अहमदाबाद नगर निगम संचालित एसवीपी अस्पताल द्वारा अनुबंध पर रखी गईं नर्सों और अन्य कर्मचारियों के वेतन में 10 से 20 प्रतिशत की कटौती की सूचना उनकी ठेकेदार कंपनी द्वारा दी गई थी.
यह अहमदाबाद सिविल अस्पताल के गुजरात कैंसर एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट का मामला है. अस्पताल की ओर से बाद में कहा गया कि कहा गया है कि मरीज़ जीवित नहीं है. जिस कर्मचारी ने परिजनों से संपर्क किया था वह मरीज़ की अपडेटेड स्थिति से वाक़िफ़ नहीं था.
कोरोना महामारी को लेकर अस्पतालों की दयनीय हालत और राज्य की स्वास्थ्य अव्यस्थताओं पर गुजरात सरकार को फटकार लगाने वाली हाईकोर्ट की पीठ में अचानक बदलाव किए जाने से एक बार फिर 'मास्टर ऑफ रोस्टर' की भूमिका सवालों के घेरे में है.
गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जेबी पर्दीवाला और इलेश जे. वोरा की पीठ ने बीते दिनों कोरोना महामारी को लेकर राज्य सरकार को सही ढंग और जिम्मेदार होकर कार्य करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए थे.
राज्य सरकार द्वारा प्राइवेट लैब में कोविड टेस्ट करवाने के लिए उसकी अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है, ऐसे में अहमदाबाद में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच अस्पतालों में ढेरों कोविड संभावित मरीज़ भर्ती होने के कई दिन बाद भी टेस्ट के लिए इंतज़ार करने को मजबूर हैं.
पिछले दो सप्ताह से सोशल मीडिया पर प्रसारित की जा रही एक विस्तृत 22 सूत्रीय रिपोर्ट में कहा गया है कि अहमदाबाद के अस्पतालों में आवश्यक दवाओं की भारी कमी है.
गुजरात देश में सबसे ज्यादा कोरोना मौतों वाले राज्यों में से एक है, जिसमें से सिविल अस्पताल में 377 मौतें हुई हैं जो कि राज्य की कुल मौतों का लगभग 45 फीसदी है.