मनोरोग से ग्रसित एक शिकायतकर्ता ने द ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से ली गई एक पॉलिसी के तहत मेडिकल क्लेम के लिए आवेदन किया था, लेकिन बीमा कंपनी ने उनके दावे को ख़ारिज कर दिया था. इसके बाद शिकायतकर्ता ने उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में अपील की थी.
आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर ज़ाहिर की जा रही चिंताओं के बीच एक आरटीआई के जवाब में पता चला है कि डब्ल्यूएचओ और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद देश के कुछ बड़े मेडिकल संस्थानों में आत्महत्या या इसके प्रयासों को रोकने की कोई महत्वपूर्ण रणनीति नहीं है.
याचिका में कहा गया है कि बीमा कंपनियां मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम 2007 की धारा 21(4) का उल्लंघन कर रही हैं, जिसके तहत हर बीमाकर्ता को शारीरिक बीमारियों के इलाज के आधार पर ही मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए प्रावधान बनाना अनिवार्य है.
संक्रामक रोगों का सभी पर एक गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है, उन पर भी जो वायरस से प्रभावित नहीं हैं. इन बीमारियों को लेकर हमारी प्रतिक्रिया मेडिकल ज्ञान पर आधारित न होकर हमारी सामाजिक समझ से भी संचालित होती है.
भारत में क़रीब 14% लोगों को सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की ज़रूरत है. क़रीब 2% लोग गंभीर मानसिक विकार से ग्रस्त हैं. क़रीब 2 लाख लोग आत्महत्या जैसे क़दम उठाते हैं.