दो दशक में पहली बार दुनियाभर में बाल श्रमिकों की संख्या बढ़ी, कोविड के चलते बढ़ेगा जोखिम: रिपोर्ट

आईएलओ और यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, विश्वभर में बाल मज़दूरों की संख्या 16 करोड़ हो गई है. यह चेतावनी भी दी गई है कि कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप 2022 के अंत तक वैश्विक स्तर पर 90 लाख और बच्चों को बाल श्रम में धकेल दिए जाने का ख़तरा है.

कोविड पाबंदियों से अप्रैल में 73.5 लाख नौकरियां गईं, बेरोज़गारी दर 4 माह के उच्च स्तर पर: अध्ययन

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बाद लॉकडाउन समेत अन्य पाबंदियां से आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ने से नौकरियां प्रभावित हुई हैं. एक निजी शोध एजेंसी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने अपने अध्ययन में कहा ​है कि नौकरियां जाने की वजह से वेतनभोगी एवं ग़ैर-वेतनभोगी कर्मचारियों की संख्या मार्च में 39.81 करोड़ से घटकर अप्रैल में 39.08 करोड़ हो गईं.

कोविड-19 महामारी ने 3.2 करोड़ भारतीयों को मध्यम वर्ग से बाहर धकेल दिया: रिपोर्ट

अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर ने एक रिपोर्ट में कहा कि कोविड-19 महामारी के एक साल के दौरान मध्यम वर्ग की संख्या महामारी के पहले की तुलना में एक तिहाई घटकर 6.6 करोड़ रह गई, जिनका महामारी के पहले 9.9 करोड़ होने का अनुमान लगाया गया था.

भारतीय श्रमिक अधिक देर तक काम करते हैं, पर कमाते कम हैं: आईएलओ रिपोर्ट

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ उप-सहारा अफ्रीकी देशों को छोड़ दें, तो भारतीय श्रमिक न्यूनतम वेतन पाते हैं. कई बार मज़दूरों को एक हफ्ते में 48 घंटे तक काम करना पड़ता है. यह आंकड़ा चीन में औसतन 46, ब्रिटेन में 36, अमेरिका में 37 और इजराइल में 36 घंटे प्रति हफ्ते का है.

अप्रैल से अगस्त के बीच क़रीब 2.1 करोड़ वेतनभोगी नौकरियां गईं: रिपोर्ट

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के मुताबिक़ जुलाई में लगभग 48 लाख और अगस्त में 33 लाख वेतनभोगी नौकरियां गई हैं. वहीं मासिक आंकड़ों के अनुसार देश की बेरोज़गारी दर अगस्त में बढ़कर 8.35 प्रतिशत हो गई, जो उससे पिछले महीने 7.40 प्रतिशत थी.

कोविड-19 संकट के कारण भारत में 41 लाख युवाओं का रोज़गार छिना: रिपोर्ट

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और एशियाई विकास बैंक की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 महामारी के कारण युवाओं के लिए रोज़गार की संभावनाओं को भी झटका लगा है, जिसके कारण तत्काल 15 से 24 साल के युवा 25 और उसे अधिक उम्र के लोगों के मुकाबले ज़्यादा प्रभावित होंगे.

श्रम क़ानूनों में ढील देने से बाल मज़दूरी बढ़ेगी: गैर सरकारी संगठन

ग़ैर-सरकारी संगठनों के गठबंधन ने लॉकडाउन में श्रम क़ानूनों में ढील देने से महिला श्रमिकों पर दुष्प्रभाव पड़ने की भी आशंका जताई है और सरकार से विधेयक की समीक्षा करने की अपील की है. वहीं, संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि लाखों बच्चों को बाल श्रम में धकेले जाने की आशंका है. ऐसा होता है तो 20 साल में पहली बार बाल श्रमिकों की संख्या में इज़ाफ़ा होगा.

आईएलओ ने प्रधानमंत्री से की अपील, कहा- भारत की अंतरराष्ट्रीय श्रम प्रतिबद्धताओं को बरकरार रखें

देश के 10 केंद्रीय मजदूर संगठनों ने आईएलओ को पत्र लिखकर गुजारिश की थी कि वे विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में हो रहे बदलावों को लेकर हस्तक्षेप करें और श्रमिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित करें.

भारत में श्रम कानूनों में हो रहे बदलाव अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होने चाहिए: आईएलओ

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कहा कि सरकार, श्रमिक और नियोक्ता संगठनों से जुड़े लोगों के साथ त्रिपक्षीय वार्ता के बाद ही श्रम कानूनों में किसी भी तरह का संशोधन किया जाना चाहिए.

भारत में 40 करोड़ मजदूर गरीबी में फंस सकते हैं: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन

संगठन के मुताबिक भारत में लागू किए गए देशव्यापी लॉकडाउन से मजदूर बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उन्हें अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर होना पड़ा है.

कमजोर कानून के चलते भारत में जारी है हाथ से मैला सफाई की प्रथा: अध्ययन

विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं अन्य द्वारा संयुक्त रूप से किए गए अध्ययन में कहा गया है कि भारत में सफाईकर्मियों की आर्थिक स्थिति गंभीर है और यह जातिगत व्यवस्था से संबंधित रोजगार है. इसीलिए हाथ से मैला सफाई की प्रथा अब भी जारी है.

भोपाल गैस त्रासदी 20वीं सदी की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक: संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल पेशे से जुड़ी दुर्घटनाओं और काम के चलते हुईं बीमारियों से 27.8 लाख कामगारों की मौत हो जाती है. इनकी वजह तनाव, काम के लंबे घंटे और बीमारियां हैं. ये भी बताया गया है कि पुरुषों की तुलना में सबसे ज़्यादा महिलाएं प्रभावित होती हैं.

मालिकों के हित में श्रम कानून बदलना चाहती है केंद्र सरकार: मज़दूर संगठन

संगठनों का कहना है कि प्रस्तावित इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड के ज़रिये सरकार मज़दूरों के हड़ताल और विरोध करने के बुनियादी अधिकारों को छीनना चाहती है.