केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने बताया कि एनसीआरबी की ओर से मुहैया कराई गई जानकारी के मुताबिक साल 2014 से 2016 की अवधि के दौरान कुल 22,167 बच्चे और 13,834 महिलाएं मानव तस्करी का शिकार हुए हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2014 और 2017 के बीच में मीडियापर्सन्स के ख़िलाफ 204 हमले दर्ज किए गए. प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों के बीच भारत की स्थिति 2017 में 136 से बढ़कर 2018 में 138 हो गई है.
देश में बलात्कार से संबंधित राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ सोशल मीडिया पर पीड़िताओं की धुंधली या संपादित तस्वीरें प्रकाशित न करने का निर्देश दिया.
गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर का कहना है कि क़ानून व्यवस्था बनाए रखना और जान माल की रक्षा राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है. मॉब लिंचिंग के संबंध में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो कोई आंकड़े नहीं रखता है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण से अपराधिक जांच के लिए पुलिस को आधार डेटा की सीमित उपलब्धता दिए जाने का प्रस्ताव रखा था. गृह राज्य मंत्री ने कहा कि इस बारे में मंत्रालय से चर्चा कर विचार किया जाएगा.
लोकसभा में कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बताया कि साल 2014 से 2016 के दौरान ऋण, दिवालियापन एवं अन्य कारणों से क़रीब 36 हज़ार किसानों एवं कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की.
कृषि राज्यमंत्री ने बताया कि कृषि ऋण के कारण किसानों की आत्महत्या के बारे में वर्ष 2016 के बाद से कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, क्योंकि गृह मंत्रालय ने अभी तक इसके बारे में रिपोर्ट प्रकाशित नहीं किया है.
लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो देश में भीड़ द्वारा अल्पसंख्यकों की हत्या की घटनाओं के संबंध में विशिष्ट आंकड़े नहीं रखता है.
यह कैसा समाज है जहां जीवित इंसान की कोई कीमत नहीं पर मृत व्यक्ति के सम्मान की रक्षा के नाम पर लोग सड़क पर उतर आते हैं, तोड़-फोड़ करते हैं, यहां तक कि हिंसा करने से भी नहीं चूकते.
वर्ष 2016 में बलात्कार के 94.6 प्रतिशत पंजीबद्ध मामलों में बतौर आरोपी पीड़िताओं के दादा, पिता, भाई तक शामिल हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकोर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2016 में भारत में मानव तस्करी के 8,000 से अधिक मामले सामने आए हैं.
जेलों पर ज़रूरत से ज़्यादा बोझ और कर्मचारियों की कमी के चलते भारतीय जेलें राजनीतिक रसूख वाले अपराधियों के लिए एक आरामगाह और सामाजिक-आर्थिक तौर पर कमज़ोर विचाराधीन कैदियों के लिए नरक हैं.