सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कहा कि पारदर्शी वैधानिक तंत्र मुहैया कराने के लिए नियमों में संशोधन किया गया है और इससे लोगों को लाभ होगा. संशोधित नियम के मुताबिक चैनलों पर प्रसारित किसी भी कार्यक्रम से परेशानी होने पर दर्शक उस संबंध में प्रसारक से लिखित शिकायत कर सकता है.
सरकार ने कुछ दिन पूर्व ट्विटर को दिए एक नोटिस में कहा था कि उसे सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून संबंधी नए नियमों के अनुपालन का आख़िरी मौका दिया जाता है. उसे तत्काल नियमों का अनुपालन करना है. अगर वह इसमें विफल रहती है, तो उसे आईटी क़ानून और अन्य दंडात्मक प्रावधानों के तहत कार्रवाई के लिए तैयार रहना होगा.
सरकार की ओर से आगाह किया गया है कि यदि ट्विटर आईटी नियमों का अनुपालन करने में विफल रहती है तो आईटी एक्ट और अन्य दंडात्मक कानूनों के अनुसार उसे परिणाम का सामना करना पड़ेगा. इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा है कि ट्विटर द्वारा इन नियमों के अनुपालन से इनकार से पता चलता है कि उसमें प्रतिबद्धता की कमी है.
दिग्गज सोशल मीडिया मंचों और ऑनलाइन न्यूज़ मीडिया के साथ नये नियमों को लेकर विवादास्पद बहस ऐसे मौके पर हो रही है जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर सामने आई अब तक की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. ऐसे में आलोचनाओं के दमन में लगी सरकार ने टेक कंपनियों से दो-दो हाथ कर खु़ुद को अपने ही बुने चक्रव्यूह में फंसा लिया है.
टि्वटर ने अब तक आईटी मंत्रालय को उसके मुख्य अनुपालन अधिकारी का ब्योरा नहीं दिया है. हालांकि उसने नोडल संपर्क और शिकायत अधिकारी के तौर पर एक विधि कंपनी के वकील का नाम दिया है. नए नियमों के तहत यह व्यक्ति सोशल मीडिया कंपनी का कर्मचारी होना चाहिए, जो भारत में कार्यरत हो.
वॉट्सऐप का कहना है कि नए सोशल मीडिया नियम भारत के संविधान में दिए गोपनीयता के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. कंपनी के इस मुक़दमे ने मोदी सरकार और फेसबुक, गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट और ट्विटर जैसी दिग्गज तकनीकी कंपनियों के बीच पहले से मौजूद तनाव को और बढ़ा दिया है.
विशेष रिपोर्ट: केंद्र द्वारा लाए गए डिजिटल मीडिया के नए नियमों को लेकर हो रहे विरोध में एक मुद्दा इस बारे में हितधारकों के साथ समुचित चर्चा न होने का है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इन्हें बनाने से पहले हुए विचार-विमर्श के नाम पर दो सेमिनार और एक मीटिंग का हवाला दिया है, हालांकि इसमें से किसी के भी मिनट्स तैयार नहीं किए गए हैं.
वीडियो: ‘ओए लकी लकी ओए’, ‘मसान’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘फुकरे’ ज ‘शकीला’ जैसी फिल्मों में अभिनय की छाप छोड़ने वाली रिचा चड्ढा कुछ समय पहले आई फिल्म ‘मैडम चीफ़ मिनिस्टर’ को लेकर चर्चा में हैं. रिचा चड्ढा से दामिनी यादव की बातचीत.
सोशल मीडिया मंचों के दुरुपयोग रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए नियमों को लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि ये नियम दमनकारी और प्रेस की आज़ादी के प्रतिकूल हैं.
ये याचिकाएं नेटफ्लिक्स, अमेज़ॉन प्राइम वीडियो, हॉटस्टार जैसे ओटीटी मंचों के नियमन और कामकाम को लेकर दाखिल की गई हैं. याचिकाओं में विभिन्न ओटीटी, स्ट्रीमिंग और डिजिटल मीडिया मंचों पर सामग्री की निगरानी और प्रबंधन के लिए एक उचित बोर्ड, संस्था और एसोसिएशन बनाने की मांग की गई थी.
संसदीय समिति के सदस्यों ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से पूछा कि क्या नियम कानूनी ढांचे के अनुरूप हैं? नियामक व्यवस्था में केवल नौकरशाह ही क्यों हैं और नागरिक समाज, न्यायपालिका तथा पेशेवर लोगों का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं है?
वीडियो: मंत्रियो के एक समूह और 'सत्ता से सहमत' कुछ मीडियाकर्मियों की बैठकों की एक रिपोर्ट पर बीते दिनों काफी चर्चा हुई. इस बीच सरकार डिजिटल मीडिया मंचों के नियमन के नाम पर कुछ कड़े नियम ले आई. इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी और द वायर के अजय आशीर्वाद से विस्तृत चर्चा कर रहे हैं उर्मिलेश.
केंद्र के नए सोशल मीडिया नियमों के दायरे में ऑनलाइन समाचार प्रकाशक भी हैं. द वायर और द न्यूज़ मिनट की संस्थापक धन्या राजेंद्रन द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि ये नियम डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं, जो इसके मूल सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 के विपरीत है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा कि ‘बेलगाम' सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के नाम पर सरकार मीडिया को मिली संवैधानिक सुरक्षा को छीन नहीं सकती है. गिल्ड ने इस बात को लेकर भी चिंता ज़ाहिर की है कि इन नियमों के तहत सरकार को असीमित शक्तियां दे दी गई हैं.
एक मीडिया रिपोर्ट में सामने आए नौ मंत्रियों के समूह द्वारा तैयार 97 पन्नों के दस्तावेज़ का मक़सद मीडिया में मोदी सरकार की छवि को चमकाना और स्वतंत्र मीडिया को चुप कराना है. बताया गया है कि यह रिपोर्ट सरकार समर्थक कई संपादकों और मीडियाकर्मियों के सुझावों पर आधारित है.