वॉट्सऐप जासूसी मामला: कौन हैं वे सामाजिक कार्यकर्ता और वकील, जिनके फोन पर रखी गई थी नज़र

भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं के वकील निहालसिंह राठौड़ ने बताया कि पेगासस सॉफ्टवेयर पर काम करने वाली सिटिजन लैब के शोधकर्ता ने उनसे संपर्क कर डिजिटल ख़तरे को लेकर चेताया था. मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया और डीपी चौहान ने भी दावा किया है कि उनकी भी जासूसी की गई थी.

निहालसिंह राठौड़. (फोटो: द वायर)

भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं के वकील निहालसिंह राठौड़ ने बताया कि पेगासस सॉफ्टवेयर पर काम करने वाली सिटिजन लैब के शोधकर्ता ने उनसे संपर्क कर डिजिटल ख़तरे को लेकर चेताया था. मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया और डीपी चौहान ने भी दावा किया है कि उनकी भी जासूसी की गई थी.

निहालसिंह राठौड़. (फोटो: द वायर)
निहालसिंह राठौड़. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: पिछले दो सालों में नागपुर स्थित मानवाधिकार वकील निहालसिंह राठौड़ को वॉट्सऐप पर अनजान नंबरों से फोन आए थे. ये कॉल अंतरराष्ट्रीय नंबरों से किए गए थे. राठौड़ ने जैसे ही उन कॉल को उठाया वैसे ही वे कट गए. उन्हें लगा कि ये कॉल गलती से किए गए होंगे लेकिन सुरक्षा कारणों से उन्हें सभी संदिग्ध कॉल्स की जानकारी वॉट्सऐप को दी.

7 अक्टूबर, 2019 को टोरंटो विश्वविद्यालय की सिटिजन लैब के एक वरिष्ठ शोधकर्ता ने उनसे संपर्क किया था और बताया था कि वे खास डिजिटल खतरे का सामना कर रहे हैं.

राठौड़ ने द वायर को बताया, ‘वरिष्ठ शोधकर्ता जॉन स्कॉट-रायल्टन ने मुझे बताया कि उनके लैब ने मेरे काम को देखा और अपने शोध के दौरान उन्होंने पाया कि मेरे ऊपर निगरानी रखी जा रही थी. इसके बाद पिछले दो सालों से मुझे आ रहे कॉल की वजह मुझे समझ में आ गई.’

छत्तीसगढ़ की मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया और डीपी चौहान ने भी दावा किया है कि उनकी भी जासूसी की गई थी. 29 अक्टूबर को भाटिया को वॉट्सऐप ने आधिकारिक रूप से इस मामले के बारे में सूचित किया. इससे पहले 7 अक्टूबर को भाटिया को सिटिजन लैब ने भी इस बारे में जानकारी दी थी.

बता दें कि सिटिजन लैब उन शुरुआती संगठनों में से है जिसने इजरायली निगरानी कंपनी एनएसओ समूह के पेगासस स्पाइवेयर के संचालन के बारे में जांच की है.

सितंबर 2018 में इसने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें भारत सहित 45 देशों में संदिग्ध एनएसओ पेगासस संक्रमण मिले जो कि 36 पेगासस ऑपरेटरों में से 33 से जुड़े थे. एनएसओ समूह इस हफ्ते तब चर्चा में आया जब वॉट्सऐप ने उसके खिलाफ एक मुकदमा दायर किया.

इसमें वॉट्सऐप ने आरोप लगाया कि इजरायली एनएसओ समूह ने पेगासस से करीब 1,400 वॉट्सऐप उपयोगकर्ताओं को निशाना बनाया. इसके लिए उसने वॉट्सऐप के वीडियो कॉलिंग फीचर में कमी का फायदा उठाया.

