प्रेमचंद के लिए साहित्य राजनीति के आगे चलने वाली मशाल थी

प्रेमचंद मानते थे कि भारत न सिर्फ ब्रिटिश उपनिवेश के अधीन है बल्कि एक आंतरिक उपनिवेश भी है जो यहां के विशाल श्रमिक समाज को ग़ुलाम बनाए हुए है. जहां वे पूंजीवादी शोषण से मुक्ति की बात करते हैं, वही सामंती जकड़न, ब्राह्मणवाद, सांप्रदायिकता जैसे विचारों से भी उनका अनवरत संघर्ष चलता रहा है.

पाश की कविता में स्वप्न और संघर्ष का स्थाई भाव है… वे सपनों को जिलाए रखते हैं

विशेष: क्रांतिकारी सपने देखता है. वह उसे विचार व कर्म की आंच में पकाता है. वह शहीद होकर भी संघर्ष की पताका को गिरने नहीं देता. उसे अपने दूसरे साथी के हाथों में थमा देता है. शहीद भगत सिंह ने जिस आज़ाद भारत का सपना देखा था, पाश उसे अपनी कविता में विस्तार देते हैं.

वरवरा राव: कवि जीता है अपने गीतों में, और गीत जीता है जनता के हृदय में…

विशेष: मुक्तिबोध ने कहा था ‘तय करो किस ओर हो तुम?’ और ‘पार्टनर, तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?’ वरवरा राव इस सवाल से आगे के कवि हैं. वे तय करने के बाद के तथा पॉलिटिक्स को लेकर वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाले कवि हैं. उनके लिए कविता स्वांतः सुखाय या मनोरंजन की वस्तु न होकर सामाजिक बदलाव का माध्यम है.