क्यों विशेष होती है 29 फरवरी

सर्वथा खगोलीय कारणों से किए गए लीप ईयर के निर्धारण से विभिन्न देशों में समय के साथ अनेक रोचक सामाजिक व सांस्कृतिक मान्यताएं भी जुड़ीं. कहीं लीप ईयर को उल्लास का अवसर मानकर उसकी ख़ुशी मनाने के लिए सार्वजनिक छुट्टी की मांग की जाती है तो कहीं इसे अशुभ क़रार दिया जाता है.

झारखंडः आदिवासियों और झामुमो कैडरों की गोलबंदी के संकेत क्या हैं

हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा को ऐसे समय में विपरीत परिस्थतियों का सामना करना पड़ा है, जब कुछ ही दिनों में लोकसभा चुनाव हैं और इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. हालांकि, ऐसी स्थिति में निकाली जा रही झामुमो की 'न्याय यात्रा' को आदिवासी समुदाय का खासा समर्थन मिल रहा है.

हेट स्पीच की 75 प्रतिशत घटनाएं भाजपा शासित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हुईं: रिपोर्ट

अमेरिका स्थित संगठन ‘इंडिया हेट लैब’ द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, जहां साल 2023 की पहली छमाही में हेट स्पीच 255 घटनाएं हुईं, वहीं दूसरी छमाही में यह संख्या बढ़कर 413 हो गई यानी इनमें 62% की वृद्धि’ दर्ज की गई. 36% यानी 239 घटनाओं में ‘मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा का प्रत्यक्ष आह्वान शामिल था.

लोकतंत्र, संविधान और सच की रक्षा करने में विफल रहा है मीडिया: जस्टिस कुरियन जोसेफ

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस कुरियन जोसेफ ने एक कार्यक्रम में मीडिया को लेकर कहा कि लोकतंत्र पर सबसे बड़ा आघात यह है कि इसके चौथे स्तंभ मीडिया ने देश को हताश किया है. वे लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करने, सच्चाई का बचाव करने में विफल रहे हैं.

निर्भयता ऐसे नहीं आती: उसके लिए जतन ज़रूरी है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: आज अगर साहित्य और कलाएं निर्भयता का परिसर नहीं हैं, अगर वे निर्भय नहीं करतीं तो यह उनका नैतिक और सभ्यतामूलक कदाचरण होगा. भय के आगे आत्मसमर्पण करना भारतीय प्रश्नवाची परंपरा, लोकतंत्र और साहित्य-कलाओं की सामाजिक ज़िम्मेदारी के साथ विश्वासघात के बराबर होगा.

विपक्ष की सबसे बड़ी समस्या उसका बिखराव नहीं, आत्मविश्वास खो देना है 

विपक्ष की सबसे बड़ी समस्या यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में अपने आक्रामक हिंदुत्व कहें या बहुसंख्यकवाद की बिना पर समता, बंधुत्व और धर्मनिरपेक्षता जैसे उदार संवैधानिक मूल्यों को आक्रांत कर देश के राजनीतिक विमर्श को इस हद तक बदल दिया है कि हतप्रभ विपक्ष इन मूल्यों की बिना पर उससे जीतने का विश्वास ही खो बैठा है.

ईवीएम से मतदान लोकतंत्र के लिए सर्वोपरि माने जाने वाले किसी भी सिद्धांत का पालन नहीं करता

मत-पत्रों की पूर्ण पारदर्शिता के विपरीत, ईवीएम-वीवीपैट प्रणाली पूरी तरह से अपारदर्शी है. सब कुछ एक मशीन के भीतर एक अपारदर्शी तरीके से घटित होता है. वहां क्या हो रहा है, उसकी कोई जानकारी मतदाता को नहीं होती. न ही उसके पास इस बात को जांचने या संतुष्ट होने का ही कोई मौका होता है कि उसका मत सही उम्मीदवार को ही गया है.

दिल्ली: जन सुविधा के कर्मचारियों से ले रहे अत्यधिक काम, लेकिन महीनों से नहीं किया वेतन भुगतान

दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड दिल्ली में 662 से अधिक जन सुविधा परिसर चलाता है, जो झुग्गी बस्तियों में रहने वाली आबादी को खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए सेवा प्रदान करते हैं. परिसरों में कार्यरत केयरटेकर, सुपरवाइज़र और सफाई कर्मचारी बताते हैं कि उन्हें महीनों से भुगतान नहीं किया गया है. पीएफ और ईएसआईसी की सुविधा भी नहीं दी जा रही है.

