उम्मीदों के गीतकार शैलेंद्र: तुम हमको याद आओगे…

पुस्तक अंश: शैलेंद्र के हिस्से में कई प्रेम-त्रिकोण फ़िल्में आईं. ऐसी ही एक फिल्म थी ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ जिसका सबसे चमकदार गीत बना— अजीब दास्तां है ये कहां शुरू कहां ख़तम, ये मंज़ि‍लें हैं कौन-सी न वो समझ सके न हम...

‘विविध भारती आम आदमी के जीवन का बैकग्राउंड म्यूज़िक है’

तीन अक्टूबर को विविध भारती की स्थापना के 61 बरस पूरे हो गए. इतने बरस की विविध भारती की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उसने हमारी ज़िंदगी को सुरीला बनाया है.