दो महीने से ज्यादा समय से चल रहे किसान आंदोलन के दौरान बीते 20 जनवरी तक कम से कम पांच लोग दिल्ली के विभिन्न प्रदर्शन स्थलों पर आत्महत्या कर चुके हैं. इसी तरह किसान आंदोलन के दौरान विभिन्न कारणों से कई किसानों की जान जा चुकी है.
वीडियो: अपने खेत में व्यस्त रहने वाला किसान समय-समय पर अपने लिए हक़ की आवाज़ बुलंद करता रहा है. देश की आज़ादी से पहले की बात हो या आज़ादी के बाद की किसान अपना हक़ हुक्मरानों से मांगते रहे हैं.
पिछले सत्तर दिनों से तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ हो रहे किसान आंदोलन का केंद्र बने धरनास्थलों में से एक ग़ाज़ीपर बॉर्डर पर बैरिकेडिंग बढ़ाने के साथ, कंटीले तार और कीलें गाड़ दी गई हैं. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इसका मक़सद दिल्ली और आसपास के इलाकों से आने वाले लोगों को रोकना है.
केंद्र के तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों के आह्वान पर शनिवार को देश के विभिन्न इलाकों में चक्काजाम किया गया. किसानों ने आंदोलन स्थलों के पास के क्षेत्रों में इंटरनेट पर रोक लगाए जाने, अधिकारियों द्वारा कथित रूप से उन्हें प्रताड़ित किए जाने और अन्य मुद्दों को लेकर देशव्यापी चक्काजाम की घोषणा की थी.
रालोद पार्टी के पूर्व विधायक वीरपाल सिंह राठी ने कहा कि 31 जनवरी को बड़ौत तहसील में एक महापंचायत में शामिल होने से एक दिन पहले उन्हें और छह अन्य लोगों को नोटिस मिला था. महापंचायत में फैसला किया गया था कि क्षेत्र के लोग दिल्ली की सीमाओं पर जारी आंदोलन में शामिल होने के लिए गाजीपुर और सिंघू बॉर्डरों के लिए कूच करेंगे.
क्या सरकार आंदोलनकारी अन्नदाताओं के इरादों से सचमुच डर गई है और इसीलिए ऐसी सियासत पर उतर आई है, जो अन्नदाताओं के रास्ते में दीवारें उठाकर, कंटीले तार बिछाकर और गिरफ़्तार करके उनसे कह रही है कि आओ वार्ता-वार्ता खेलें?
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि देश के विभिन्न राज्यों में आंदोलनरत किसानों की मौत के बारे में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है. क्या सरकार मृतक किसानों के परिवारों को किसान कल्याण कोष से वित्तीय सहायता प्रदान करेगी? इस प्रश्न का उत्तर तोमर ने ‘नहीं’ में दिया.
पूर्व नौकरशाहों ने एक खुले पत्र में नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के प्रदर्शन के प्रति केंद्र सरकार का रवैये की निंदा की है. उन्होंने 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के समय के घटनाक्रम को लेकर सवाल उठाया कि जब लाल क़िले पर किसानों के एक समूह ने राष्ट्रीय ध्वज के नीचे अपना झंडा फहराया था, तब पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए कुछ भी क्यों नहीं किया था?
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने कहा है कि शांतिपूर्ण एकत्र होने एवं अभिव्यक्ति के अधिकारों की हिफ़ाज़त की जानी चाहिए. यह ज़रूरी है कि सभी के मानवाधिकारों की रक्षा करते हुए न्यायसंगत समाधान तलाशा जाए.
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने दिल्ली के टिकरी, सिंघू और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पुलिस द्वारा की गई क़िलेबंदी को लेकर पीएम मोदी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि दिल्ली में हम चक्काजाम नहीं कर रहे हैं, वहां तो राजा ने ख़ुद क़िलेबंदी कर ली है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा है कि गणतंत्र दिवस पर हिंसा की घटनाओं, लाल क़िले में तोड़फोड़ ने भारत में उसी तरह की भावनाएं और प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं, जैसा छह जनवरी को अमेरिका में कैपिटल हिल घटना के बाद देखने को मिला था.
शिरोमणि अकाली दल, द्रमुक, राकांपा और तृणमूल कांग्रेस समेत इन पार्टियों के 15 सांसदों को पुलिस ने ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शनकारी किसानों से मिलने नहीं दिया. इनका कहना है कि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों की स्थिति जेल के कै़दियों जैसी है.
वीडियो: दो महीने से ज़्यादा समय से किसान आंदोलन का केंद्र बने दिल्ली की तीनों सीमाओं पर पिछले कुछ दिनों से पुलिस द्वारा बढ़ाई गई बैरिकेडिंग के कारण किसानों को पानी, शौचालय से लेकर सफाई तक की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
वीडियो: दिल्ली बॉर्डर पर पुलिस द्वारा बढ़ाई गई बैरिकेडिंग से किसानों और आम जनता को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. तीनों ही राजधानी की तीनों सीमाओं को काफी दूर तक कंटीले तारों से घेर दिया गया है और टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पुलिस ने धरना स्थल तक जाने वाली सड़कों पर लोहे की कीलें भी गाड़ दी हैं.
हिंसा का एकाधिकार सरकार के पास होता है और उसे नियंत्रित रखने के लिए संवैधानिक सीमाएं हैं. लेकिन सरकार इनका अतिक्रमण करती रहती है. उसकी अनधिकार हिंसा पर कोई सवाल न उठे, इसलिए वह जनता के एक हिस्से को यह बताती है कि वह उसकी तरफ से हिंसा का प्रयोग कर रही है.