न्यूज़क्लिक केस: मोदी सरकार ‘टेरर फंडिंग’ पर गंभीर है, तो अमेरिका, चीन से संपर्क क्यों नहीं किया?

न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ दर्ज पुलिस केस के सही-गलत होने की बात न भी करें, तब भी उनके द्वारा लगाए गए आरोपों की गंभीरता को देखते हुए कथित साज़िशकर्ताओं का पता लगाने और उन पर मुक़दमा चलाने को लेकर मोदी सरकार के रुख़ पर कई सवाल उठते हैं.

एम-20: जी-20 नेताओं को समझना होगा कि बिना स्वतंत्र प्रेस के वैश्विक समस्याओं का हल संभव नहीं है

जी-20 और उसके बाहर के देशों में भी मीडिया के सामने पेश आ रही समान मुश्किलों और ख़तरों के बावजूद न ही जी-20 सरकारों की- और निश्चित रूप से न ही जी-20 के वर्तमान अध्यक्ष की मीडिया की आज़ादी पर चर्चा में कोई दिलचस्पी है.

‘लोकतंत्र में गिरावट’ के रिसर्च पेपर की जांच के लिए अशोका यूनिवर्सिटी पहुंचा इंटेलिजेंस ब्यूरो

हरियाणा की अशोका यूनिवर्सिटी के शिक्षक सब्यसाची दास ने एक रिसर्च पेपर में 2019 के लोकसभा चुनाव में ‘हेरफेर’ की संभावना ज़ाहिर की थी, जिस पर विवाद के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था. सोमवार को इंटेलिजेंस ब्यूरो के कर्मचारी उनसे बात करने के उद्देश्य से यूनिवर्सिटी पहुंचे थे.

बीबीसी पर आयकर छापा बताता है कि कैसे मोदी राज में लोकतंत्र का दम घुट रहा है

मोदी सरकार द्वारा मीडिया की आज़ादी और लोकतंत्र पर किए जा रहे हमलों के बारे में काफ़ी कुछ लिखा और कहा जा चुका है, लेकिन हालिया हमला दिखाता है कि प्रेस की स्वतंत्रता 'मोदी सेना' की मर्ज़ी की ग़ुलाम हो चुकी है.

धर्मांतरण के अधिकार पर मोदी सरकार का रवैया विवेक की स्वतंत्रता पर हमला है

बीते दिनों नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए एक हलफ़नामे में कहा है कि 'धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में अन्य लोगों को किसी विशेष धर्म में परिवर्तित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है.'

जिस विविधता पर ब्रिटेन को नाज़ है, उससे भारत को क्यों ऐतराज़ है

ऋषि सुनक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने पर भारतीयों को ख़ुश होने की जगह वास्तव में गंभीरता के साथ आत्ममंथन करना चाहिए कि हज़ारों सालों से हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा रही हमारी धार्मिक विविधता और सांस्कृतिक बहुलता का क्या हुआ.

केजरीवाल ‘प्रो-हिंदू’ या ‘एंटी-हिंदू’ हो न हों, मोदी के नक़्शे-क़दम पर ज़रूर हैं

अरविंद केजरीवाल के 'देश की तरक्की के लिए लक्ष्मी-गणेश का चित्र नोटों पर छापने' की सलाह से पहले देश ने पैसों के बारे में ऐसा अहमक़ाना प्रस्ताव 2016 में देखा था, जब देश के प्रधानमंत्री ने अचानक चलन में रहे अस्सी फीसदी नोटों को रातोंरात अवैध बताकर भ्रष्टाचार और काले धन पर अंकुश लगाने का दावा किया था.

क्या नरेंद्र मोदी का ‘कर्तव्य पथ’ उनके अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ने का प्रतीक है

नागरिकों को कर्तव्यपरायण होने के लिए प्रोत्साहित करना तानाशाही शासन का एक प्रमुख अंग है. इसे पहली बार आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी द्वारा लाया गया था. तब से जिन सरकारों ने भी आम लोगों के अधिकारों की अवहेलना की, उन्होंने अक्सर अपने फ़र्ज़ की बजाय नागरिकों के कर्तव्यों के महत्व को ही दोहराया.

पेगासस जासूसी मामला: सुप्रीम कोर्ट सच जानने से बस दो क़दम दूर है

पेगासस मामले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तकनीकी समिति के कोई निर्णायक निष्कर्ष न देने के बाद अदालत के पास सच्चाई जानने के दो आसान तरीके हैं. एक, केंद्रीय गृह मंत्री, एनएसए समेत महत्वपूर्ण अधिकारियों से व्यक्तिगत हलफ़नामे मांगना और दूसरा, समिति के निष्कर्षों की प्रतिष्ठित संगठनों से समीक्षा करवाना.

क्या भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी ख़त्म हो चुकी है

यूपी में बीते दिनों हुई दो गिरफ़्तारियां स्पष्ट करती हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब मौजूद नहीं है. या फिर जैसा कि ईदी अमीन ने एक बार कहा था कि 'बोलने की आज़ादी तो है, लेकिन हम बोलने के बाद की आज़ादी की गारंटी नहीं दे सकते.'

पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी: हिंदू कब मुसलमानों के साथ खड़े होंगे?

वीडियो: निलंबित भाजपा नेता- नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी के बाद भारत के कई राज्यों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे. अरब देशों ने भी विरोध दर्ज कराया था. उत्तर प्रदेश में प्रशासन ने हिंसा के आरोपियों के घर तक बुलडोज़र से गिरवा दिए. द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद से इन मुद्दों पर चर्चा की.

यासीन मलिक की उम्रक़ैद भारत की कश्मीर समस्या का हल नहीं है

क्या यासीन मलिक उन पर लगे आरोपों के लिए दोषी हैं? यह मानने का कोई कारण नहीं है कि वह नहीं है, लेकिन जो सरकार बरसों के संघर्ष का शांति से समाधान निकालने को लेकर गंभीर हैं, उनके पास ऐसे अपराधों से निपटने के और तरीके हैं.

राजद्रोह पर रोक सही है पर अदालतों को सरकारी दमन के ख़िलाफ़ खड़े होना चाहिए

ऐसी संभावना है कि राजद्रोह का आसन्न अंत देश भर में पुलिस (और उनके आकाओं) को आलोचकों को डराने और पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व विपक्षी नेताओं को चुप कराने के तरीके के रूप में अन्य क़ानूनों के उपयोग को बढ़ा देगा.

भारत के लोकतंत्र और मीडिया को बचाने की एक गुहार…

आज जब हम एक ऐसे ख़तरे से रूबरू हैं जहां सचमुच अपने लोकतंत्र को खो सकते हैं, हमारे लिए यह बहुत ज़रूरी है कि इस बात पर यक़ीन रखें कि हम इस तबाही से ख़ुद को बचा सकते हैं.

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