तामसिक भोजन पर रोक, अंडा-मांसाहार पर पाबंदी जैसी बातें भारत की जनता के वास्तविक हालात से कतई मेल नहीं खातीं, क्योंकि भारत की आबादी का बहुलांश मांसाहारी है. साथ ही, किसी इलाक़े विशेष की नीतियां बनाने के लिए लोगों के एक हिस्से की आस्था को वरीयता देना एक तरह से धर्म, जाति, नस्लीयता आदि आधार पर किसी के साथ भेदभाव न करने की संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन भी है.
इंग्लैंड की फुटबॉल टीम ने यूरो 2020 के दौरान 'ब्लैक लाइव्स मैटर' को समर्थन देने के लिए 'घुटनों पर बैठने' का निर्णय लिया है. खेल जगत के तमाम महानायक और मनोरंजन जगत के सम्राट, जो संवेदनशील मुद्दों पर मौन रहना चुनते हैं, शायद इंग्लैंड की टीम से कुछ सीख ले सकते हैं.
ग़लत तरीके से बिना गुनाह के एक लंबा समय जेल में गुज़ारने वाले लोगों द्वारा झेली गई पीड़ा की जवाबदेही किस पर है? क्या यह वक़्त नहीं है कि देश में पुलिस प्रणाली और अपराध न्याय प्रणाली को लेकर सवाल खड़े किए जाएं?
मणिपुर के मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम में घुटनों पर झुके स्कूली बच्चों को देखकर विचार आता है कि आज वरिष्ठों के सामने सजदे में खड़े होने के लिए मजबूर करने वाला वातावरण उन्हें सवाल करने के लिए तैयार करेगा या सब चीज़ें चुपचाप स्वीकार करने के लिए?
मोटेरा स्टेडियम का नाम बदलना दुनिया के इतिहास में- ख़ासकर उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष कर आज़ाद हुए मुल्कों में, ऐसा पहला उदाहरण है, जहां किसी स्वाधीनता सेनानी का नाम मिटाकर एक ऐसे सियासतदां का नाम लगाया गया हो, जिसका उसमें कोई भी योगदान नहीं रहा.
पुस्तक समीक्षा: विश्लेषकों की निगाह में भारत अधिनायकवाद के स्याह गर्त में जाता दिख रहा है और विभाजक राजनीति के लगातार वैधता हासिल करने को लेकर चिंता की लकीरें बढ़ रही हैं. प्रख्यात शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता राम पुनियानी की नई किताब इस बहस में एक नया आयाम जोड़ती है.
यह मानने के पर्याप्त आधार हैं कि राम मंदिर के भूमि पूजन के लिए चुना गया यह समय एक छोटी रेखा के बगल में बड़ी रेखा खींचने की क़वायद है, ताकि नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की बढ़ती असफलताएं जैसे- कोविड कुप्रबंधन, बदहाल होती अर्थव्यवस्था और गलवान घाटी प्रसंग- इस परदे के पीछे चले जाएं.
समाज या विज्ञान को देखें, तो बार-बार इस बात से रूबरू होंगे कि चीज़ें इसीलिए बदल सकीं कि चंद लोगों ने पहले से चली आ रही गति की दिशा को लेकर प्रश्न किए और नतीजन वे अक्सर अकेले ही इस लड़ाई को लड़ते हुए दिखाई दिए.
भारतीयों के मन में व्याप्त दोहरापन यही है कि वह ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर होने वाली ज़्यादतियों से उद्वेलित दिखते हैं, पर अपने यहां के संस्थानों में आए दिन दलित-आदिवासी या अल्पसंख्यक छात्रों के साथ होने वाली ज़्यादतियों को सहजबोध का हिस्सा मानकर चलते हैं.
एक ऐसे समय में जब विकसित कहे जाने वाले देशों में कोरोना संक्रमितों की तादाद बढ़ती जा रही है, अस्पतालों से महज़ मरीज़ों की ही नहीं बल्कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के गुजरने ख़बर आना अपवाद नहीं रहा, क्यूबा सरीखे छोटे-से मुल्क़ ने इससे निपटने में अपनी गहरी छाप छोड़ी है.
आज जब पूरे देश में धार्मिक स्थलों को खोला जा रहा है, तब बीते दिनों 'सांप्रदायिक' होने का इल्ज़ाम झेलने वाले केरल के मलप्पुरम ज़िले ने अपनी अलग राह चुनी है. कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनज़र वहां की पांच हज़ार मस्जिदों को अनिश्चितकाल तक बंद रखने समेत कई धार्मिक स्थलों को न खोलने का फ़ैसला लिया गया है.
कोरोना संक्रमण की भयावहता के चलते इसकी वैक्सीन के मानव परीक्षणों के लिए एक अमेरिकी महिला के सामने आने के बाद कई वालंटियर्स सामने आए हैं. यह उस समय के बिल्कुल उलट है जब जीवविज्ञानी वाल्देमार हाफकिन को प्लेग के टीके का सबसे पहला प्रयोग स्वयं पर करना पड़ा था क्योंकि कोई और इसके लिए तैयार ही नहीं था.
इन दिनों कहा जा रहा है- हाथ धोएं, घरों तक सीमित रहें, सामाजिक दूरी बनाए रखें. यह सारे कदम ज़रूरी हैं, मगर सरकार की अपनी ज़िम्मेदारी का क्या? मिसाल के तौर पर अगर स्वास्थ्य प्रणाली मज़बूत नहीं रखी तो फिर तमाम ध्यान रखने के बावजूद जिन्हें संक्रमण हो जाएं उनके बड़े हिस्से के लिए मरने के अलावा कोई चारा नहीं है.
महाराष्ट्र के एक स्कूल द्वारा अप्रत्याशित कदम उठाते हुए बच्चों को श्मशान भूमि की सैर पर ले जाया गया. इस सैर का मकसद समाज में श्मशान को लेकर फैली तमाम भ्रांतियों को मिटाते हुए बच्चों में वैज्ञानिक नज़रिया विकसित करना था.
नागरिकों की ‘शुद्धता की कवायदें और अंधराष्ट्रवाद’ वह खाद-पानी है, जिस पर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी विचार मज़बूती पाता है.