आख़िर क्यों स्थानीय कश्मीरी, जो अपेक्षाकृत रूप से पढ़े-लिखे और संपन्न हैं, इस तरह अपनी जान दांव पर लगाने को तैयार हो जाते हैं?
किसी भी पेशेवर सेना के लिए उसकी प्रतिष्ठा सबसे ज़रूरी होती है पर ऐसा लगता है कि भारतीय सुरक्षा के शीर्ष पद पर बैठे लोग चाहे वे मंत्रालय में हों या सेना में, ये बात भूल गए हैं.