महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा, ‘बाल यौन शोषण का सबसे अधिक नजरअंदाज किए जाने वाला वर्ग पीड़ित लड़कों का है. बचपन में यौन शोषण का शिकार होने वाले लड़के जीवन भर गुमसुम रहते हैं.’
कठुआ रेप पीड़िता के नाम का खुलासा करने पर अदालत में चल रही सुनवाई में एक मीडिया घराने ने बचाव में कहा कि उसने जनभावनाएं जगाने, सहानुभूति बटोरने तथा न्याय सुनिश्चित करने के लिए बच्ची का नाम और तस्वीर प्रकाशित की.
उच्चतम न्यायालय ने कहा, 'मीडिया रिपोर्टिंग पीड़ित का नाम लिए बगैर भी की जा सकती है. भले ही पीड़ित नाबालिग या विक्षिप्त हो तो भी उसकी पहचान का खुलासा नहीं करना चाहिए.'
मीडिया बोल की 46वीं कड़ी में उर्मिलेश पोक्सो क़ानून में किए गए बदलाव और मीडिया पर चर्चा कर रहे हैं.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने पूछा कि क्या उस नतीजे के बारे में सोचा गया जो पीड़िता को भुगतना पड़ सकता है? बलात्कार और हत्या की सजा एक जैसी हो जाने पर कितने अपराधी पीड़ितों को ज़िंदा छोड़ेंगे?
बाल अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठन 'सेव द चिल्ड्रेन' से जुड़ीं बिदिशा पिल्लई ने कहा, ‘मौत की सज़ा समस्या का समाधान नहीं हो सकता है.’
बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने अध्यादेश के विरोध में कहा है कि मौत की सज़ा के प्रावधान के बाद बच्चियों से बलात्कार के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं कराए जाएंगे. क्योंकि ज्यादातर मामलों में परिवार के सदस्य ही आरोपी होते हैं.
आयोग का कहना है कि कठुआ गैंगरेप जैसे जघन्य मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान करने कि लिए पॉक्सो क़ानून में संशोधन होना चाहिए.
राजधानी में पिछले साल दर्ज अपहरण के 6,707 मामलों में से 75 फीसदी से ज्यादा महिलाओं से जुड़े थे, हर रोज औसतन दो बच्चों का यौन उत्पीड़न हुआ.