सिटिजन लैब के शोधकर्ता और निहालसिंह राठौड़ के बीच बातचीत. (फोटो: द वायर)
सिटिजन लैब के शोधकर्ता और निहालसिंह राठौड़ के बीच बातचीत. (फोटो: द वायर)
सिटिजन लैब के शोधकर्ता और निहालसिंह राठौड़ के बीच बातचीत. (फोटो: द वायर)
सिटिजन लैब के शोधकर्ता और निहालसिंह राठौड़ के बीच बातचीत. (फोटो: द वायर)

सिटिजन लैब से मिली सूचना के बाद राठौड़ ने वॉट्सऐप को एक बार फिर से लिखा और इस बार उन्हें उसी माध्यम से जवाब आया.

वॉट्सऐप से मिले मैसेज में लिखा गया, ‘मई में हमने एक हमले को रोका जहां एक अत्याधुनिक साइबर स्पाइवेयर ने उपयोगकर्ता के उपकरणों पर मैलवेयर स्थापित करने के लिए हमारे वीडियो कॉलिंग सुविधा का फायदा उठाया. ऐसी संभावना है कि यह फोन नंबर प्रभावित हो सकता है और हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आप जानें कि अपना फोन कैसे सुरक्षित रखना है.’

इसके बाद वॉट्सऐप ने उन्हें उनके फोन को सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षा संबंधी कई कदम बताए.

जहां वॉट्सऐप मैसेज में खासतौर पर पेगासस या एनएसओ समूह का जिक्र नहीं किया गया था लेकिन राठौड़ का कहना है कि इसकी संभावना बहुत अधिक है. द वायर  अलग से पुष्टि करता है कि वास्तव में यह वह संदेश है जो वॉट्सऐप ने उन लोगों को भेजा जिन लोगों को पेगासस द्वारा निशाना बनाया गया.

निहालसिंह राठौड़ को वाट्सऐप से मिला मैसेज. (फोटो: द वायर)
निहालसिंह राठौड़ को वॉट्सऐप से मिला मैसेज. (फोटो: द वायर)

बता दें कि, इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि फेसबुक के स्वामित्व वाले प्लेटफॉर्म वॉट्सऐप ने एक चौंकाने वाले खुलासे में कहा है कि भारत में आम चुनाव के दौरान पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर निगरानी के लिए इजरायल के स्पाइवेयर पेगासस का उपयोग किया गया.

यह खुलासा सैन फ्रांसिस्को में एक अमेरिकी संघीय अदालत में मंगलवार को दायर एक मुकदमे के बाद हुआ जिसमें वॉट्सऐप ने आरोप लगाया कि इजरायली एनएसओ समूह ने पेगासस से करीब 1,400 वॉट्सऐप उपयोगकर्ताओं को निशाना बनाया.

हालांकि, वॉट्सऐप ने भारत में निगरानी के लिए निशाना बनाए गए लोगों की पहचान और उनकी सटीक संख्या का खुलासा करने से इनकार कर दिया. वहीं, वॉट्सऐप के प्रवक्ता ने बताया कि वॉट्सऐप को निशाना बनाए गए लोगों की जानकारी थी. उसने उनमें से प्रत्येक से संपर्क किया था.

वॉट्सऐप द्वारा भारत में कम से कम दो दर्जन शिक्षाविदों, वकीलों, दलित कार्यकर्ताओं और पत्रकारों संपर्क किया गया और उन्हें सचेत किया गया कि देश में आम चुनाव के दौरान मई 2019 तक दो सप्ताह की अवधि के लिए उनके फोन अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर की निगरानी में थे.

भीमा-कोरेगांव पैटर्न

राठौड़ भीमा कोरेगांव मामले का केस लड़ने वाले वकीलों में से एक हैं, जिसमें जून 2018 से अब तक नौ कार्यकर्ताओं और वकीलों को गिरफ्तार किया गया है. उनके वरिष्ठ कानूनी संरक्षक सुरेंद्र गाडलिंग उन गिरफ्तार लोगों में शामिल हैं और उन पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था.

राठौड़ का कहना है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं में वे अकेले नहीं हैं जिसने इस तरह की कॉल की शिकायत की है. भीमा-कोरेगांव मामले की सुनवाई से जुड़े कम से कम दो अन्य वकीलों और गाडलिंग की पत्नी मीनल गाडलिंग को भी इसी तरह के कॉल आए हैं.

