आंबेडकर के रेडिकल पक्ष से कौन डरता है?

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के रेडिकल पक्ष को नज़रअंदाज़ करने के पीछे की राजनीति बहुत पुरानी है. शासक जमातें उत्पीड़ित तबकों से आने वाले नेताओं को सीमित करके प्रस्तुत करती हैं.

ज़ुबां पर आंबेडकर, दिल में मनु

लोग अब समझने लगे हैं कि अपने संकीर्ण एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए सत्ताधारी जमातें भले डॉ आंबेडकर की मूर्तियां लगवा दें, मगर तहेदिल से वह मनु की ही अनुयायी हैं.

हमारे ‘महान’ खिलाड़ी मुश्किल समय में जनता के साथ क्यों नहीं खड़े होते?

हमारे महान खिलाड़ियों को जनता सिर-आंखों पर बैठाती है, मगर जनता पर जब ऐसी कोई त्रासदी बरपा करती है- जिसके लिए सरकार या समाज का एक वर्ग ज़िम्मेदार हो तो वे ऐसे विलुप्त हो जाते हैं, गोया इस दुनिया में रहते न हों.

एक के बाद एक भड़काऊ बयान दे रहे श्रीश्री रविशंकर पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?

अयोध्या के संबंध में श्रीश्री का यह दावा करना कि अगर अदालत हिंदुत्ववादियों की मांग को ख़ारिज करता है तो हिंदू हिंसा पर उतर आएंगे, इसके ज़रिये वह न केवल क़ानून के राज को चुनौती दे रहे थे बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों पर भी सवाल खड़ा कर रहे थे.

क्या ‘जूठन’ पाठ्यक्रमों से बाहर कर दी जाएगी?

हिमाचल विश्वविद्यालय में ओम प्रकाश वाल्मीकि की ‘जूठन’ बीते 3 सालों से पढ़ाई जा रही थी, तब भावनाएं अचानक कहां से आहत हो गईं? क्या इसका ताल्लुक़ राज्य में हुए हालिया सत्ता परिवर्तन से है?

अतार्किकता और अवैज्ञानिकता के मामले में क्या हम पाकिस्तान बनने की ओर अग्रसर हैं?

भारत में बंददिमागी एवं अतार्किकता को जिस किस्म की शह मिल रही है और असहमति की आवाज़ों को सुनियोजित ढंग से कुचला जा रहा है, उसे रोकने की ज़रूरत है ताकि संविधान को बचाया जा सके.

जिस संविधान की कसमें खाते हैं उसी को मिटाने की ​बात करते हैं

मुल्क की बागडोर संभालते वक्त ‘संविधान को सबसे पवित्र किताब’ कहने वाले तथा अपने आप को ‘आंबेडकर का शिष्य’ घोषित करने वाले प्रधानमंत्री ने भी अनंत कुमार हेगड़े के बयान पर खामोशी बरतना मुनासिब समझा.

बाबरी विध्वंस के 25 साल: जलती मशालों के बीच का अकेलापन

बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके बाद के रक्तरंजित दौर की तरफ पच्चीस साल बाद फिर लौटते हुए हम नए सिरे से उस पुराने द्वंद्व से रूबरू होते हैं जो हर ऐसे सांप्रदायिक दावानल के बहाने उठता है.

पूरे देश में जादू-टोना विरोधी क़ानून बनाने की सख़्त ज़रूरत

महाराष्ट्र और कर्नाटक के बाद पूरे देश में अंधश्रद्धा विरोधी क़ानून की सख़्त ज़रूरत है ताकि आस्था की दुहाई देते हुए तमाम ग़रीब, वंचितों को छल से बचाया जा सके.

स्टैच्यू आॅफ यूनिटी: सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ते बच्चे और 121 करोड़ रुपये का चंदा

देश के वंचितों के स्वास्थ्य की बदतर स्थिति का एक तरह से मखौल उड़ाती सरदार पटेल की मूर्ति के लिए 121 करोड़ के चंदे की ख़बर पर चर्चा नहीं हो सकी.

पीएन ओक: वो व्यक्ति जिसने ताजमहल को तेजोमहालय बताने वाले विवाद की शुरुआत की

भारत के इतिहास को सेक्युलर और मार्क्सवादी इतिहासकारों द्वारा गढ़ा बताने वाले ओक दावा करते हैं कि क्रिश्चियनिटी और इस्लाम ‘वैदिक’ विश्वासों की विकृतियों के तौर पर पैदा हुए हैं.

यह समाज और इसका वातावरण बच्चों के अनुकूल नहीं है

यह ‘अच्छे स्पर्श’ और ‘बुरे स्पर्श’ की सरलीकृत बायनरी से आगे बढ़ने का वक़्त है. बच्चों के लिए न विशेष अदालतें हैं, न काउंसलिंग के इंतज़ाम हैं, न ही सुरक्षित वातावरण जिसमें वह पल-बढ़ सकें.

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