क्या मोदी सरकार में एक मुसलमान के सामने ज़िंदा बचे रहना ही सबसे बड़ी चुनौती है?

नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले तीन साल के राज में ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसने मुसलमानों में असुरक्षा और भय की तीव्र भावना पैदा करने का काम किया.

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नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले तीन साल के राज में ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसने मुसलमानों में असुरक्षा और भय की तीव्र भावना पैदा करने का काम किया.

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दादरी के रहने वाले अखलाक की हत्या बीफ रखने की अफवाह के चलते कर दी जाती है, तो अलवर के पहलू ख़ान को कथित गोरक्षक पीटकर मार डालते हैं. वहीं जमशेदपुर के नईम को बच्चा चोरी की अफवाह के चलते भीड़ पीट-पीटकर मार डालती है.

मई, 2014 में केंद्र की सत्ता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्तारूढ़ होने के बाद से बार-बार यह आरोप लगता रहा है कि भारत में धार्मिक सहिष्णुता की स्थिति और बिगड़ गई है.

कहा जा रहा है कि कथित हिंदू राष्ट्रवादी समूह भारत के धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के साथ धमकी देने, उत्पीड़न और हिंसा की तमाम घटनाओं में शामिल हैं.

धर्मांतरण कानून, गोहत्या, बीफ आदि ऐसे तमाम मुद्दे रहे हैं जिन पर ऐसे संगठनों ने अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी प्रताड़ना का शिकार बनाया है.

ऐसे समूहों से निपटने के लिए ठोस क़ानून की कमी और कथित राजकीय संरक्षण ने पिछले कुछ समय में ऐसा माहौल बनाया है कि धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय बहुत ज़्यादा असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. सबसे ख़राब बात यह है कि इन समूहों के पास धर्म से प्रेरित अपराध से बचने का कोई विकल्प मौजूद नहीं है.

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का समाज बहुत ही धार्मिक है. इस देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं और सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मुसलमान रहते हैं. मुसलमानों के रहने के हिसाब से यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है.

सत्ता संभालने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार यह कहते रहे हैं कि उनके शासन में धर्म के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया जाएगा. इसके लिए उन्होंने ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा दिया है.

लेकिन, अमेरिकी संस्था युनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम की साल 2016 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मुस्लिम समुदाय ने उत्पीड़न और दहशत के मामलों में वृद्धि का अनुभव किया है. उन्हें नफरत फैलाने वाले कई अभियानों का सामना करना पड़ा है जिनकी शुरुआत हिंदू राष्ट्रवादी समूहों और स्थानीय व राज्य के नेताओं द्वारा की जाती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें बड़े पैमाने पर मीडिया का कुप्रचार भी होता है जिसमें मुसलमानों पर आतंकवादी होने, पाकिस्तान के लिए जासूसी करने, हिंदू औरतों का जबरदस्ती अपहरण, धर्म परिवर्तन करने, उनसे शादी करने और हिंदुओं का अपमान करने के लिए गाय का कत्ल करने का आरोप लगाया जाता है.

Pehlu Khan's mother Ankuri Beegam and other family members at a dharna in New Delhi demanding justice for him. PTI File
पहलू खान की हत्या के मामले में न्याय की मांग को लेकर उनके परिवार के लोगों ने बीते दिनों दिल्ली में धरना दिया था. (फोटो: पीटीआई)

रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम समुदाय का कहना है कि उनकी मस्जिदों पर निगरानी रखी जाती है. युवा लड़कों व आदमियों को आतंकवाद से निपटने के नाम पर धड़ल्ले से गिरफ्तार किया जाता है.

रिपोर्ट में मुसलमानों के साथ प्रताड़ना की कुछ बड़ी घटनाओं का भी उल्लेख किया गया है. उदाहरण के तौर पर जनवरी 2015 में, एक युवा हिंदू के अपहरण और हत्या होने के बाद 5,000 से अधिक लोगों की भीड़ ने अजीजपुर, बिहार के मुस्लिम बहुल गांव पर हमला किया. इसके बाद तीन मुसलमानों को जिंदा जला दिया और लगभग 25 घरों में आग लगा दी गई.

