सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को छोड़कर मामले के अन्य मुस्लिम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में बयान दाखिल कर कहा है कि वे उन प्रस्तावों को स्वीकार नहीं करते हैं, जो मीडिया में लीक हुए हैं.
नई दिल्ली: बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मामले में सामने आये सुलहनामे से खुद अलग करते हुए सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को छोड़कर सभी मुस्लिम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में अपना बयान दाखिल कर कहा है कि उन्होंने विवादित जमीन से अपना दावा वापस नहीं लिया है.
सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को छोड़कर मामले के सभी मुस्लिम पक्षकारों ने एक बयान जारी कर कहा है कि वे बोर्ड द्वारा प्रस्तावित सुलहनामे का समर्थन नहीं करते हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि ‘मध्यस्थता समिति के प्रयास उनका प्रतिनिधित्व नहीं करते.’
उनके बयान में कहा गया है, ‘ऐसी परिस्थिति में किसी मध्यस्थता को स्वीकार करना मुश्किल है, खासकर तब जब मुख्य हिंदू पक्षकार खुले तौर पर कह चुके हैं कि वे किसी तरह के समझौते के लिए तैयार नहीं हैं, और मुस्लिम याचिकाकर्ताओं ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वे ऐसा नहीं चाहते.’
अदालत में यह बयान सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील शहीद रिज़वी के अलावा सभी मुस्लिम पक्षकारों के वकील- एजाज़ मकबूल, शकील अहमद सईद, एमआर शमशाद, इरशाद अहमद और फ़ुजैल अहमद द्वारा दाखिल किया गया है.
Advocate on Record Ejaz Maqbool,one of the advocates for the Muslim organisations in the #Ayodhya case, refutes media reports on a settlement before the mediation panel.
"The recent attempts before the Mediation Committee were not representative", says AoR Maqbool pic.twitter.com/z7RCAbibGL
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) October 18, 2019
इन पक्षकारों ने सुलहनामे के प्रस्ताव के बारे में आई मीडिया रिपोर्ट्स पर भी सवाल उठाया और कहा कि ‘इस खबर को प्रेस में या तो मध्यस्थता समिति या फिर बताई गयी मध्यस्थता कार्यवाही का हिस्सा रहे किसी व्यक्ति या सदस्य द्वारा ही लीक किया गया है. (इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस तरह की जानकारी लीक करना सुप्रीम कोर्ट के उन आदेशों का पूर्ण उल्लंघन है, जहां शीर्ष अदालत ने कहा है कि ऐसी कार्यवाही गोपनीय रहनी चाहिए.)’
बयान में इस बात की भी पुष्टि की गई है कि मध्यस्थता के दौरान सिर्फ कुछ लोगों ने ही हिस्सा लिया था, जिसमें निर्वाणी अखाड़ा के धर्मदास, सुन्नी वक्फ बोर्ड के जुफर फारूकी और हिंदू महासभा के चक्रपाणि शामिल थे.
उन्होंने यह भी कहा कि मध्यस्थता होना काफी मुश्किल था क्योंकि पक्षकारों ने खुले तौर पर कह दिया था कि वे किसी सुलहनामे के लिए तैयार नहीं है.
बता दें कि बुधवार 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में चल रही इस मामले की सुनवाई के आखिरी दिन द वायर ने बताया था कि इस मामले के प्रमुख मुस्लिम पक्षकार सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने संवैधानिक पीठ को सुलहनामे के बारे में बताया था कि अगर केंद्र द्वारा उनकी कुछ शर्तें मानी जाती हैं, तो वे मामले में अपनी अपील अपनी वापस ले सकते हैं.
इस सुलहनामे में भारत की सभी मस्जिदों की पुख्ता सुरक्षा, अयोध्या की 22 मस्जिदों के पुनर्निर्माण, बाबरी मस्जिद के एवज में किसी और जगह पर मस्जिद बनाने की इजाज़त देने की बात कही गई है. साथ ही, वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षण वाली कुछ ऐतिहासिक मस्जिदों में इबादत की संभावना की बात भी की गई है.
अब इस मामले के अन्य सभी मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि यह प्रस्ताव उन्हें स्वीकार नहीं है. उन्होंने कहा, ‘… हम सभी याचिकाकर्ता सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यह पूरी तरह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम उस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करते हैं जिसे मीडिया में लीक किया गया है, न ही वह प्रक्रिया जिसके द्वारा मध्यस्थता हुई है और न ही जिस तरीके से दावे को वापस लेने के लिए समझौते का सुझाव दिया गया है.’
द वायर को विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के सुलहनामे को तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति के जरिए दाखिल किया है और कई हिंदू पक्षकारों ने इस सुलहनामे पर दस्तखत किए हैं. विश्व हिंदू परिषद समर्थित रामजन्मभूमि न्यास ने सुलहनामे की शर्तें नहीं मानी हैं.