प्रभात रंजन हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों के बीच विचाराधारा को लेकर प्रचलित एक ग़लतफ़हमी को रेखांकित करते हैं और उस अवधारणा को तोड़ते हैं जिसके तहत तथाकथित प्रगतिशील तबका तुलसीदास,अज्ञेय आदि में रुचि लेने वाले विद्यार्थियों को दक्षिणपंथी करार दे देता था.