उनमें से एक ने कॉल आने और संभावित खतरे की सूचना देने के लिए सिटिजन लैब से कई मैसेज मिलने की पुष्टि की है. हालांकि, उन्हें वॉट्सऐप से कोई ईमेल या मैसेज नहीं आया.

राठौड़ का कहना है कि उन्हें वॉट्सऐप द्वारा बताई गई दो सप्ताह की अवधि से पहले और बाद में ये कॉल प्राप्त हुए थे.

महाराष्ट्र के एक अन्य नागरिक अधिकार कार्यकर्ता ने दावा किया है कि उन्हें वॉट्सऐप और सिटिजन लैब दोनों से इसी तरह के संदेश मिले हैं, जिससे उन्हें अपने प्रोफाइल पर एक मैलवेयर के खतरे के बारे में सूचित किया गया है.

अपना नाम जाहिर न करने की इच्छा रखने वाली कार्यकर्ता ने पुष्टि की है कि इस महीने की शुरुआत में उनसे संपर्क किया गया था और कहा गया था कि उन्हें अपने वॉट्सऐप को सुरक्षित करने के लिए अपने फोन पर सुरक्षा उपायों का पालन करने के लिए कहा गया था.

यह कार्यकर्ता भी जनवरी 2018 से भीमा कोरेगांव आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हैं. द वायर  पुष्टि करता है कि इस कार्यकर्ता को भी वॉट्सऐप से यही चेतावनी मिली थी.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ऐसे करीब 18 लोग सामने आये हैं, जो इस स्पाइवेयर से प्रभावित हुए हैं. इनमें मानवाधिकार वकील शालिनी गेरा, प्रोफेसर आनंद तेलतुम्बड़े, सामाजिक कार्यकर्ता सीमा आजाद, छत्तीसगढ़ के कार्यकर्ता और पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी, तेलंगाना हाईकोर्ट के वकील रविंद्रनाथ भल्ला, मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सरोज गिरी, दिल्ली के शोधार्थी अजमल खान, वकील निहाल सिंह राठौड़, वकील जगदीश मेश्राम, मानवाधिकार कार्यकर्ता अंकित ग्रेवाल, पर्यावरण अधिकार कार्यकर्ता विवेक सुंदर, मानवाधिकार कार्यकर्ता डिग्री प्रसाद चौहान, अमर सिंह चहल, स्तंभकार और रणनीतिक मामलों के विश्लेषक राजीव शर्मा, पत्रकार संतोष भारतीय, आशीष गुप्ता और सिद्धांत सिब्बल हैं.

निहालसिंह राठौड़ को मिले संदिग्ध वाट्सऐप कॉल का एक उदाहरण. (फोटो: द वायर)
निहालसिंह राठौड़ को मिले संदिग्ध वॉट्सऐप कॉल का एक उदाहरण. (फोटो: द वायर)

रुपाली जाधव और डीपी चौहान

33 वर्षीय रुपाली जाधव सांस्कृतिक कार्यकर्ता हैं और जातिवाद के खिलाफ मुखर रही हैं. उन्होंने भी उन मैसेज के स्क्रीनशॉट साझा किए हैं, जो उन्हें वॉट्सऐप और सिटिजन लैब की ओर से दो दिन पहले मिले हैं. हालांकि रुपाली ने कहा कि उन्हें किसी अज्ञात नंबर से वॉट्सऐप कॉल नहीं आया था न ही उन्होंने अपने फोन में इस ऐप पर कोई संदिग्ध गतिविधि ही देखी.

जाधव जातिवाद के विरोध में खड़े सांस्कृतिक संगठन कबीर कला मंच से जुड़ी हैं और राज्य के कई सामाजिक आंदोलनों के सोशल मीडिया हैंडल चलाती हैं. उन्होंने बताया, ‘मैं कबीर कला मंच, भीमा कोरेगांव शौर्य दिन प्रेरणा अभियान, एल्गार परिषद और राजनीतिक दल वंचित बहुजन अघाड़ी के वॉट्सऐप ग्रुप और फेसबुक पेज की आधिकारिक एडमिन हूं. ये सभी मुखर रूप से सत्ता के खिलाफ रहे हैं और उससे सवाल करते रहे हैं. इस सब (जासूसी) का विशेष रूप से मुझसे नहीं बल्कि संगठनों से लेना-देना है.’

