नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ नई दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों ने शुक्रवार सुबह संसद तक मार्च निकालने की घोषणा की थी. हालांकि उन्हें विश्वविद्यालय के पास में ही रोक लिया गया.
बीते एक सप्ताह से दिल्ली विश्वविद्यालय के एडहॉक शिक्षक दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के नेतृत्व में स्थायी नियुक्ति को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. नियुक्ति के अलावा इनकी कई और मांगें हैं, जिनमें वीसी का इस्तीफ़ा भी शामिल है.
बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान फैकल्टी के साहित्य विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर फिरोज खान की नियुक्ति का पिछले एक महीने से कुछ छात्र विरोध कर रहे थे. छात्रों का कहना था कि जैन, बौद्ध और आर्य समाज से जुड़े लोगों को छोड़कर किसी भी गैर हिंदू को इस विभाग में नियुक्त नहीं किया जा सकता.
बीएचयू के कुछ छात्र संस्कृत विभाग में डॉ. फ़िरोज़ ख़ान की नियुक्ति का विरोध उनके मुस्लिम होने की वजह से कर रहे हैं. डॉ. ख़ान की नियुक्ति का संस्कृत विभाग के दलित प्रोफेसर ने समर्थन किया था.
जेएनयू में फीस बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ चल रहे विरोध के बीच भारतीय जनसंचार संस्थान में भी फीस बढ़ाने को लेकर विरोध शुरू हो गया है. बीते 10 सालों में दोगुनी से अधिक बढ़ चुकी फीस को कम करने की मांग को लेकर संस्थान के छात्र पिछले तीन दिनों से धरने पर बैठे हैं.
जेएनयू कोई द्वीप नहीं है, वहां हमारे ही समाज से लोग पढ़ने जाते हैं. जो बात उसे विशिष्ट बनाती है, वो है उसके लोकतांत्रिक मूल्य. इनका निर्माण किसी एक व्यक्ति, पार्टी या संगठन ने नहीं, बल्कि भिन्न प्रकृति और विचारधारा के लोगों ने किया है. यदि ऐसा नहीं होता, तब किसी भी सरकार के लिए इसे ख़त्म करना बहुत आसान होता.
आईआईटी मद्रास में प्रथम वर्ष की छात्रा फ़ातिमा लतीफ़ ने नौ नवंबर को छात्रावास में आत्महत्या कर ली थी. केरल मूल की छात्रा के पिता ने आईआईटी के एक प्रोफेसर पर उत्पीड़न का आरोप लगाया है.
ऐसा क्यों है कि अलग-अलग जगहों से आने वाले बच्चे यहां आकर लड़ने वाले बच्चे बन जाते हैं? बढ़ी हुई फीस का मसला सिर्फ जेएनयू का नहीं है. घटी हुई आज़ादी का मसला भी सिर्फ जेएनयू का नहीं है.
हिंदू महासभा के नेता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर और उनके पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई हैं.
अजीब बात है कि देश के प्रधानमंत्री लगातार पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने की बात कह रहे हैं लेकिन 5000 बच्चों को पढ़ाने के लिए देश की सरकार के पास पैसा नहीं है.
वीडियो: दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में बीते तीन हफ्तों से फीस बढ़ोतरी को लेकर छात्र संगठनों का प्रदर्शन जारी है. इस मुद्दे पर द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी, द वायर के पत्रकार अविचल दुबे, आईसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एनसाई बालाजी और जेएनयू के छात्र अनिकेत सिंह के साथ चर्चा कर रही हैं.
जेएनयू शिक्षा और संघर्ष का अनूठा उदाहरण है. जेएनयू का यही अनूठापन वर्चस्वशाली ताकतों और कट्टरपंथियों की आंखों में खटकता है.
मानव संसाधन और विकास मंत्रालय ने फीस वृद्धि पर छात्रों के विरोध को लेकर उनसे और प्रशासन से बात करने के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है, जिसमें यूजीसी के पूर्व चेयरमैन प्रोफेसर वीएस चौहान, एआईसीटीई के चेयरमैन प्रोफेसर अनिल सहस्त्रबुद्धे और यूजीसी के सचिव प्रोफेसर रजनीश जैन शामिल हैं.
ऐसे सामाजिक पारिवारिक परिवेश, जिसमें उच्च शिक्षा की कल्पना डॉक्टरी-इंजीनियरिंग के दायरे से पार नहीं गई और नौकरी से परे शिक्षा को देखना एक तरह से अय्याशी और दूर की कौड़ी समझा जाता था, जेएनयू ने समझाया कि ये एक साज़िश है- समाज के बड़े तबके को बराबरी महसूस न होने देने की.
दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस में रक्षा मंत्रालय के स्वामित्व की ज़मीन पर एक निजी बिल्डर द्वारा उनतालीस मंज़िला इमारत का निर्माण शुरू होने के ख़िलाफ़ विश्वविद्यालय के शिक्षक और छात्र हड़ताल पर हैं. उनकी मांग है कि इस ज़मीन पर विश्वविद्यालय का हक़ है और यहां विद्यार्थियों के लिए हॉस्टल बनना चाहिए.