पांच जनवरी को गुजरात के मुख्य सूचना आयुक्त ने भावनगर ज़िले के स्वास्थ्य विभाग के जन सूचना अधिकारियों को निर्देश जारी कर कहा था कि वे अगले पांच साल तक तीन लोगों, जो कि एक ही परिवार के हैं, से आरटीआई एक्ट के तहत आवेदन या अपील स्वीकार न करें.
हाईकोर्ट की यह टिप्पणी आरटीआई एक्ट के उस प्रावधान के बिल्कुल विपरीत है, जिसमें कहा गया है कि सूचना मांगने के लिए आवेदक को कोई कारण बताने की ज़रूरत नहीं है.
मौजूदा समय में केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष 37,000 से अधिक अपीलें और शिकायतें लंबित हैं. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष त्वरित सुनवाई के लिए दायर किए गए आवेदन के बाद हाल ही में मुख्य सूचना आयुक्त समेत तीन सूचना आयुक्तों की नियुक्तियां की गई हैं, जिसके बाद भी तीन पद अब भी रिक्त हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय चयन समिति द्वारा सूचना आयुक्त के तौर पर पत्रकार उदय महुरकर की नियुक्ति पर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कड़ा विरोध जताते हुए कहा है कि महुरकर ने इस पद के लिए आवेदन भी नहीं दिया था और वे 'खुले तौर पर भाजपा के समर्थक' हैं.
साल 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से एक भी बार ऐसा नहीं हुआ है कि मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति में देरी न हुई हो. कई बार आरटीआई कार्यकर्ताओं को अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा है.
सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 11 सूचना आयोगों की वेबसाइट पर लॉकडाउन में कामकाज के संबंध में कोई भी नोटिफिकेशन उपलब्ध नहीं था. बिहार, मध्य प्रदेश और नगालैंड राज्य सूचना आयोगों की वेबसाइट ही काम नहीं कर रही थी.
कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के टेलिफोनिक सर्वे में ये जानकारी सामने आई है कि देश के अधिकतर सूचना आयोग एकाध स्टाफ के सहारे काम कर रहे हैं. अधिकतर आयोगों के ऑफिस नंबर या हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करने पर किसी ने जवाब नहीं दिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय चयन समिति ने फरवरी में राष्ट्रपति के सचिव संजय कोठारी के नाम की अनुशंसा की थी. उस समय कांग्रेस ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति के लिए अपनाई प्रक्रिया को ‘गैरकानूनी और असंवैधानिक’ बताया था और फैसले को तत्काल वापस लेने की मांग की थी.
आलम ये है कि चयन समिति के एक सदस्य वित्त सचिव राजीव कुमार ने भी सीवीसी पद के लिए आवेदन किया था और उन्हें इसके लिए शॉर्टलिस्ट किया गया था.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि आरटीआई क़ानून में संशोधन करने का मुख्य उद्देश्य आरटीआई के तहत बने संस्थानों को प्रभावित करना है ताकि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर काम न कर पाएं.
इससे पहले केंद्र सरकार ने राज्यसभा में बताया था कि सीआईसी में 13,000 से अधिक ऐसे मामले है, जो एक वर्ष से अधिक समय तक लंबित हैं.
गैर-सरकारी संस्था सतर्क नागरिक संगठन और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट से पता चलता है कि आयोगों में लंबित मामलों का प्रमुख कारण सूचना आयुक्तों की नियुक्ति न होना है. रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर के 26 सूचना आयोगों में 31 मार्च 2019 तक कुल 2,18,347 मामले लंबित थे.
आरटीआई कार्यकर्ताओं ने नए नियमों को सूचना आयोगों की स्वतंत्रता एवं उनकी स्वायत्तता पर हमला करार दिया है.
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मदन बी. लोकुर ने सूचना आयोगों में ख़ाली पद पर भी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि कोर्ट के साथ विभिन्न विभागों में ख़ाली पद होना मज़ाक का विषय बनता जा रहा है. जब तक ये ख़ाली पद भरे नहीं जाएंगे, ऐसे ही लंबित मामले बढ़ते रहेंगे.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने केंद्रीय सूचना आयोग के 14 वें वार्षिक सम्मेलन में कहा कि आरटीआई आवेदनों की अधिक संख्या में किसी सरकार की सफलता नहीं छिपी होती.