इसी तरह गुजरात में सितंबर 2014 में पुलिस ने हिंसा के बाद जिसमें अधिकतर गंभीर रूप से घायल मुसलमान थे, लगभग 150 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया. कथित तौर पर हिंसा की शुरुआत तब हुई जब हिंदुत्व के कुछ ठेकेदारों ने इंटरनेट पर हिंदू देवी मां अंबा और भगवान राम की तस्वीरों को मक्का और काबा के ऊपर लगाकर पोस्ट कर दिया.

दिसंबर 2014 में हिंदुत्ववादी समूहों ने तथाकथित ‘घर वापसी’ कार्यक्रम के तहत हज़ारों ईसाई और मुसलमान परिवारों को हिंदू धर्म में वापस लाने की घोषणा की.

इसके अलावा भाजपा और आरएसएस के सदस्यों द्वारा यह दावा करना कि मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि हिंदू बहुमत को कम करने का प्रयास है, धार्मिक तनाव को बढ़ाता है. उदाहरण के लिए, योगी आदित्यनाथ और साक्षी महाराज जैसे भाजपा नेताओं द्वारा मुस्लिम जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने की बात कही.

सितंबर, 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी के पास बिसाहड़ा गांव में मोहम्मद अख़लाक़ को घर में बीफ रखने के आरोप में पीट-पीट कर मार डाला गया था. जब अभियुक्तों में से एक की बीमारी से जेल में मौत हो गई तो उसके शव को तिरंगे में लपेट कर उसे शहीद का दर्जा दिया गया.

इस दौरान उत्तर प्रदेश भाजपा के तमाम नेताओं द्वारा इसे लेकर तनाव फैलाने वाले बयान दिए गए और आने विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए बहुसंख्यक समुदाय के ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया गया.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश बीजेपी यूनिट के उपाध्यक्ष श्रीचंद शर्मा ने कहा, ‘हिंदू समुदाय के लोग गाय की पूजा करते हैं. ऐसे में कोई गाय की हत्या करेगा तो क्या लोगों का ख़ून नहीं खौलेगा.’ दादरी से भाजपा के पूर्व विधायक नवाब सिंह नागर ने कहा, ‘यदि गाय की हत्या हुई थी और खाया गया है तो मुस्लिमों की गलती है.’

जम्मू के उधमपुर में 9 अक्टूबर 2015 को गोहत्या की अफवाह पर भीड़ ने एक ट्रक पर पेट्रोल बम फेंका दिया. इस घटना में दो ट्रक वाले गंभीर रूप से घायल हो गए थे, जबकि अनंतनाग के रहने 20 साल के ज़ाहिद अहमद ने दम तोड़ दिया था.

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(फोटो: रॉयटर्स)

जनवरी 2016 में मध्य प्रदेश के खिड़किया रेलवे स्टेशन पर कथित गोरक्षकों ने गोमांस रखने का आरोप लगाकर एक मुस्लिम दंपत्ति को बुरी तरह पीटा दिया.

27 जुलाई 2016 को मध्य प्रदेश के मंदसौर में दो महिलाओं की रेलवे स्टेशन पर गोमांस होने के कारण पिटाई होती है. ये दोनों महिलाएं मुस्लिम थीं.

इसी तरह राजस्थान के अलवर में इस साल अप्रैल में कथित गोरक्षकों की पिटाई से पशु व्यापारी पहलू खान की मौत हो गई थी, जबकि पिटाई के दौरान पशु व्यापारियों ने कागज़ात भी दिखाए और कहा कि वे गो-तस्कर नहीं हैं. वे गायों को जयपुर के मेले से ख़रीदकर लाए हैं.

वहीं, राजस्थान के गृहमंत्री गुलाब चंद कठेरिया ने उन कथित गोरक्षकों का बचाव भी किया. उन्होंने कहा, ‘दोनों तरफ से ग़लती हुई है. लोग जानते हैं कि गो-तस्करी गैरकानूनी है फिर भी वह इसे करते हैं. गोभक्त तो सिर्फ ऐसे लोगों को रोकने की कोशिश करते हैं जो ऐसे अपराधों में लिप्त होते हैं.’

जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में इस साल 21 अप्रैल को गोरक्षकों ने एक परिवार के लोगों की लोहे की रॉड से पिटाई कर दी थी. इस दौरान नौ साल की बच्ची बुरी तरह ज़ख़्मी हो गई थी.

झारखंड के जमशेदपुर के पास इस महीने की 18 तारीख़ को भीड़ ने शोभापुर में नईम, शेख़ सज्जू, शेख़ सिराज़ और शेख़ हलीम को बच्चा चोर होने के संदेह में पीट-पीटकर मार डाला.

