सुमित्रा महाजन क्यों भूल जाती हैं कि वे लोकसभा अध्यक्ष भी हैं?

अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निरोधक अधिनियम को लेकर सुमित्रा महाजन निजी तौर पर कोई भी राय रखें, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष के रूप में उनका चॉकलेट संबंधी बयान कहीं से भी जायज़ और उनके पद की गरिमा के अनुरूप नहीं माना जा सकता.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘आपातकाल’ इतना प्रिय क्यों है?

राजनीतिक विमर्श में आपातकाल नरेंद्र मोदी का प्रिय विषय रहता है. यह और बात है कि मोदी आपातकाल के दौरान एक दिन के लिए भी जेल तो दूर, पुलिस थाने तक भी नहीं ले जाए गए थे. भूमिगत रहकर उन्होंने आपातकाल विरोधी संघर्ष में कोई हिस्सेदारी की हो, इसकी भी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती.

क्या आपातकाल को दोहराने का ख़तरा अब भी बना हुआ है?

आपातकाल कोई आकस्मिक घटना नहीं बल्कि सत्ता के अतिकेंद्रीकरण, निरंकुशता, व्यक्ति-पूजा और चाटुकारिता की निरंतर बढ़ती गई प्रवृत्ति का ही परिणाम थी. आज फिर वैसा ही नज़ारा दिख रहा है. सारे अहम फ़ैसले संसदीय दल तो क्या, केंद्रीय मंत्रिपरिषद की भी आम राय से नहीं किए जाते, सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रधानमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री की चलती है.

क्या आम आदमी की आख़िरी उम्मीद न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार के ​कीटाणु प्रवेश कर चुके हैं?

ऐसा नहीं है कि न्यायपालिका में जारी गड़बड़ियों से आम आदमी बेख़बर हो, लेकिन न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार आमतौर पर अवमानना के डर से कभी भी सार्वजनिक बहस का मुद्दा नहीं बन सका.

बढ़ते सामाजिक टकराव पर प्रधानमंत्री चुप क्यों?

बढ़ती जातीय और सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं प्रधानमंत्री मोदी की विकास के उनके घोषित एजेंडे के अनुकूल नहीं रहीं, लिहाजा देश को अपेक्षा थी कि ऐसी घटनाओं पर मोदी सख्ती से पेश आएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

बोलते वक़्त मोदी क्यों भूल जाते हैं कि वो देश के पीएम हैं!

वे मुझे मार डालेंगे, मुझे थप्पड़ मार देना’, 'मुझे लात मार कर सत्ता से हटा देना’, 'मुझे फांसी पर चढ़ा देना’, 'मुझे उलटा लटका देना’, 'मुझे चौराहे पर जूते मारना’.... ये सब मोदी क्यों बोलते हैं?