किसी एक त्रासदी के पीड़ितों को दूसरी त्रासदी के पीड़ितों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करना हद दर्जे का ओछापन है, जहां पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की बजाय राजनीतिक रोटियां सेंकी जाने लगती हैं.
अपने हिंदू दोस्तों को ईद की दावत दी. सबने चिकन-मटन खाने से मना कर दिया. ये वही दोस्त थे जो इसके पहले सिर्फ़ इस शर्त पर आते थे कि चिकन-मटन खाने को मिलेगा.
शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में गोरक्षा के नाम पर लोगों की हत्या को हिंदुत्व के ख़िलाफ़ बताया.
ऊपर से शांत दिखने वाली भीड़ का हिंसक बन जाना अब हमारे वक्त़ की पहचान बन रहा है. विडंबना यही है कि ऐसी घटनाएं इस क़दर आम हो चली हैं कि किसी को कोई हैरानी नहीं होती.
हरियाणा के खंदावली गांव के किशोर जुनैद की ईद के दो दिन पहले चलती ट्रेन में पीटकर हत्या कर दी गई थी, जिसके विरोध में गांव वालों ने ईद नहीं मनाई.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राजस्थान सरकार को निर्देश दिया है कि वो गोरक्षकों को लेकर उसकी ओर से जारी एडवाजरी को सही ढंग से लागू करे.
पीट-पीट कर मार दिए गए मोहम्मद अख़लाक़ और पहलू खान के अलावा जेएनयू के लापता छात्र नजीब अहमद के परिवारवालों ने न्याय की मांग की है.
वह कैसी सोच है जिसे पूरी दुनिया में केवल एक गाय ही रक्षा करने योग्य लगती है. सड़क के किनारे सोया थका-हारा मज़दूर नहीं, पुल के नीचे मिट्टी में पलते दुर्बल बच्चे नहीं, अस्पतालों के बाहर बैठे रोगी नहीं.
बिलकिस बानो को इंसाफ मिल पाया क्योंकि शेष भारत और देश की अन्य संस्थाओं में अभी अराजकता की वह स्थिति नहीं है, जिसे नरेंद्र मोदी ने अपने गृह राज्य गुजरात में प्रश्रय दिया था. पर अब धीरे-धीरे यह अराजकता प्रादेशिक सीमाओं को तोड़कर राष्ट्रीय होती जा रही है.
हम सब मौत से वाक़िफ़ हैं. अपने अजीज़ लोगों को खोने की तकलीफ हम सबने सही है. हमने न भरे जा सकने वाले खालीपन को महसूस किया है. लेकिन इस मौत का एहसास अलग है. यह एक बेक़सूर की मौत है. यह नफ़रत से हुई मौत है. आप इसे जयसिंहपुर में देख सकते हैं.
मुस्लिमों को यह कहना होगा कि वे यहां हैं और यहीं रहेंगे. उन्हें यह कहना होगा कि किसी को भी उन्हें इस देश को छोड़ कर जाने के लिए कहने का हक़ नहीं है. उन्हें यह कहना होगा कि वे यहां अपने मुस्लिमपन के साथ वैसे ही रहेंगे जैसे हिंदू अपने हिंदूपन के साथ रहते हैं.
उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत की व्याख्या आरएसएस ने गोरक्षा और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण जैसे अपने पुराने वैचारिक मुद्दों को उठाने के लिए मिली हरी झंडी के तौर पर की है.