटना के सिलसिले में जनवरी, 2018 में गौतम नवलखा और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया था. पुलिस का आरोप है कि नवलखा और अन्य आरोपियों के माओवादियों से संपर्क हैं और वे सरकार को अपदस्थ करने के लिए काम कर रहे हैं.

पुलिस ने नवलखा के साथ ही वारवरा राव, अरूण फरेरा, वर्णन गोन्साल्वेज और सुधा भारद्वाज भी इस मामले में आरोपी हैं. इन सभी के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधयां (रोकथाम) कानून और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत प्राथमामला दर्ज किया गया है.

बता दें कि इससे पहले नवलखा की याचिका पर सुनवाई करने से प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई सहित सुप्रीम कोर्ट के कुल पांच जज नवलखा की याचिका पर सुनवाई से अलग हो गए थे. हालांकि, किसी भी जज इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग करने का कोई कारण नहीं बताया.

वहीं, इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को भीमा कोरेगांव मामले में सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वर्णन गोंसाल्विस की जमानत याचिका ख़ारिज कर दी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)