दक्षिणी राज्य केंद्र सरकार पर कर हस्तांतरण में कम हिस्सेदारी का आरोप क्यों लगा रहे हैं?

नवीनतम जीएसटी विवाद ने केंद्रीकरण और क्षेत्रीय स्वायत्तता के बीच नाजुक संतुलन को उजागर किया है. कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के राजनीतिक दलों के नेता करों के हस्तांतरण में दक्षिणी राज्यों के साथ कथित अन्याय को लेकर केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. केंद्र पर राज्यों के विकास में बाधा डालने का आरोप है.

कांग्रेस के हिंदुत्व की होड़ में शामिल होने की विवशता भाजपा के लिए अमृतकाल साबित हुआ है

छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा राम वनगमन पथ परियोजना के क्रियान्वयन का मक़सद समाज में लोगों के बीच जातिगत और लैंगिक भूमिकाओं की जड़ों को और भी मज़बूत करना था. इसका क्रियान्वयन हिंदुत्व सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के विस्तार के अलावा और कुछ भी नहीं था. असल में कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व एक धूर्ततापूर्ण नाम है. 

दिल्ली विश्वविद्यालय: एक संभावनाशील प्रोफ़ेसर की बेदख़ली

पुस्तक समीक्षा: दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में पिछले 14 सालों से एडहॉक कोटे से पढ़ा रहे और अब बेदख़ल कर दिए गए डॉ. लक्ष्मण यादव की हाल ही में प्रकाशित किताब ‘प्रोफ़ेसर की डायरी’ एडहॉक व्यवस्था की क्रूरता का पर्दाफ़ाश करती है. इन व्यवस्था ने ऐसा वर्ग विभाजन पैदा किया है, जहां संभावनाशील और मेहनतकश प्रोफ़ेसरों को शोषण की अंतहीन चक्की में झोंक दिया जाता है.

ज्ञानपीठ ने साहित्य से फेर ली पीठ

ज्ञानपीठ पुरस्कार की 2023 के लिए की गई ताज़ा घोषणा में चर्चित अमृतकाल की अनुगूंज साफ़ सुनी जा सकती है. अकादमियां तो सरकार की छाया में काम करती हैं इसलिए जब-तब शायद विचलित हो जाएं, मगर साहित्य समुदाय में ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा ने बड़ी हलचल पैदा की है. सवाल उठने लगे हैं कि क्या ज्ञानपीठ ने समझौते का रास्ता चुन लिया है?

नामवर सिंह: सत्य के लिए किसी से नहीं डरना चाहिए, गुरु से भी नहीं और वेद से भी नहीं

पुण्यतिथि विशेष: नामवर सिंह आधुनिक कविता और नई कहानी के अब तक के सबसे महत्वपूर्ण व्याख्याकार हैं. ऐसे व्याख्याकार, जिसने कविता के नए प्रतिमानों की खोज की तो तात्कालिकता के महत्व को भी रेखांकित किया. उनके व्याख्यानों की लंबी श्रृंखला ऐलान करती है कि उन्होंने हिंदी की वाचिक परंपरा को न केवल समृद्ध किया, बल्कि नई पहचान भी दी.

कृष्णा सोबती: क्या एक लेखक को उसकी लेखनी से जाना जा सकता है?

जन्मदिवस विशेष: साहित्य में स्त्री की उपस्थिति एक विचारणीय बात है. जिस प्रकार से कला-संस्कृति-समाज सब पुरुषों द्वारा परिभाषित और व्याख्यायित रहे हैं, ऐसे में स्त्री और उसकी भूमिका को भी प्राय: पुरुषों ने परिभाषित किया है. इसीलिए जब स्त्री और उसके इर्द-गिर्द निर्मित संसार को एक स्त्री अभिव्यक्त करती है तो एक अलग दृष्टि-एक अलग पाठ की निर्मिति होती है.

क्या हल्द्वानी में ‘मस्जिद-मदरसे’ के ध्वस्तीकरण और उससे उपजी हिंसा की न्यायिक जांच की जाएगी?

हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में कथित ‘अवैध मस्जिद और मदरसे’ के ध्वस्तीकरण ने ज़िला प्रशासन की कार्यप्रणाली की कथित ख़ामियों को उजागर किया है. उत्तराखंड की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार को भी इस मामले में अपना पक्ष स्पष्ट करना है कि जहां तक अल्पसंख्यक अधिकारों का सवाल है, उनके अनुपालन में वह आज तक कितनी चुस्त रही है.

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