रामकथा का वर्षा कांड: अयोध्या का महल टपक रहा है

'मैं अयोध्या आ गया हूं. लेकिन लग रहा है वनवास अभी तक ख़त्म नहीं हुआ है. जब वन में रहता था, पावस ऋतु में कुटिया की छत टपकती थी और अब इस तथाकथित भव्य मंदिर में भी भीग रहा हूं.'

इतिहास की बावरी स्त्रियां

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अरुंधति सुब्रमण्यम की किताब ‘वाइल्ड वीमेन’ के परिप्रेक्ष्य में यह जानना बहुत आश्वस्तिकर है कि भारत में पहले भी स्त्री बोलती रही है, आवेग, समझ, निर्भीकता और साहस से.

प्रेमचंद: समाज के साथ खड़ा एक निर्भीक लेखक

जन्मदिन विशेष: प्रेमचंद ने 'चंद्रकांता संतति' पढ़ने वाले पाठकों को 'सेवासदन' का पाठक बनाया. साहित्य समाज की अनुकृति मात्र नहीं बल्कि समाज को दिशा भी दिखा सकता है, यह प्रेमचंद से पहले कल्पना करना असंभव था.

अरुणा रॉय का संस्मरण सिर्फ उनका नहीं, एक पूरे सामुदायिक आंदोलन का संस्मरण है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अरुणा रॉय अथक स्वप्नदर्शी कर्मशील हैं. उन्होंने मौलिक नवाचार किया है पर वे जड़ों पर भी जमी रही हैं. उनके संस्मरण में ‘मैं’ बहुत सहजता से ‘हम’ में बदलता रहता है.

क्या फांसी तक गोडसे का आरएसएस से जुड़ाव था?

पुस्तक समीक्षा: धीरेन्द्र के. झा की ‘गांधी का हत्यारा गोड़से' किताब से आरएसएस के उस दुरंगेपन की पहचान अब बहुत आसान हो गई है जिसके तहत कभी वह नाथूराम से पल्ला छुड़ाता है और कभी उसका ‘यशगान’ करने वालों को अपना नया 'आइकाॅन' बना लेता है.

अरुणा रॉय: देवडूंगरी की दीपशिखा

इस देश के गांवों में बसने वाले लोगों को साथ लेकर बदलाव की मुहिम शुरू करना और एक बदलाव को सामने ला देना एक बड़ी बात है. अरुणा रॉय ने यह कर दिखाया है.

धर्म के नाम पर हिंसा करना लोकप्रिय हो गया है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करने का ठेका न तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को, न भाजपा को, न किसी राजनेता को मिला हुआ है. ये सभी स्वनियुक्त ठेकेदार हैं, जिनका सामाजिक आचरण हिंदू धर्म के बुनियादी सिद्धांतों से मेल नहीं खाता.

‘हिंदू समाज ने राजनीतिक ग़ुलामी भोगी, लेकिन वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा कायर कभी नहीं रहा’

पुस्तक अंश: जो अपने घोषित सिद्धांतों पर नहीं टिक सकता और जो सुविधा के मुताबिक सिद्धांत बदलता रहता है वह कायर है या वीर?

शहर कब अपने लेखक को याद करना सीखेंगे

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: साहित्य के अपने समाज के अलावा व्यापक हिंदी समाज में कौन इलाहाबाद को निराला-महादेवी के शहर, बनारस को प्रसाद-रामचंद्र शुक्ल के शहर, पटना को दिनकर-नागार्जुन-रेणु के शहर की तरह जानता-पहचानता है?

बंगनामा: आधी चुस्की चाय का रहस्य

भारत का एक चौथाई चाय उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है. यहां चाय पीने का पुराना रिवाज भी है. लेकिन अगर बंगाल के निवासियों को यह पेय इतना पसंद है तो इतने छोटे बर्तन में चाय क्यों पीते हैं? बंगनामा स्तंभ की पांचवीं क़िस्त.

‘कर्फ़्यू की रात’: हिंदुस्तान की रगों में बह रही सांप्रदायिकता का दस्तावेज़

पुस्तक समीक्षा: युवा कहानीकार शहादत के कहानी संग्रह ‘कर्फ़्यू की रात’ की कहानियां अपने परिवेश को न केवल दर्शाती हैं, बल्कि इसमें समय के साथ बदलते हिंदुस्तान की जटिलता, संघर्ष में पिसते नागरिकों की निराशा और जिजीविषा गहराई से दर्ज है.

बंगनामा: बंगाल के घर और पोखर

पोखर बंगाल की जीवन शैली का अभिन्न अंग है. घर की महिलाएं पोखर के जल से रसोई के बर्तन साफ़ करतीं और कई बार उसके पानी से खाना भी पकाती थीं. परिवार के सदस्य उसके जल से सुबह मंजन करते और दोपहर में उसमें स्नान भी.
बंगनामा स्तंभ की चौथी क़िस्त.

‘सिनेमा की बोल्डनेस साहित्य से अलग है, साहित्य में बोल्ड का अर्थ हुआ अपने लिए स्पेस की चाह’

जानकी पुल ट्रस्ट ने लेखक शशिभूषण द्विवेदी की स्मृति में एक सालाना पुरस्कार देने की घोषणा की है. साल 2023 के लिए पहला पुरस्कार दिव्या विजय को दिया जाएगा. उनके साथ तसनीम ख़ान का संवाद.

तस्वीरों का स्वामी, स्वामी की तस्वीरें

जगदीश स्वामीनाथन की वर्षगांठ पर पढ़ें कृष्ण बलदेव वैद का विलक्षण निबंध: 'स्वामी गंभीर तो है, गांभीर्यग्रस्त नहीं. उसकी कई तस्वीरें कई तरह की शरारतों और शैतानियों से खेलती हुई महसूस होती है, स्वामी रंगों और रेखाओं से उसी तरह खेलता है, जिस तरह कुछ लेखक अपने शब्दों और प्रतीकों से, कुछ गायक अपने स्वर-ताल से, कुछ अभिनेता अपनी अदाओं-मुद्राओं से.'

नैयरा नूर: सरहदों को घुलाती आवाज़

नैयरा नूर की पैदाइश हिंदुस्तान की थी, पर आख़िरी सांसे उन्होंने पाकिस्तान में लीं. वे इन दोनों मुल्कों की साझी विरासत की उन गिनी चुनी कड़ियों में थी, जिन्हें दोनों ही देश के संगीत प्रेमियों ने तहे-दिल से प्यार दिया.

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