पार्टी ने तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर कहा था कि चुनावी बॉन्ड को बिना किसी सीरियल नंबर या किसी पहचान के निशान के जारी किया जाना चाहिए, ताकि बाद में दानकर्ता का पता लगाने के लिए इसका इस्तेमाल न किया जा सके.
आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि जब चुनावी बॉन्ड योजना का ड्राफ्ट तैयार किया गया था तो उसमें राजनीति दलों एवं आम जनता के साथ विचार-विमर्श का प्रावधान रखा गया था. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक के बाद इसे हटा दिया गया.
चुनाव आयोग को मिली जानकारी के अनुसार आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स लिमिटेड नाम की कंपनी ने चंदे के रूप में भाजपा को बड़ी धनराशि दी है. 1993 मुंबई बम धमाकों के आरोपी इकबाल मेमन उर्फ इकबाल मिर्ची से संपत्ति खरीदने और लेनदेन के मामले में ईडी इस कंपनी की जांच कर रही है.
इसके अलावा एक मार्च 2018 से 24 जुलाई 2019 के बीच खरीदे गए कुल चुनावी बॉन्ड में से 99.7 फीसदी बॉन्ड 10 लाख और एक करोड़ रुपये के थे. करीब 80 फीसदी चुनावी बॉन्ड नई दिल्ली में भुनाए गए हैं.
हालांकि वित्त मंत्रालय ने इन आपत्तियों को दरकिनार किया और ये प्रावधान रखा कि वो रजिस्टर्ड राजनीतिक दल ही चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा ले सकने योग्य होंगे जिन्होंने पिछले लोकसभा या राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान एक फीसदी वोट प्राप्त किया हो.
वीडियो: मीडिया बोल के इस अंक में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन एवं आरबीआई द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड के विरोध से जुड़ी खबर पर सीपीआई(एमएल) की पोलित ब्यूरो सदस्य कविता कृष्णन, लेखक सोहेल हाशमी और वरिष्ठ पत्रकार नितिन सेठी से वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश की बातचीत.
आरबीआई ने कहा था कि चुनावी बॉन्ड और आरबीआई अधिनियम में संशोधन करने से एक गलत परंपरा शुरू हो जाएगी. इससे मनी लॉन्ड्रिंग को प्रोत्साहन मिलेगा और केंद्रीय बैंकिंग क़ानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा.
चुनावी और राजनीतिक सुधार के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के विश्लेषण के अनुसार मार्च 2018 से अक्टूबर 2019 के बीच स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने कम से कम 12,313 चुनावी बॉन्ड बेचे.
वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग में आरटीआई दाखिल कर राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के दौरान पहचान की गोपनीयता बनाए रखने के संबंध में दानकर्ताओं द्वारा लिखे गए पत्र और इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के ड्राफ्ट की प्रति के बारे में जानकारी मांगी गई थी.
मार्च 2018 से मई 2019 के बीच कुल 5,851.41 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए और इसमें से 4,715.58 करोड़ रुपये के बॉन्ड नई दिल्ली में भुनाए गए.
मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में 2004 में आम चुनाव कराने वाले टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा कि कॉरपोरेट चंदे के माध्यम से धन जुटाने का अपारदर्शी तरीका चिंता पैदा करने वाला है.
चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक की याचिका की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने राजनीतिक दलों से चुनावी बॉन्ड से मिले चंदे और इसके दाताओं की सूची 30 मई तक सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को सौंपने को कहा था.
एसबीआई ने बताया कि जारी किए गए 10,494 बॉन्ड में से 10,388 बॉन्ड यानी कि 5,011 करोड़ रुपये के बॉन्ड को को भुनाया जा चुका है.
एसबीआई ने बताया कि मार्च 2018 से 24 जनवरी 2019 के बीच कुल 1,407.09 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे गए थे, जिसमें से 1,403.90 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड 10 लाख और एक करोड़ रुपये के थे.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी दलों को निर्देश दिया है कि 30 मई तक वे चुनावी बॉन्ड की राशि और इसके दानकर्ताओं के नाम समेत सभी जानकारी सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को दें. अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में अंतिम फैसला विस्तृत सुनवाई के बाद लिया जाएगा.