कबीर कला मंच से जुड़े कई लोगों के खिलाफ यूएपीए में मामले दर्ज हुए हैं और सालों जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत मिली.

रायगढ़, छत्तीसगढ़ के दलित अधिकार कार्यकर्ता और वकील डिग्री प्रसाद चौहान ने भी द वायर  को यह बताया कि उन्हें भी वॉट्सऐप पर कॉल आया था और वॉट्सऐप और सिटिजन लैब की ओर से स्पाइवेयर के बारे में मैसेज भी मिले हैं.

दलित समुदाय से आने वाले 37 वर्षीय चौहान स्कूल पढ़ाते थे और रायगढ़ जिले के भूमि अधिग्रहण मामलों और जातिगत अत्याचार के मामलों के खिलाफ बोलते रहे हैं.

द वायर  से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वे उनके फोन पर नजर रखे जाने को लेकर चिंतित तो हैं पर उन्हें ऐसा होने की हैरानी नहीं है. उन्होंने दावा किया, ‘उन मामले के बाद से ही देश में दलित अधिकार आंदोलन बढ़ रहा है. हम में से कई ढेरों जाति विरोधी और भूमि अधिकार आंदोलनों से जुड़े रहे हैं और इसे लेकर बड़े पैमाने पर सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन चला रहे हैं. स्पष्ट रूप से सरकार इससे डरी हुई है.’

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया इजराइल दौरे और स्पाइवेयर हमले के बारे में कहा, ‘जहां तक मेरी जानकारी है, कसी भी प्रधानमंत्री ने इजराइल का ऐसा दौरा नहीं किया. इन हमलों का और गहरा लिंक है. इसकी जांच होनी चाहिए.’

बेला भाटिया, आनंद तेलतुम्बड़े और सरोज गिरी 

मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया ने भी द वायर  से पुष्टि की है कि उन्हें भी सिटिजन लैब से वही मैसेज मिला, जो उनके शोधकर्ता से निहालसिंह राठौड़ को मिला था.

उन्होंने कहा, ‘हमने एक समय तय किया था और उस रिसर्चर से पेगासस के बारे में मेरी लंबी बातचीत हुई. उन्होंने मुझे स्पाइवेयर के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह कुछ महीनों पहले वॉट्सऐप ने सिटिजन लैब से संपर्क किया और उन लोगों के नामों की सूची उन्हें दी, जो इससे प्रभावित हुए थे. उन्होंने बताया कि इन लोगों में ज्यादातर मानवाधिकार कार्यकर्ता और मानवाधिकार वकील थे. जब वे मुझे यह बता रहे थे उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि उनके अध्ययन और विश्लेषण से यह बहुत स्पष्ट है कि यह हमारी अपनी सरकार द्वारा ही करवाया गया है.’

बेला ने आगे कहा, ‘उन्होंने यह साफ कहा था. और जहां तक इस जासूसी के तरीके का सवाल है, उन्होंने बताया कि यह अपनी जेब में जासूस लेकर घूमने जैसा है. यहां तक कि आप जिस कमरे में बैठे हैं, इसके जरिये वे जान सकते हैं कि वहां क्या हो रहा है. उन्होंने बताया कि स्पाइवेयर मेरी जानकारी के बिना मेरा कैमरा और माइक्रोफोन एक्सेस कर सकता है. उन्होंने मुझे बचाव के कुछ तरीके बताये जैसे कि फोन बदलना आदि. वे समय-समय पर मुझे कॉल करते और ऐसी ही सलाह देते थे. उन्होंने मुझे कहा कि वॉट्सऐप दो हफ्तों में मुझसे संपर्क करेगा और उसने किया भी. मुझे भी वही कॉल और मैसेज मिला जो बाकियों को मिला है.’

