मोदी सरकार ने संप्रग की परियोजनाओं का सिर्फ उद्घाटन करने या नाम बदलने का काम किया: शिवसेना

पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में कहा गया कि नोटबंदी ने औद्योगिक गतिविधियों में मंदी ला दी है और आईटी क्षेत्र में इससे बड़े स्तर पर रोज़गार में कमी हुई.

पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में कहा गया कि नोटबंदी ने औद्योगिक गतिविधियों में मंदी ला दी है और आईटी क्षेत्र में इससे बड़े स्तर पर रोज़गार में कमी हुई.

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मुंबई: भाजपा की अहम सहयोगी शिवसेना ने सोमवार को कहा कि मोदी सरकार ने पूर्व की संप्रग सरकार द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं का सिर्फ उद्घाटन करने या उनका नाम बदलने का ही काम किया है. सरकार ने अपने तीन साल के शासन में नोटबंदी को छोड़कर कुछ भी उपलब्धि हासिल नहीं की है.

राजग सरकार की घटक शिवसेना ने यह भी सवाल उठाया कि उसके तीन साल पूरे होने पर मनाए गए जश्न में क्या वे आम आदमी और किसान भी शामिल थे, जो नोटबंदी की मार सबसे ज़्यादा झेलने वाले लोगों में थे.

शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे एक संपादकीय में कहा गया कि नोटबंदी के अलावा सरकार ने कुछ भी नया नहीं किया.

असम में भूपेन हज़ारिका ढोला-सदिया पुल और जम्मू-कश्मीर में चेनानी-नाशरी सुरंग का उदाहरण देते हुए संपादकीय में कहा गया, ‘कुछ अहम और बड़ी परियोजनाओं की शुरुआत पिछली सरकार ने की थी और उनके उद्घाटन और नाम बदलने मात्र का काम पूरे ज़ोर-शोर से किया गया.’

पार्टी ने कहा कि बड़े नोटों को बंद कर देने के मोदी सरकार के मजबूत और महत्वाकांक्षी क़दम ने औद्योगिक गतिविधियों में मंदी ला दी है और आईटी क्षेत्र में इससे बड़े स्तर पर रोज़गार में कमी हुई.

असली उत्सव; किसान ठीक है क्या? नाम के शीर्षक से लिखी गई संपादकीय में कहा गया है, ‘मोदी सरकार को तीन वर्ष होने का उत्सव जारी है. इस उत्सव में आम जनता और किसान शामिल हैं क्या, इसका असली जवाब सरकारी प्रवक्ता को देना चाहिए. नोटबंदी का झटका छोड़ दिया जाए तो तीन वर्षों में नया क्या घटित हुआ, इस पर हम आज बोलना नहीं चाहते. कुछ महत्वपूर्ण और विशाल परियोजनाएं पहले की सत्ता में शुरू हुई थीं. उन परियोजनाओं के उद्घाटन का समारोह मात्र नए उत्साह से जारी है.’

मराठी दैनिक ने कहा कि नोटबंदी किसानों के लिए एक झटका साबित हुई. उन्हें खरीफ के मौसम से पहले खेती के लिए ऋण लेने में मुश्किल हो रही है. नोटबंदी की घोषणा हुए छह माह से अधिक बीत चुके हैं. इस फैसले ने जिला सहकारी बैंकों को बुरी तरह प्रभावित किया. ये बैंक खेती से जुड़े ऋणों का अहम स्रोत होते हैं.

इसमें कहा गया कि सरकार शेयर बाजार के आंकड़े बढ़ने से ख़ुश है लेकिन व्यथित किसानों और जिला सहकारी बैंकों की तबाही से उस पर कोई असर पड़ता दिखाई नहीं देता.

शिवसेना के मुखपत्र ने बड़े नोटों को बंद करने को लेकर रिज़र्व बैंक पर भी निशाना साधा. शिवसेना ने सवाल उठाया, ‘किसानों की मेहनत की कमाई को कूड़ेदान में फेंक देने का अधिकार आरबीआई को किसने दिया?’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)