साल 2012 में दिल्ली में निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के चार दोषियों- मुकेश, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह को निचली अदालत ने साल 2013 में फांसी की सज़ा सुनाई थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने इस सज़ा को बरक़रार रखा था और सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल उनकी पुनर्विचार याचिका ख़ारिज कर दी थी.
नई दिल्ली: साल 2012 में देश को हिलाकर रख देने वाले निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के दोषियों की फांसी की सजा देने का वक्त नजदीक आ गया है.
फांसी की सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने उनकी ओर से दायर पुनर्विचार याचिका पिछले साल जुलाई में खारिज कर दी थी. अब वे सिर्फ राष्ट्रपति से सजा के खिलाफ दया की अपील कर सकते हैं. उन्हें राष्ट्रपति से अपील करने के लिए पांच नवंबर तक का समय दिया गया है.
तिहाड़ जेल अधिकारियों ने दोषियों से कहा है कि उन्होंने सभी कानूनी उपायों का इस्तेमाल कर लिया है और फांसी की सजा के खिलाफ उनके पास अब सिर्फ राष्ट्रपति के पास दया याचिका देने का विकल्प बचा हुआ है.
तिहाड़ जेल अधीक्षक की ओर से मामले के चारों दोषियों- मुकेश, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह को यह नोटिस जारी किया गया है.
मामले के चार दोषियों को 29 अक्टूबर को जारी एक नोटिस में जेल अधीक्षक ने उन्हें सूचना दी है कि दया याचिका दायर करने के लिए उनके पास नोटिस पाने की तारीख से सात दिनों तक का ही वक्त है.
नोटिस में कहा गया है, ‘यह सूचित किया जाता है कि यदि आपने अब तक दया याचिका दायर नहीं की है और यदि आप अपने मामले में फांसी की सजा के खिलाफ राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करना चाहते हैं, तो आप यह नोटिस पाने के सात दिनों के अंदर ऐसा कर सकते हैं. इसमें नाकाम रहने पर यह माना जाएगा कि आप अपने मामले में दया याचिका नहीं दायर करना चाहते हैं और जेल प्रशासन कानून के मुताबिक आगे की आवश्यक कानूनी कार्यवाही शुरू करेगा.’
तिहाड़ जेल के महानिदेशक संदीप गोयल ने कहा कि उन्हें नोटिस जारी किया गया है और यदि वे दया याचिका दायर नहीं करते हैं तो निचली अदालत को सूचित किया जाए तथा वह आगे की कार्रवाई पर फैसला करेगी.
मामले के तीन दोषी तिहाड़ में कैद हैं और एक को मंडोली जेल में रखा गया है. सूत्रों ने बताया कि यदि दया याचिका दायर नहीं की जाती है तो जेल अधिकारी अदालत का रुख करेंगे, जो मौत की सजा का वारंट जारी करेगी.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में दोषी मुकेश के वकील एमएल शर्मा ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट में इस नोटिस को चुनौती देंगे. उन्होंने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में क्यूरेटिव याचिका भी दायर नहीं कर सके हैं. इसके लिए उनके पास तीन साल का समय था.
पवन, विनय और अक्षय के वकील एपी सिंह ने कहा है कि वह नोटिस का जवाब देंगे और पुनर्विचार याचिका खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए क्यूरेटिव याचिका दाखिल करेंगे.
गौरतलब है कि साल 2012 में 16 दिसंबर की रात राजधानी दिल्ली में 23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा से एक चलती बस में छह लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था और उसे सड़क पर फेंकने से पहले बुरी तरह से घायल कर दिया था. दो हफ्ते बाद 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान पीड़िता की मौत हो गई थी.
इस घटना के विरोध में देशभर में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए थे और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और बलात्कार के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करने की मांग उठी थी. लोगों के रोष के देखते हुए सरकार ने बलात्कार के खिलाफ नया कानून लागू किया था.
राजधानी में 16 दिसंबर, 2012 को हुए इस अपराध के लिए निचली अदालत (फास्ट ट्रैक कोर्ट) ने 12 सितंबर, 2013 को चार दोषियों को मौत की सज़ा सुनाई थी. एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने चारों दोषियों को सामूहिक बलात्कार, अप्राकृतिक यौन हिंसा और हत्या और निर्भया के दोस्त की हत्या के प्रयास समेत 13 अपराधों में दोषी ठहराया था.
इस अपराध में एक आरोपी राम सिंह ने मुकदमा लंबित होने के दौरान ही जेल में आत्महत्या कर ली थी, जबकि छठा आरोपी एक किशोर था. उसे एक बाल सुधार गृह में अधिकतम तीन साल की कैद की सजा दी गई. दिसंबर 2015 में उसे रिहा कर दिया गया था.
उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल नौ जुलाई को मामले के तीन दोषियों- मुकेश (31), पवन गुप्ता (24) और विनय शर्मा (25) की याचिकाएं खारिज कर दी थीं. उन्होंने 2017 के उस फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था, जिसके तहत दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले में निचली अदालत में उन्हें सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा था.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 मार्च, 2014 को दोषियों को मृत्युदंड देने के निचली अदालत के फैसले की पुष्टि कर दी थी. इसके बाद, दोषियों ने शीर्ष अदालत में अपील दायर की थीं जिन पर न्यायालय ने पांच मई, 2017 को फैसला सुनाया था.
