नेहरू ने कैसे शुरू किया था विदेश मंत्रालय, कैसे तय हुई थीं नीतियां

वीडियो: कल्लोल भट्टाचार्जी वरिष्ठ पत्रकार हैं और उनकी हालिया किताब 'नेहरूज़ फर्स्ट रिक्रूट्स' में उन्होंने देश की आज़ादी के बाद के शुरुआती सालों में भारतीय विदेश सेवा की नींव पड़ने के बारे में बताया है. इस किताब को लेकर उनसे आशुतोष भारद्वाज की बातचीत.

संघ परिवार में नई तकरार?

वीडियो: मोहन भागवत की संघ परिवार में वर्तमान हैसियत क्या है? क्या संघ भाजपा पर नैतिक लगाम लगाता है या सत्ता के लोभ में मोदी-शाह के पीछे चुपचाप चलता है? वरिष्ठ पत्रकारों- राहुल देव और धीरेंद्र झा से आशुतोष भारद्वाज की बातचीत.

करगिल युद्ध के 25 बरस: ‘इंटेलिजेंस की विफलता बनी भारतीय सैनिकों की मौत की वजह’

वीडियो: पच्चीस बरस बाद भी करगिल के प्रश्न मंडराते हैं. इतना बड़ा इंटेलिजेंस फेलियर कैसे हो गया? वायु सेना और थल सेना के बीच तालमेल देर क्यों हुई? बर्फीली पहाड़ियों पर हो रही लड़ाई लाइव मीडिया रिपोर्टिंग का स्टूडियो कैसे बन गई? करगिल युद्ध के समय उपमहानिदेशक रहे लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा) एमसी भंडारी से आशुतोष भारद्वाज की बातचीत.

कंगना के चुनावी कदम: मोदी की परछाईयां और चीड़ की चिंगारियां

मंडी लोकसभा चुनाव: कंगना रनौत अक्सर ग़ैर-ज़िम्मेदार बयान देती नज़र आती हैं. यह स्वभाव का सूचक हो सकता है, लेकिन यह उस दुर्लभ अदाकारा का गणित भी हो सकता है जो पिछले 15 वर्षों में बगैर किसी सहारे के सिर्फ़ अपने बल पर बंबई के क्रूर फ़िल्म उद्योग में निर्भीक खड़ी रही है.

हिमाचल चुनाव: इस पहाड़ पर राजनीति इतिहास के भीतर निवास करती है

इस राज्य को भगवा बनाना चाहती भाजपा नहीं जानती कि देवदार के जंगल स्थानीय देवियों से अपनी प्राण-ऊर्जा हासिल करते हैं और बर्फ़ीले पर्वतों पर इस पृथ्वी के कुछ सबसे विलक्षण और प्राचीन बौद्ध विहार ठंडी धूप में चमकते हैं.

लोकसभा चुनाव: सपा का ‘पीडीए’ क्या भाजपा को भारी पड़ेगा?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा का ‘पीडीए’ आज उसी तरह केंद्र में है, जैसे कभी बसपा की ‘सोशल इंजीनियरिंग’ हुआ करती थी. सभी जातियों को एक साथ लाने की सपा की रणनीति लोकसभा चुनाव को नया समीकरण देती दिख रही है.

संघ और भाजपा: कितने दूर, कितने पास?

क्या स्वयंसेवक उस सामाजिक स्वीकार्यता की अनदेखी कर पाएंगे जो मोदी सरकार के कारण उन्हें मिली है? क्या नाराज़ स्वयंसेवक अपने प्रचारक प्रधानमंत्री से दूरी बना पाएंगे? या वे आख़िरकार सामंजस्य कर लेंगे, यह सोचकर कि 2025 के अपने शताब्दी वर्ष में सत्ता से बाहर रहने का जोखिम उठाना बुद्धिमानी नहीं?

अंधे युग में हिंदी सिनेमा

वीडियो: पिछले दस सालों में देश की राजनीति के साथ हिंदी सिनेमा में भी अहम बदलाव देखने को मिले हैं. जहां एक ख़ास तरह के सिनेमा को आसानी से फंडिंग आदि मिल रही है, वहीं उद्योग के कई प्रतिभाशाली लोगों, विशेषकर वो जो भाजपा की विचारधारा से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते, के सामने मुश्किलें आ रही हैं. इस बारे में अभिनेता सुशांत सिंह से बात कर रहे हैं द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज.

उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के लिए क्यों भिन्न है 2024 चुनाव

कहा जाता है कि कांग्रेस में प्रत्याशी चुनाव लड़ता है, भाजपा में संगठन यह जिम्मेदारी संभालता है. इस बार भाजपा और संघ के कार्यकर्ताओं में उत्साह कम दिखाई दे रहा है.

क्या सौगात की तरह दी जा रहीं सरकारी योजनाएं नागरिकों के हक़ ख़त्म कर देती हैं?

वीडियो: देश के विमर्श में अब मतदाता शब्द कम प्रचलित है और इसकी जगह 'लाभार्थी' ने ले ली है. क्या यह बदलाव देश के नागरिकों के लिए ख़ुश होने की वजह है या उनके अधिकारों के लिए ख़तरा? पब्लिक पॉलिसी विशेषज्ञ यामिनी अय्यर से बात कर रहे हैं द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज.

नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में किस राह पर चले न्यायाधीश?

वीडियो: पिछले दस बरस देश की विभिन्न संस्थाओं के लिए भी महत्वपूर्ण रहे हैं. नरेंद्र मोदी के पिछले दस सालों के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश किस राह पर चले, संविधान के अभिभावक संवैधानिकता की कितनी रक्षा कर पाए, इस बारे में क़ानूनी मामलों पर लिखने वाले पत्रकार सौरव दास से बात कर रहे हैं द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज.

अयोध्या आज एक कुरु-सभा बन गई है जिसके मंच पर भारतीय सभ्यता का चीरहरण हो रहा है

अयोध्या की सभा असत्य और अधर्म की नींव पर निर्मित हुई है, क्योंकि जिसे इसके दरबारीगण सत्य की विजय कहते हैं, वह दरअसल छल और बल से उपजी है. अदालत के निर्णय का हवाला देते हुए ये दरबारी भूल जाते हैं कि इसी अदालत ने छह दिसंबर के अयोध्या-कांड को अपराध क़रार दिया था.

क्या सीपीआर के ख़िलाफ़ मोदी सरकार की कार्रवाई का अडानी से कोई ‘संबंध’ है?

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) का एफसीआरए लाइसेंस रद्द होने से पहले इसे मिले आयकर विभाग के नोटिस में संगठन के छत्तीसगढ़ में हसदेव आंदोलन में शामिल एनजीओ से जुड़ाव का प्रमुख तौर पर ज़िक्र किया गया है. हालांकि, नोटिस में जिस बात का उल्लेख नहीं है वो यह कि हसदेव क्षेत्र बीते क़रीब एक दशक से अडानी समूह के ख़िलाफ़ विराट आदिवासी आंदोलन का केंद्र है.