फ़िल्म 8 एएम मेट्रो: गुलज़ार के नज्मों की जीवंत पटकथा

ऐसा बहुत कम होता है कि कोई फ़िल्म आपके जेहन में कहीं अटक-सी जाए. निर्देशक राज राचकोंडा की फ़िल्म '8 एएम मेट्रो'ज़िंदगी के फ़लसफ़े को बड़े पर्दे पर उतारती है. यह रोजमर्रा जीवन की कथा को लेकर आगे बढ़ती है, और मानवीय संवेदना के साथ गहन मनोवैज्ञानिक पड़ताल भी करती है. अगर आप गुलज़ार के शब्दों से प्रेम करते हैं, तो यह फ़िल्म आपके लिए है.

श्याम बेनेगल: समानांतर सिनेमा की प्रखर आवाज़

श्याम बेनेगल सिनेमा और कैमरे के माध्यम से बेनेगल ने जीवन को बड़ी शिद्दत से जीया. उन्होंने फिल्मों को बनाने का एक तय फॉर्मूला के विपरीत यथार्थवादी रास्ता चुना. इतना ही नहीं उन्होंने सिने ट्रेंड को बदला, जहां हाशिए का समाज सिनेमा के केंद्र में आया.

‘एकांत में प्रार्थना’: गगन गिल और समकालीन हिंदी कविता का स्वर

गगन गिल को 'मैं जब तक आई बाहर' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा हुई है. उनकी कविताएं स्त्री मन के अकेलेपन, जीवन की क्षणभंगुरता और सामाजिक बदलाव को उकेरती हैं. उनका लेखन जीवन के स्याह पक्ष को आत्मसात करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा का गहन दर्शन प्रस्तुत करता है.