प्रोफेसर आनंद तेलतुम्बड़े ने द वायर  को बताया कि उन्हें 8-10 दिन पहले सिटिजन लैब से कॉल आया था. उन्होंने बताया, ‘जॉन ने मुझे बताया कि यह स्पाइवेयर क्या है. उन्होंने पहले मुझे टेक्स्ट मैसेज भेजा था. उसके बाद मैंने सिटीजन लैब की विश्वसनीयता के बारे में पूछा और इसके प्रतिनिधि जॉन स्कॉट रेलटों से बात की. एनएसओ समूह ने कहा है कि उसने पेगासस लाइसेंस केवल सरकारों को बेचा है. तो यह साफ है कि भारत सरकार यह स्पाइवेयर हमारे देश के नागरिकों के खिलाफ इस्तेमाल कर रही है.’

उन्होंने आगे बताया, ‘जॉन ने बताया कि उनकी रिसर्च में पता चला है कि मेरा फोन हैक हुआ था. इस देश में अब सब अनिश्चित है. सरकार आपके साथ कुछ भी कर सकती है. नागरिकों के फोन हैक करना अब एक सामान्य बात है. यहां तक कि जब मैं आईआईटी में था, तब भी मेरा फोन टैप हो रहा था. मुझे आईआईटी के अधिकारीयों ने बताया था कि मेरा फोन टैप हो रहा है. अगर आपको यह पता चलता है तो आप क्या कर सकते हैं. आप बस इसे स्वीकार कर लेते हैं. अब सिटिजन लैब ने मुझे बताया कि मुझे निशाना बनाया जा रहा है. ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे आप इसे रोक सकें।’

उन्होंने यह भी जोड़ा, ‘यह अकेले मेरी समस्या है.यह अब हर एक की समस्या है. हर भारतीय अब खतरे में है.’

सरोज गिरी दिल्ली विश्वविद्यालय में पॉलिटिकल साइंस पढ़ाते हैं. उन्होंने भी द वायर  को बताया कि करीब महीने भर पहले सिटिजन लैब ने उनसे संपर्क किया था.

उन्होंने कहा, ‘उन्होंने मुझे बताया कि मेरा फोन एक अत्याधुनिक पेगासस के जरिये मेरे फोन को टैप किया जा रहा है और वो मुझे इस बारे में कुछ बताना चाहते हैं.’ गिरी ने बताया कि वे कुछ अन्य कामों में व्यस्त थे इसलिए उन्होंने उस पर ध्यान नहीं दिया।

उन्होंने आगे बताया, ‘लेकिन फिर मैंने इस बारे में जानकारी जुटाई तो मुझे इसका मतलब पता चला. मैंने गूगल पर एनएसओ समूह के बारे में सर्च किया। इसकी अपनी वेबसाइट पर इसके बारे में बमुश्किल ही कुछ लिखा  है. इस पर इसका पूरा पता और इसके शेयरहोल्डर्स के बारे में कोई जानकारी नहीं दी हुई है.’

उन्होंने बताया कि सिटिजन लैब ने उन्हें बताया कि ऐसा कोई तरीका नहीं है कि इस स्पाइवेयर से निजात पाया जा सके- न फोन की फैक्ट्री सेटिंग रिसेट करने, न फोन रिबूट करने और न ही वॉट्सऐप दोबारा इनस्टॉल करने से कोई फायदा होता है.

गिरी ने आगे बताया, ‘सिटिजन लैब ने मुझे सलाह दी कि मैं या तो फोन फेंक दूं या इसे बंद करके कोने में रख दूं.’ उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें साइबर सिक्योरिटी समूह ने बताया है कि यह स्पाइवेयर खुद को नष्ट कर सकता है.

उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने सिटिजन लैब से मुझे एक आधिकारिक ईमेल लिखकर मुझसे बात करने के लिए कहा. उन्होंने तुरंत ऐसा किया और इसके बाद मैंने उनसे बात की. जॉन ने मुझे बताया कि मुझे जल्दी ही वॉट्सऐप से एक एक रिपोर्ट मिलेगी. यह स्पष्ट नहीं है कि असल में इसके लिए कौन जिम्मेदार है लेकिन यह साफ है कि यह कोई सर्विलांस या फोन हैकिंग का मामला नहीं है, इसके गंभीर नतीजे हैं. भारत सरकार और वॉट्सऐप की जवाबदेही बनती है.’

29 साल के अजमल खान दिल्ली में रहते हैं और शोधार्थी हैं. इन सिटिजन लैब द्वारा जिन लोगों से संपर्क किया गया, उनमें वे भी शामिल थे. खान ने हाल ही में मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से अपनी पीएचडी पूरी की है.

उन्होंने बताया कि उन्हें पिछले साल से वॉट्सऐप पर ‘अजीब’ से कॉल्स आया करते थे. उन्होंने कहा, ‘मैंने उन पर ध्यान नहीं दिया। जब पिछले हफ्ते सिटिजन लैब के एक व्यक्ति ने मुझसे संपर्क किया तब मैंने उसे स्पैम समझकर उसका जवाब नहीं दिया। आज जब मैंने यह खबर देखी, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे वॉट्सऐप के साथ क्या हुआ है.’

अजमल ने बताया कि उन्हें आज यानी गुरुवार को ही वॉट्सऐप से ही एक मैसेज आया है. मूलतः केरल से आने वाले खान मुंबई के छात्र समूहों में एक जाना-पहचाना नाम हैं और 2016 में रोहित वेमुला की मौत के बाद हुए प्रदर्शनों सहित कई छात्र आंदोलनों में सक्रिय रहे हैं.

छत्तीसगढ़ की वकील शालिनी गेरा ने बताया कि सिटिजन लैब और बाद में वॉट्सऐप ने उन्हें संभावित मालवेयर अटैक के बारे में सूचित किया.

गेरा उन लोगों में शामिल हैं, जिन्हें चार अक्टूबर को सिटिजन लैब के जॉन स्कॉट-रायल्टन ने पहली बार संपर्क साधा. जॉन स्कॉट-रायल्टन ने उन्हें उस चुनिंदा समयावधि के बारे में बताया कि इस साल फरवरी से मई के बीच उनके वॉट्सऐप पर निगरानी रखी गई.

गेरा ने कहा, ‘जॉन से बातचीत के दौरान उन्होंने मुझे जमाल खशोगी मामले के बारे में बताया और इजरायली निगरानी कंपनी एनएसओ समूह के पेगासस स्पाइवेयर के संचालन के बारे में जानकारी दी.

गेरा लॉयर्स क्लेक्टिव जैगलैग का हिस्सा रही हैं. वह राज्य में अपने काम की वजह से कई दक्षिणपंथी संगठनों और छत्तीसगढ़ पुलिस के निशाने पर रही हैं.

गेरा उस समय अचंभित रह गई, जब उन्हें इस ऑनलाइन अटैक के बारे में पता चला.

गेरा ने कहा, ‘मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि सरकार क्यों मेरे जैसे शख्स के पीछे पड़ी है, जो छत्तीसगढ़ में आदिवासी समूहों के मामलों में मुश्किल से ही सक्रिय है लेकिन यह पैटर्न धीरे-धीरे तब स्पष्ट हुआ जब मैंने सुना कि भीमा कोरेगांव मामले से संबंधित कई अन्य कार्यकर्ताओं और वकीलों को भी निशाना बनाया गया.’

गेरा भीमा कोरेगांव मामले में सुधा भारद्वाज का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. उनका कहना है कि मेरे कई दोस्त और सहकर्मी हैं, जिन्हें वॉट्सऐप ने संभावित मेलवेयर के बारे में सूचित किया लेकिन सिटिजन लैब ने अभी तक उनसे संपर्क नहीं  किया है.

