पुणे की स्थानीय अदालत द्वारा इन सामाजिक कार्यकर्ताओं की ज़मानत याचिका और बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा नज़रबंदी की अवधि बढ़वाने की याचिका ख़ारिज होने के बाद पुणे पुलिस ने इन दो कार्यकर्ताओं को ठाणे और मुंबई से गिरफ़्तार किया है.
भीमा-कोरेगांव हिंसा की जांच पूरी करने की अवधि बढ़ाने के निचली अदालत के आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया गया था. इस संबंध में गिरफ़्तार पांच में से चार कार्यकर्ताओं को नज़रबंद रखा गया है. एक कार्यकर्ता गौतम नवलखा की नज़रबंदी ख़त्म कर दी गई है.
बीते एक अक्टूबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने गौतम नवलखा की नज़रबंदी ख़त्म कर दी थी. भीमा-कोरेगांव हिंसा के संबंध में बीते 28 अगस्त को गौतम नवलखा समेत पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नज़रबंद रखा गया है.
गौतम नवलखा ने कहा कि नज़रबंदी के दौरान, पाबंदियां लागू होने के बावजूद इस अवधि को अच्छी तरह से इस्तेमाल किया, इसलिए मुझे कोई शिकायत नहीं है.
भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस बीते 29 अगस्त से नज़रबंद हैं.
भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस बीते 29 अगस्त से नज़रबंद हैं.
भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस की नज़रबंदी की अवधि 19 सितंबर तक बढ़ी.
पुणे पुलिस द्वारा माओवादियों से कथित संबंध के आरोप में जून महीने में गिरफ़्तार 5 सामाजिक कार्यकर्ता पुणे की यरवडा जेल में बंद हैं. उनके वकील का दावा है कि यूएपीए हटाने समेत विभिन्न मांगों को लेकर इन लोगों ने जेल में भूख हड़ताल शुरू की है.
भीमा कोरगांव हिंसा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की कथित साज़िश रचने के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के बाद से एल्गार परिषद चर्चा में है. एल्गार परिषद के माओवादी कनेक्शन समेत तमाम दूसरे आरोपों पर इसके आयोजक और बॉम्बे हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल का पक्ष.
भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को नज़रबंद किया गया है.
सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हालिया कार्रवाई के ख़िलाफ़ जो जनाक्रोश उभरा है उसमें ‘नक्सल’ शब्द और इसके पीछे के ठोस ऐतिहासिक संदर्भों को बार-बार सामने रखना ज़रूरी है ताकि यह शब्द महज़ एक आपराधिक प्रवृत्ति के तौर पर ही न देखा जाए बल्कि इसके पीछे मौजूद सरकारों की मंशा भी उजागर होती रहे.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि आप अपने पुलिस अधिकारियों को अधिक ज़िम्मेदार बनने के लिए कहें. मामला हमारे पास है और हम पुलिस अधिकारियों से यह नहीं सुनना चाहते कि उच्चतम न्यायालय गलत है.
बॉम्बे हाईकोर्ट पूछा कि पुलिस ऐसे दस्तावेज़ों को इस तरह पढ़कर कैसे सुना सकती है जिनका इस्तेमाल मामले में साक्ष्य के तौर पर किया जा सकता है.
दलितों और पिछड़ों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर, उन पर ‘माओवादी’ का लेबल लगाकर सरकार दलित महत्वकांक्षाओं का अपमान करती है, साथ ही दूसरी ओर दलित मुद्दों के प्रति संवेदनशील दिखने का स्वांग भी रचती है.
वीडियो: भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में देश के विभिन्न हिस्सों से हुई सामाजिक कार्यकताओं की गिरफ्तारी पर द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन से मीनाक्षी तिवारी की बातचीत.