कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदी में ऐसा आलोचनात्मक माहौल बन गया है कि भाषा को महत्व देना या कि उसकी केंद्रीय भूमिका की पहचान करना, उस पहचान को ब्योरों में जाकर सहेजना-समेटना अनावश्यक उद्यम मान लिया गया है.
वीडियो: वरिष्ठ लेखक और साहित्यकार मृदुला गर्ग से रीतू तोमर की बातचीत.
पुस्तक समीक्षा: अपनी किताब ‘नो नेशन फॉर वीमेन’ में प्रियंका दुबे इस बात की पड़ताल करती हैं कि कैसे भारत में महामारी की तरह फैले बलात्कार का कारण हवस कम, पितृसत्ता ज़्यादा है. कैसे औरत को ‘उसकी जगह’ दिखाने के लिए बलात्कार का सहारा लिया जाता है.
एक शहर जिससे ग़ालिब को कोई शिकवा-शिकायत कभी न रही वो बनारस था. वह जैसे-जैसे बनारस को जानते गए, उसमें खोते गए. ग़ालिब ने बनारस की याद में फ़ारसी में 108 मिसरों की एक मसनवी लिखी. नाम रखा- चिराग़-ए-दैर; अर्थात मंदिर का दीप. बनारस के लिए यह उपमा अद्वितीय थी.