बच्चियों से बलात्कार के दोषी को मौत की सजा देने संबंधी अध्यादेश को राष्ट्रपति की मंजूरी

बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने अध्यादेश के विरोध में कहा है कि मौत की सज़ा के प्रावधान के बाद बच्चियों से बलात्कार के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं कराए जाएंगे. क्योंकि ज्यादातर मामलों में परिवार के सदस्य ही आरोपी होते हैं.

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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद. (फोटो: रॉयटर्स)

बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने अध्यादेश के विरोध में कहा है कि मौत की सज़ा के प्रावधान के बाद बच्चियों से बलात्कार के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं कराए जाएंगे. क्योंकि ज्यादातर मामलों में परिवार के सदस्य ही आरोपी होते हैं.

रामनाथ कोविंद (फोटो: रायटर्स)
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (फोटो: रायटर्स)

नई दिल्ली: 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को मृत्युदंड सहित सख्त सजा देने संबंधी अध्यादेश को रविवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी है.

केंद्रीय कैबिनेट ने शनिवार को उस अध्यादेश को अपनी स्वीकृति दी थी जिसके तहत 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार करने के मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्ति के लिए अदालत को मृत्युदंड की सजा की इजाजत दी गई है.

आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2018 के अनुसार ऐसे मामलों से निपटने के लिए नई त्वरित अदालतें गठित की जाएंगी और सभी पुलिस थानों एवं अस्पतालों को बलात्कार के मामलों की जांच के लिए विशेष फॉरेंसिक किट उपलब्ध कराई जाएगी.

अध्यादेश का हवाला देते हुए अधिकारियों ने बताया कि इसमें विशेषकर 16 एवं 12 साल से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार के मामलों में दोषियों के लिए सख्त सजा की अनुमति है.

12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा देने की बात इस अध्यादेश में कही गई है.

उन्होंने बताया कि महिलाओं से बलात्कार मामले में न्यूनतम सजा सात साल से 10 साल सश्रम कारावास की गई है जिसे अपराध की प्रवृत्ति को देखते हुए उम्रकैद तक भी बढ़ाया जा सकता है.

16 साल से कम उम्र की लड़कियों से सामूहिक बलात्कार के दोषी के लिए उम्रकैद की सजा का प्रावधान बरकरार रहेगा.

16 साल से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार मामले में न्यूनतम सजा 10 साल से बढ़ाकर 20 साल की गई और अपराध की प्रवृत्ति के आधार पर इसे बढ़ाकर जीवनपर्यंत कारावास की सजा भी किया जा सकता है. यानी दोषी को मृत्यु होने तक जेल की सजा काटनी होगी.

अधिकारी ने बताया कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), साक्ष्य अधिनियम, आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और यौन अपराधों से बाल सुरक्षा (पोक्सो) अधिनियम को अब संशोधित माना जाएगा.

अध्यादेश में मामले की त्वरित जांच एवं सुनवाई की भी व्यवस्था है.

अधिकारियों ने बताया कि बलात्कार के सभी मामलों में सुनवाई पूरी करने की समय सीमा दो माह होगी.

साथ ही, 16 साल से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को अंतरिम जमानत नहीं मिल सकेगी.

बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने बच्चियों से बलात्कार के मामले में मौत की सजा का विरोध किया

देश भर के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के मामले में मौत की सजा का प्रावधान करने के लिए ‘पॉक्सो’ कानून में संशोधन के सरकार के फैसले का विरोध किया है.

बाल अधिकारों के लिए लड़ने वाले ‘हक’ सेंटर की भारती अली ने कहा कि एक ऐसे देश में जहां बलात्कार की ज्यादातर घटनाओं को परिवार के सदस्य अंजाम देते हैं, वहां मौत की सजा का प्रावधान करना आरोपियों के बरी होने की सिर्फ गुंजाइश ही बढ़ाएगा.

उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं कराए जाएंगे. बच्चियों से बलात्कार करने वालों के खिलाफ मौत की सजा का प्रावधान सिर्फ करीब 13 देशों में ही क्यों है ? उसकी भी एक वजह है, जो यह है कि उनमें से ज्यादातर देश इस्लामिक हैं.’

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक बलात्कार की 95 फीसदी घटनाओं को परिवार के सदस्यों ने ही अंजाम दिया है. महिलाओं से बलात्कार के मामलों में दोषसिद्धि दर करीब 24 फीसदी है. पॉक्सो कानून के तहत यह 20 फीसदी है.

उन्होंने कहा कि दुनियाभर में हमने देखा है कि सख्त सजा की तुलना में शीघ्र न्याय एक निवारक के तौर पर काम करता है.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के पूर्व सदस्य विनोद टिक्कू ने कहा, ‘मुझे आशंका है कि मौत की सजा का प्रावधान हो जाने पर ज्यादातर लोग बच्चियों से बलात्कार के मामले दर्ज नहीं कराएंगे क्योंकि ज्यादातर मामलों में परिवार के सदस्य ही आरोपी होते हैं. दोषसिद्धि दर भी और कम हो जाएगी.’

कैलाश सत्यार्थी के चिल्ड्रेंस फाउंडेशन के हालिया अध्ययन के मुताबिक बाल यौन अपराधों से जुड़े लंबित मामलों का निपटारा करने में अदालतों को दो दशक लग जाएगा.

कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार को मौजूदा कानूनों को मजबूत करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, पीड़िताओं और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए, मुकदमों की त्वरित सुनवाई करानी चाहिए और जागरूकता पैदा करना चाहिए.

अधिवक्ता एवं बाल अधिकार कार्यकर्ता अनंत कुमार अस्थाना ने कहा, ‘हमारे पास कई अपराधों के लिए पहले से ही मौत की सजा का प्रावधान है, लेकिन इसने किसी निवारक का काम नहीं किया है.’

उन्होंने कहा कि अदालतें, कानूनी सहायता और पुलिस, पुनर्वास तथा आरोपी की दोषसिद्धि को सुनिश्चत करना, ये कुछ ऐसी चीजें हैं जो निवारक का काम करेंगे.

जम्मू कश्मीर के कठुआ जिले में आठ वर्षीय एक बच्ची से बलात्कार और उसकी हत्या की घटना को लेकर देश भर में रोष छाने के मद्देनजर सरकार ने यह कदम उठाया है.

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कुछ दिन पहले अपने विभाग से पॉक्सो कानून में संशोधन के प्रस्ताव पर काम करने को कहा था.

दिल्ली महिला आयोग की प्रमुख स्वाति मालीवाल बलात्कारियों के लिए मौत की सजा की मांग को लेकर समता स्थल पर अनशन पर बैठी थीं, जिसे उन्होंने रविवार को ख़त्म कर दिया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)