हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान जताया था कि भारत की जीडीपी 2020 में -10.3 फीसदी रह सकती है जबकि उनके अनुमान के मुताबिक़ साल 2021 में प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बांग्लादेश भारत को पीछे छोड़ देगा.
अमेरिका में बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए एंटी-ट्रस्ट क़ानूनों में बड़े बदलाव किए गए हैं, लेकिन भारत में कॉम्पिटीशन कमीशन ने डेटा और डिजिटल कारोबार क्षेत्र में वर्चस्व के दुरुपयोग की बस संभावना जताई है. डिजिटल एकाधिकार के लिए कोई तय नियम न होने से ऐसी कोई घटना होने के बाद कार्रवाई करना कठिन हो सकता है.
भारतीय अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए फंड का का इंतज़ाम करना एक राष्ट्रीय समस्या है. ऐसे समय में, ख़ासकर जब देश की अर्थव्यवस्था बाकी कई देशों के मुक़ाबले अधिक ख़राब है, तब केंद्र और राज्यों का क़र्ज़ लेने को लेकर उलझना अनुचित है.
वर्तमान आर्थिक स्थिति में भारत वैश्विक कंपनियों के लिए एक कम आकर्षक बाज़ार बन रहा है, जिसके संरचनात्मक रूप से ठीक होने में समय लग सकता है. कई वैश्विक ब्रांड भारत में या तो बड़े पैमाने पर निवेश घटाना चाहते हैं या अर्थव्यवस्था को देखते हुए आगे विस्तार के लिए निवेश नहीं कर रहे हैं.
ऐसे समय में जब भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग तबाह हो चुकी है, तब सुधारों के नाम पर किसानों और कामगारों के बीच उनकी आय को लेकर आशंकाएं और मानसिक परेशानियां पैदा करना सही नहीं है.
मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार होने के आशावादी अनुमानों का समर्थन न करते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने सतर्क किया है कि अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे सुधार होगा.
मुख्य आर्थिक सलाहकार आश्वस्त कर रहे हैं कि सरकार के पास भविष्य में सही समय पर जारी करने के लिए काफी संसाधन हैं. लेकिन सौ सालों में एक बार आने वाले आर्थिक संकट का सामना कर रही अर्थव्यवस्था के पास बस एक ही चीज़ की किल्लत होती है और वह है समय.
अगले छह महीनों में विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था में अधिक तेज़ी से होने वाले जिस सुधार को लेकर प्रधानमंत्री इतने आश्वस्त हैं, वह भारी-भरकम सरकारी ख़र्च के बिना असंभव लगता है. अर्थव्यवस्था को इतना नुकसान पहुंचाया जा चुका है कि सुधार की कोई कार्य योजना पेश करने से पहले गंभीरता से इसका अध्ययन करना ज़रूरी है.
सरकार ने राहत पैकेज का 90 फीसदी से ज्यादा हिस्सा कर्ज, ब्याज पर छूट देने इत्यादि के लिए घोषित किया है, जिसका फायदा बड़े बिजनेस वाले ही अभी उठा रहे हैं. यदि ज्यादा लोगों के हाथ में पैसा दिया जाता तो वे इसे खर्च करते और इससे खपत में बढ़ोतरी होती, जिससे अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में काफी मदद मिलती.
यदि आरबीआई द्वारा की गईं घोषणाओं और केंद्र के पहले कोरोना राहत पैकेज की राशि जोड़ दें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में करीब 13 लाख करोड़ रुपये की ही अतिरिक्त राशि बचती है, जिसका विवरण दिया जाना अभी बाकी है.
अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगता है कि भारत बाकी देशों की तरह लगातार चल रहे एक पूर्ण लॉकडाउन के प्रभाव को कम करने के लिए बड़ा आर्थिक पैकेज नहीं दे सकता तो उन्हें ज़रूरी तौर पर लॉकडाउन में छूट देने के बारे में सोच-समझकर अगला क़दम उठाना चाहिए.
जब सरकार कोरोना वायरस से मुक़ाबला करने के लिए आर्थिक गतिविधियां बंद करेगी तब मालूम होगा कि इससे बेरोज़गारी और बढ़ेगी, साथ ही लोगों की कमाई में गिरावट आएगी. ऐसे में देश के दिहाड़ी मज़दूरों और स्वरोज़गार में लगे लोगों के लिए इनकम ट्रांसफर सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिए.
यस बैंक द्वारा दिया गया कुल कर्ज़ वित्त वर्ष 2017 से 2019 के बीच 1,32,000 करोड़ रुपये बढ़ गया. बैंक ने अपने अस्तित्व के 17 वर्षों में जितना कर्ज़ दिया था, क़रीब उतना इन दो वर्षों में दिया गया. वे कॉरपोरेट कर्ज़दार कौन थे, जिन्हें निजी क्षेत्र के इस बैंक ने नोटबंदी और जीएसटी के बाद के दो सालों में बिना कुछ सोचे-समझे इतना कर्ज़ दिया?
वीडियो: उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के बाद नफ़रत भरे भाषण देने के लिए भाजपा नेताओं- कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा पर एफआईआर दर्ज कराने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस बारे में उनसे द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु की बातचीत.
पिछले साल सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक से 1.76 लाख करोड़ रुपये लेने का फ़ैसला किया. इस साल यह एलआईसी से 50,000 करोड़ से ज्यादा ले सकती है. बीपीसीएल, कॉन्कोर जैसे कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को पूरी तरह से बेचा जा सकता है.