गुलज़ार देहलवी साहब का जाना उस आख़िरी क़िस्सागो का जाना है, जिसकी कहानियों में दिल्ली की तहज़ीब और ज़बान सांस लेती थी.
पुण्यतिथि विशेष: यह भी एक क़िस्म की विडंबना ही है कि जिस साहिर के कलाम गुनगुनाकर अनगिनत इश्क़ परवान चढ़े, उसकी अपनी ज़िंदगी में कोई इश्क़ मुकम्मल न हुआ.