जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रशासन का कहना है कि चुनाव में लिंग्दोह कमेटी की सिफारिशों का उल्लंघन करने की वजह से अब तक यूनियन अधिसूचित नहीं हुई है. वहीं, छात्र संघ की अध्यक्ष आईशी घोष ने कहा कि 8500 स्टूडेंट्स की यूनियन की आवाज को इस तरह प्रशासन बंद नहीं कर सकता.
वामपंथी छात्र संगठनों एआईएसए, एसएफआई, एआईएसएफ और डीएसएफ के संयुक्त मोर्चे की अध्यक्ष पद की उम्मीदवार आईशी घोष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष चुनी गई हैं. उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के मनीष जांगिड़ को हराया है. एसएफआई को 13 साल बाद अध्यक्ष पद मिला है.
त्रिपुरा यूनिवर्सिटी के कुलपति विजयकुमार लक्ष्मीकांतराव धारुरकर इससे पहले पिछले महीने तब विवादों में घिर गए थे जब कैंपस में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने एबीवीपी का झंडा फहराया था और कहा था कि एबीवीपी एक सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन है और यह किसी भी पार्टी से संबंधित नहीं है.
छात्रसंघ चुनाव में काउंसिलर पद के लिए खड़े दो छात्रों का आरोप है कि प्रशासन ने ग़लत तरीके से उनका नामांकन ख़ारिज किया है, जिसके ख़िलाफ़ उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छह सितंबर को छात्रसंघ चुनाव है. ‘लेफ्ट यूनिटी’ के तहत एसएफआई, डीएसएफ, आइसा और एआईएसएफ, बापसा के साथ फ्रैटर्निटी और एनएसयूआई के साथ एमएसएफ चुनाव मैदान में हैं. एबीवीपी और छात्र-राजद बिना किसी गठबंधन के चुनाव लड़ रहे हैं.
त्रिपुरा यूनिवर्सिटी के कुलपति विजयकुमार लक्ष्मीकांतराव धारुरकर का कहना है कि एबीवीपी एक सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन है और यह किसी भी पार्टी से संबंधित नहीं है.
लेफ्ट यूनिटी से एन. साई बालाजी, सारिका चौधरी, एजाज अहमद और अमुथा ने जीत हासिल की. इस साल के चुनाव में 67.8 प्रतिशत छात्रों ने मतदान किया था जो कि पिछले साल के मुकाबले लगभग 10 प्रतिशत अधिक है.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में समाजवादी छात्र सभा ने अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सांस्कृतिक सचिव और उपमंत्री का पद जीता, एबीवीपी की केवल एक पद पर जीत.
सिमोन ज़ोया ख़ान को उपाध्यक्ष, एसएफआई के दुग्गीराला श्रीकृष्ण को महासचिव और डीएसएफ के शुभांशु सिंह को संयुक्त सचिव पद पर जीत हासिल हुई.
इस बार जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए महिला उम्मीदवार मैदान में हैं. आइसा, एसएफआई व डीएसएफ की उम्मीदवार गीता कुमारी, एबीवीपी की निधि त्रिपाठी, एआईएसएफ की अपराजिता राजा, बाप्सा की शबाना अली, एनएसयूआई की वृंशिका से बातचीत.
पिनाराई विजयन अब तक कट्टर पार्टी सचिव ही बने हुए हैं, एक संवेदनशील मुख्यमंत्री नहीं बन पाए हैं. विभिन्न मौकों पर पुलिसिया दमन का पक्ष लेने पर कहा जा सकता है कि पुलिस का मनोबल बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है, लेकिन इससे जनता की नजर में उनकी छवि को काफी नुकसान पहुंचा है.
कश्मीर में लोकतंत्र कमज़ोर है इसलिए अफ़ज़ल गुरु को शहीद बताने वालों के साथ सरकार चला कर उसे मजबूत करना है और दिल्ली में लोकतंत्र बहुत मजबूत है इसलिए सेमिनार में गुंडागर्दी कर के इसे कमज़ोर करना है.
अच्छा होता केंद्र सरकार शैक्षिक परिसरों में खुलापन क़ायम करने का प्रयास करती. गुंडा तत्वों, उत्पात मचाने वालों और गुरमेहर को हत्या व रेप आदि की धमकी देने वालों की मुस्तैदी से धरपकड़ की जाती.