सीमा आजाद ने कहा, ‘वॉट्सएप से जुडे़ लोगों ने कल सुबह मैसेज किया. उन्होंने कहा कि इजरायली स्पाईवेयर के जरिए जासूसी हो रही है इसलिए वॉट्सऐप का लेटेस्ट वर्जन इंस्टॉल करें. उन्होंने मुझे सिटिजन लैब वेबसाइट का लिंक भी भेजा ताकि मैं समझ पाऊं कि अपना फोन कैसे सुरक्षित रखूं. मुझे बीते आठ महीनों से स्विट्जरलैंड के अज्ञात नंबरों से मिस्ड वीडियो कॉल आ रही थीं और यह सिलसिला दो महीने पहले ही थमा है. मैंने इन वीडियो कॉल का जवाब नहीं दिया था.’

एनएसओ समूह का दावा है कि पेगासस केवल सरकारी एजेंसियों को बेचा गया है. उसने कहा, ‘हम अपने उत्पाद को केवल लाइसेंस प्राप्त और वैध सरकारी एजेंसियों को देते हैं.’

निहाल सिंह राठौड़ का कहना है कि अपनी प्रोफाइल पर हमले को वे अधिक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने और निशाना बनाने के गंभीर प्रयास के रूप में देखते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मेरा वॉट्सऐप प्रोफाइल बेतरतीब ढंग से नहीं बल्कि खास तरीके से चुना गया था. मानवाधिकारों के हम कुछ मुट्ठी भर वकील हैं जो मौजूदा दबाव का सामना कर रहे हैं और देश में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली विभिन्न रणनीतियों को उजागर करने की प्रक्रिया में हैं.’

उन्होंने द वायर  ने कहा, ‘मेरे पास यह विश्वास करने का कारण है कि भीमा-कोरेगांव मामला उन पत्रों पर आधारित है जिन्हें इसी तरह या सरकार की किसी अन्य एजेंसी द्वारा प्लांट किया गया. उन पत्रों की हास्यापद सामग्री इस धारणा को और मजबूत करती है.’

इस पूरे मामले पर चिंता जताते हुए एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने एक बयान में कहा, यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों कानूनों के हिसाब से कार्यकर्ताओं के निजता को गोपनीय रखने के मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है. मानवाधिकार संगठनों ने एनएसओ समूह के लाइसेंस को खत्म किए जाने की मांग की.

बयान में कहा गया, ‘7 नवंबर को तेल अवीव का जिला न्यायालय एक कानूनी मामले की सुनवाई करने जा रहा है, जिसमें मांग की गई है कि इजरायल के रक्षा मंत्रालय को एनएसओ समूह के निर्यात लाइसेंस को रद्द करना चाहिए. कंपनी के पेगासस सॉफ्टवेयर का उपयोग दुनिया भर के पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के लिए किया गया है- जिसमें मोरक्को, सऊदी अरब, मेक्सिको और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं. एनएसओ मैलवेयर का उपयोग करते हुए एमनेस्टी इंटरनेशनल स्टाफ के एक सदस्य को भी निशाना बनाया गया.’

दुनियाभर के पत्रकारों और कार्यकर्ताओं द्वारा सामना किए जा रहे खतरे पर जवाब देते हुए एमनेस्टी टेक की उप निदेशक डैना इग्लेटन ने कहा, ‘एनएसओ का कहना है कि उनका स्पाइवेयर पूरी तरह से अपराध और आतंकवाद को रोकने के लिए है, लेकिन इसके बजाय कंपनी के निगरानी उपकरणों का इस्तेमाल मानवाधिकारों के हनन के लिए किया जा रहा है. एनएसओ के स्पाइवेयर उत्पाद का दुरुपयोग करने की योजना बना रहे सरकारों तक उनके पहुंचने से रोकने का सबसे सुरक्षित तरीका यह है कि कंपनी के निर्यात लाइसेंस को खत्म कर दिया जाए.’

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने तेल अवीव जिला अदालत में चल रहे मामले की सुनवाई को अपना कानून समर्थन देने का ऐलान किया है ताकि इजरायली रक्षा मंत्रालय एनएसओ के स्पाइवेयर उत्पादों को रोकने के लिए बाध्य हो जाएं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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