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, ‘एक मुस्लिम के लिए तीन साल बहुत ही असुरक्षा के रहे हैं. अब सिर्फ बीफ का शक होने पर किसी मुसलमान को पीटकर मार दिया जाता है और सरकार इसके दोषियों को सही तरीके से सज़ा नहीं दिला पाती है. ऐसे में देश के मुसलमानों में असुरक्षा की भावना घर कर जाएगी.’

बनारस में धागे की रंगाई का काम करने वाले ताहिर आलम कहते हैं, ‘ऐसा पहली बार हुआ है जब बनारस जैसे शहर में रहते हुए मुझे डर लग रहा है कि पता नहीं कौन-कब मेरे घर में घुसकर पूछताछ करने लगे. 55 साल की उम्र में यह अंदाजा नहीं था कि मुझे ऐसा भी दिन देखना पड़ेगा.’

वे आगे कहते हैं, ‘बनारस भले मंदिरों का शहर है, लेकिन यहां हिंदू-मुसलमान जिस तरह से एक साथ रहते हैं, वह एक मिसाल है. लेकिन उस मिसाल पर अब मैं चोट लगते देख रहा हूं. मौजूदा सरकार ने गंगा-जमुनी तहज़ीब पर कुठाराघात किया है.’

कुछ ऐसी ही राय उत्तर प्रदेश के मऊ में परचून की दुकान चलाने वाले मुमताज़ अंसारी की है. वे कहते हैं, ‘जो हिंदू भाई ईद के दिन का इंतज़ार करते थे कि वे दावत पर आएंगे और अच्छे-अच्छे पकवान खाएंगे. अब वे हिंदू भाई पिछले दो साल से बुलाने पर भी नहीं आ रहे हैं. यहां तक कि अगर बाजार में दिख जाते हैं तो वे शक़ की निगाह से देखते हैं कि कहीं मेरे झोले में बीफ तो नहीं! 60 पार कर चुका हूं, लेकिन इस तरह के दिन देखना अब बहुत तकलीफ देता है.’

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(फोटो: रॉयटर्स)

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, 2015 में भारत में सांप्रदायिक हिंसा में 2014 के मुकाबले 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2014 में सांप्रदायिक हिंसा की 644 घटनाएं हुई थीं.

अगर हम 2015 के आंकड़ें देखें तो गृह मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया कि 2015 में पूरे देश में 751 सांप्रदायिक हिंसा के मामले सामने आए जिनमें 97 लोग मारे गए. वहीं 2,264 लोग घायल हुए थे.

हालांकि साल 2016 में इसमें कमी आई. गृह मंत्रालय के अनुसार, 2016 में पूरे देश में 703 सांप्रदायिक हिंसा के मामले हुए जिनमें 86 लोगों की जान गई, जबकि 2,321 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे.

वरिष्ठ साहित्यकार असगर वजाहत कहते हैं, ‘पिछले तीन सालों के दौरान मुसलमानों में भय बहुत व्याप्त हो गया है. उनके भीतर निराशा भर चुकी है. अभी उनमें असुरक्षा की भावना बहुत है. इसके चलते वह अलग-थलग होते जा रहे हैं.’

वे कहते हैं, ‘मुख्यधारा से मुसलमान का दूर जाना हमारे लोकतंत्र के लिए बेहतर नहीं है. अब जब कथित राष्ट्रवादी समूह के लोग सोशल मीडिया जैसे प्लेटफॉर्म पर खुलेआम आक्रामक दिख रहे हैं. इसका भी सामाजिक रूप से अल्पसंख्यकों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है.’

एटा की रहने वाली और दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रही सना वारसी कहती हैं, ‘ऐसे माहौल ने सबसे ज़्यादा डर और असुरक्षा हम जैसी लड़कियों के परिवारवालों के मन में पैदा किया है. जब भी इस तरह की कोई घटना कहीं होती है तो सबसे पहले परिवार वालों का फोन हमारा हाल-चाल पूछने के लिए आता है. वह यह तो नहीं पूछ पाते हैं कि आप सुरक्षित हो या नहीं लेकिन लगता है पूछना यही चाहते हैं कि तुम अभी तक जिंदा बची हो या नहीं.’

सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने पिछले तीन वर्षों में बिना तुष्टिकरण के अल्पसंख्यकों का सशक्तिकरण करके इनके भीतर विश्वास का माहौल क़ायम करने और इनके सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास का मार्ग प्रशस्त करने का काम किया है.