वहीं, मौत की सजा का सामना कर रहे चौथे दोषी अक्षय कुमार सिंह (33) ने शीर्ष न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की थी.
पूरा घटनाक्रम
16 दिसंबर 2012: नई दिल्ली में छह लोगों ने एक निजी बस में पैरामेडिकल छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार और बर्बरता की. उसे तथा उसके पुरुष मित्र को चलते वाहन से बाहर फेंका. दोनों को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया.
17 दिसंबर 2012: आरोपियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन.
18 दिसंबर 2012: राम सिंह और तीन अन्य गिरफ्तार.
20 दिसंबर 2012: पीड़िता के मित्र का बयान दर्ज.
21 दिसंबर 2012: दिल्ली के आनंद बिहार बस टर्मिनल से नाबालिग आरोपी गिरफ्तार. पीड़िता के मित्र ने मुकेश को दोषी के रूप में पहचाना. पुलिस ने छठे आरोपी अक्षय ठाकुर को पकड़ने के लिए हरियाणा और बिहार में छापे मारे.
21-22 दिसंबर 2012: बिहार के औरंगाबाद ज़िले से ठाकुर को गिरफ्तार कर दिल्ली लाया गया. पीड़िता ने अस्पताल में एसडीएम के सामने बयान दर्ज किया.
23 दिसंबर 2012: प्रदर्शनकारी निषेधाज्ञा का उल्लंघन करके सड़कों पर उतरे.
25 दिसंबर 2012: पीड़िता की हालत गंभीर. प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के दौरान घायल कॉन्स्टेबल सुभाष तोमर की अस्पताल में मौत.
26 दिसंबर 2012: दिल का दौरा पड़ने पर पीड़िता को सरकार द्वारा इलाज के लिए सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल ले जाया गया.
29 दिसंबर 2012: पीड़िता की मौत. पुलिस ने प्राथमिकी में हत्या का आरोप जोड़ा.
02 जनवरी 2013: तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर ने यौन अपराध मामलों में शीघ्र सुनवाई के लिये फास्ट ट्रैक अदालत शुरू की.
03 जनवरी 2013: पुलिस ने पांच वयस्क आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया.
04 जनवरी 2013: अदालत ने आरोपपत्र पर संज्ञान लिया.
07 जनवरी 2013: अदालत ने बंद कमरे में कार्यवाही के आदेश दिए.
28 जनवरी 2013: किशोर न्याय बोर्ड ने कहा कि नाबालिग आरोपी की अवयस्कता साबित.
02 फरवरी 2013: फास्ट ट्रैक अदालत ने पांच वयस्क आरोपियों के ख़िलाफ़ आरोप तय किए.
28 फरवरी 2013: जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) ने नाबालिग के ख़िलाफ़ आरोप तय किए.
11 मार्च 2013: राम सिंह ने दिल्ली के तिहाड़ जेल में ख़ुदकुशी की.
22 मार्च 2013: दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय मीडिया को निचली अदालत की कार्यवाही की ख़बर देने की अनुमति दी.
11 जुलाई 2013: जेजेबी ने 16 दिसंबर की रात सामूहिक बलात्कार से पहले एक कारपेंटर को अवैध रूप से बंदी बनाने और लूट का दोषी ठहराया.
22 अगस्त 2013: फास्ट ट्रैक अदालत ने चार वयस्क आरोपियों के ख़िलाफ़ सुनवाई में अंतिम दलीलें सुनीं.
31 अगस्त 2013: जेजेबी ने नाबालिग को गैंगरेप और हत्या का दोषी ठहराया और तीन साल के लिए सुधार गृह भेजा.
03 सितंबर 2013: अदालत ने सुनवाई पूरी की. फैसला सुरक्षित रखा.
10 सितंबर 2013: अदालत ने मुकेश, विनय, अक्षय, पवन को 13 आरोपों में दोषी ठहराया.
13 सितंबर 2013: अदालत ने चारों दोषियों को मौत की सजा सुनाई.
23 सितंबर 2013: उच्च न्यायालय ने दोषियों की सज़ा के संदर्भ सुनवाई शुरू की.
13 मार्च 2014: उच्च न्यायालय ने चार दोषियों की मौत की सज़ा बरक़रार रखी.
15 मार्च 2014: उच्चतम न्यायालय ने दो दोषियों मुकेश और पवन की सज़ा पर अमल पर रोक लगाई. बाद में अन्य दोषी की सज़ा पर भी लगी रोक.
03 फरवरी 2017: शीर्ष अदालत ने कहा कि वह दोषियों की मौत की सजा के पहलुओं पर नए सिरे से सुनवाई करेगी.
27 मार्च 2017: शीर्ष अदालत ने उनकी अपीलों पर फैसला सुरक्षित रखा.
05 मई 2017: शीर्ष अदालत ने चार दोषियों की मौत की सज़ा बरक़रार रखी.
08 नवंबर 2017: एक दोषी मुकेश ने मौत की सज़ा को बरक़रार रखने के फैसले पर पुनर्विचार के लिये शीर्ष अदालत में याचिका दायर की.
15 दिसंबर 2017: दोषियों विनय शर्मा और पवन कुमार गुप्ता ने फैसले के ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका दायर की.
04 मई 2018: शीर्ष अदालत ने दो दोषियों विनय शर्मा और पवन गुप्ता की पुनर्विचार याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रखा.
09 जुलाई 2018: शीर्ष अदालत ने तीनों दोषियों की पुनर्विचार याचिकाएं ख़ारिज कीं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)