नागरिक होने का अर्थ केवल ज़िंदा रहना और वोट डालना भर रह गया है

देश में चुनाव हो रहे हैं और लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर चिंताएं गहराती जा रही हैं. लोग बदहाल ज़िंदगियां जी रहे हैं, बीमारी, भूख, अत्याचार, दुर्घटना और हिंसक हमलों में मारे जा रहे हैं. अपमानित किए जा रहे हैं. उनके अधिकार दिन-ब-दिन कमज़ोर किए जा रहे हैं.

प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों और नेताओं के ‘चौकीदार’ बन जाने के मायने क्या हैं?

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि नाम लेबल होते हैं. लेबल से आप वस्तु के बारे में जान सकते हैं, इसीलिए सभी विज्ञापनबाज़ एक अच्छे नाम की खोज में रहते हैं. अगर नाम आकर्षक नहीं है तो जनता आपके माल को पूछेगी भी नहीं.

रोहित वेमुला: मुल्क के विवेक पर एक चिट्ठी की दस्तक के तीन साल

तीन साल हो गए, जब रोहित वेमुला के आख़िरी खत ने इस मुल्क के ज़मीर को झकझोर दिया. कम से कम उसकी आवाज़ हर उस दिमाग तक पहुंची जिसमें देखने की एक निगाह और सोचने के लिए कुछ पल मौजूद थे. लोग सहमत हुए, असहमत हुए, दुखी हुए, नाराज़ हुए, लेकिन इस ख़त के बारे में अपनी राय को लेकर उनमें कोई असमंजस नहीं था.