Family members of Mohammad Akhlaq (50-year-old man) mourn during his funeral at their village in Bisada on September 29, 2015 in Greater Noida, India. Akhlaq was beaten to death and his son critically injured by a mob over an allegation of storing and consuming beef at home, late night on Monday, in UPs Dadri. Police and PAC were immediately deployed in the village to maintain law and order. Six persons were arrested in connection with the killing of man. PTI
साल 2015 में दादरी में पीट-पीटकर मार दिए गए अखलाक के परिजन फाइल फोटो: पीटीआई

नकवी ने दावा कि गरीब नवाज़ कौशल विकास केंद्र, उस्ताद, नई मंजिल, नई रौशनी, सीखो और कमाओ, पढ़ो परदेस, प्रोग्रेस पंचायत, हुनर हाट, बहुउद्देशीय सद्भाव मंडप, प्रधानमंत्री का नया 15 सूत्री कार्यक्रम, बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम, बेग़म हज़रत महल छात्रा छात्रवृति सहित अन्य विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों से हर ज़रूरतमंद अल्पसंख्यक की ज़िंदगी में खुशहाली सुनिश्चित करने का प्रभावी प्रयास किया गया है.

नकवी ने कहा कि मोदी सरकार ने इस बार अल्पसंख्यक मंत्रालय के बजट में बड़ी वृद्धि की है. 2017-18 के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय का बजट बढ़ाकर 4,195 करोड़ रुपये कर दिया गया है.

उन्होंने कहा कि साल 2012-13 में अल्पसंख्यक मंत्रालय का बजट 3,135 करोड़ रुपये, 2013-14 में 3,511 करोड़ रुपये था वही 2014-15 में यह 3,711 करोड़ रुपये और 2015-16 में 3,713 करोड़ रुपये रहा था.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आफ़ताब आलम कहते हैं, ‘पिछले तीन साल में मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. बदलाव सिर्फ भय के रूप में दिखाई पड़ रहा है. अख़बार और टेलीविजन में आ रही ख़बरों को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मुसलमानों को असुरक्षा की भावना में रहना पड़ रहा है. इसमें सत्तापक्ष के नेताओं की दूसरे पक्ष के साथ सहानुभूति बुरा रोल अदा कर रही हैं.’

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह इससे अलग राय रखते हैं. वे कहते हैं, ‘भाजपा की जो छवि मुसलमानों के दिमाग में बैठाई गई थी वह दो-तीन साल में तो नहीं बदलने वाली है. लेकिन अगर आप गौर करें तो यह बात कोई नहीं कहेगा कि सामाजिक या अार्थिक रूप से मुसलमान पिछले तीन सालों में बुरी स्थिति में चले गए हैं या किसी केंद्रीय योजना में उनके साथ अल्पसंख्यक होने के नाते भेदभाव किया गया है.’

फिलहाल केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा का दावा है कि उनकी सरकार अल्पसंख्यक हितों का ख़ास ख़्याल रख रही है. उनका कहना है कि वह राजनीति रूप से मुसलमानों के एक तबके में भाजपा को लेकर स्वीकार्यता बढ़ी है.

हालांकि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो. असमर बेग़ कहते हैं, ‘एक जोड़ने वाली पॉलिटिक्स होती है और एक तोड़ने वाली पॉलिटिक्स. तोड़ने वाली पॉलिटिक्स करने प्रसिद्धि पाना आसान है. बीफ विवाद, गोहत्या, धर्म परिवर्तन जैसे मसले उठाकर सत्तारूढ़ भाजपा पिछले तीन सालों से इसे ही बढ़ावा दे रही है. दूसरी ओर पिछले तीन सालों के दौरान सरकार की नीतियां ऐसी रही हैं जिनसे अल्पसंख्यकों को छोड़ दें, बहुसंख्यकों को फायदा नहीं हुआ है. उनकी आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है.’

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे कहते हैं, ‘पिछले तीन सालों के दौरान मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव तो आया नहीं. इसकी जगह पर उनकी राजनीतिक स्थिति और भी कमज़ोर हो गई. भाजपा सरकार ने पिछले तीन सालों में मुसलमानों के मनोबल को हर तरह से तोड़ दिया. उनके पास वोट की जो ताकत थी वो भी पूरी तरह से ख़त्म हो गई है.’