यह सरकार लघु उद्योगों, बेरोजगारी और कृषि क्षेत्र के हालातों को लेकर शुतुरमुर्गी रवैया अपनाए हुए है. समस्याओं को स्वीकार न करने से समस्याएं समाप्त नहीं हो जाती हैं. न ही कैबिनेट में फेरबदल कर देने से ही इन्हें सुलझाया जा सकता है.
नोटबंदी को लेकर रिज़र्व बैंक के हालिया आंकड़ों पर अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार से द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु की बातचीत.
एक के बाद एक नोटबंदी और जीएसटी को लागू किए जाने को व्यापक स्तर पर रुकावट पैदा करने वाले कदमों के तौर पर देखा जा रहा है.
नीतीश मुख्यमंत्री पद के तथाकथित ‘बलिदान’ के कुछ ही घंटों के भीतर भाजपा के समर्थन से फिर उसी कुर्सी पर काबिज़ हो गए, जो प्रदेश की जनता द्वारा दिए गए जनादेश से धोखा करने जैसा है.
जीएसटी को लागू किए जाने से पहले सरकार ने छोटे कारोबारियों की चिंताओं को नज़रअंदाज़ किया. किसी को जीएसटी के जटिल प्रारूप के कारण छोटे व्यापारियों पर पड़नेवाले प्रभावों का आकलन करने की फुर्सत नहीं है, जिन पर वकील और सीए अभी से ही शिकारी बाज़ की तरह झपट पड़े हैं.
जीएसटी के बारे में जागरूकता फैलाने और लोगों को समझाने की वित्त मंत्रालय की कवायद अब तक बड़े औद्योगिक समूहों तक ही सीमित रही है.
मोदी यह समझाने की कितनी भी कोशिश करें कि उनके आने से बदलाव आया है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था से जुड़े अधिकांश क्षेत्रों में सरकार प्रगति करने के लिए जूझती नज़र आ रही है.
विधानसभा चुनावों में विभाजनकारी और भावनात्मक मुद्दों पर भाजपा को मिल रही जीत ने सरकार में यह भाव भरने का काम किया है कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी सब बढ़िया है.
मोदी की शख़्सियत से सीधी टक्कर में विपक्षी नेता काफी कमज़ोर ठहरते हैं. विपक्ष को अपने खेल का तरीका बदलना होगा.
सहारनपुर और फतेहपुर की हिंसा अगर पिछली सरकार के दौर में हुई होती, तो भाजपा समाजवादी पार्टी के खिलाफ ‘गुंडाराज’ का आरोप लगाते हुए आसमान सिर पर उठा चुकी होती.
उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत की व्याख्या आरएसएस ने गोरक्षा और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण जैसे अपने पुराने वैचारिक मुद्दों को उठाने के लिए मिली हरी झंडी के तौर पर की है.
उत्तर प्रदेश ही नहीं, दूसरे राज्य भी बैंकों को फ़सली क़र्ज़ माफ़ करने के लिए बॉन्ड (ऋण-पत्र) जारी कर सकते हैं. मगर ये बात सबको मालूम है कि इससे मामला हल नहीं होगा. केंद्र को इन बॉन्डों की गारंटी लेनी ही होगी.
वैश्विक अनुभव बताते हैं कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को जिन देशों में लागू किया गया वहां इसने अर्थव्यवस्था में छोटी अवधि से लेकर मध्यम अवधि तक का गंभीर व्यवधान उत्पन्न किया. भारत में जीएसटी के अधपके रूप से हमें इससे बेहतर की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.
एक स्पष्ट और निर्णायक हिंदुत्व को आर्थिक विकास की व्यापक परियोजना का अभिन्न अंग बना दिया गया है. आने वाले समय में इसके कई और आयाम हमारे सामने धीरे-धीरे प्रकट होंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘नैतिक शुद्धिकरण’ प्रोजेक्ट ने जाति की दीवारों को तोड़ने और एक व्यापक सामाजिक गठजोड़ तैयार करने में बड़ी भूमिका निभाई है.