क्या साहित्य सियासत से पंजे लड़ा सकता है?

नासिरा शर्मा ने कई फ़िलिस्तीनी रचनाकारों का अनुवाद किया है. उनकी हालिया किताब, फ़िलिस्तीन: एक नया कर्बला, में उनके अनुवादों के साथ इस विषय पर राजनीतिक निबंध भी शामिल हैं. वे इस लेख में अनुवाद प्रक्रिया से जुड़े अपने अनुभव साझा कर रही हैं. उनके अनुसार ये रचनाएं समय की छाती पर लिखी इबारतें हैं जो हथियारों के सामने तनकर खड़ी हैं.

अपने ही देश से खदेड़े जा रहे फ़िलिस्तीनी

पुस्तक अंश: 'फ़िलिस्तीन के लोगों के व्यवहार से लगता है कि उन्हें लोगों से मुहब्बत करना आता है. मैंने देखा कि कितनी छोटी-छोटी चीज़ों का वे ध्यान रखते थे. पूरे मिडिल-ईस्ट में बहुत मुहब्बत है, और बेपनाह मुहब्बत है हिंदुस्तान के लिए.'

‘कर्फ़्यू की रात’: हिंदुस्तान की रगों में बह रही सांप्रदायिकता का दस्तावेज़

पुस्तक समीक्षा: युवा कहानीकार शहादत के कहानी संग्रह ‘कर्फ़्यू की रात’ की कहानियां अपने परिवेश को न केवल दर्शाती हैं, बल्कि इसमें समय के साथ बदलते हिंदुस्तान की जटिलता, संघर्ष में पिसते नागरिकों की निराशा और जिजीविषा गहराई से दर्ज है.