उम्र के दूसरे दशक में गांधी निस्संदेह एक नस्लवादी थे. वे सभ्यताओं के पदानुक्रम यानी ऊंच-नीच में यक़ीन करते थे, जिसमें यूरोपीय शीर्ष पर थे, भारतीय उनके नीचे और अफ्रीकी सबसे निचले स्थान पर. लेकिन उम्र के तीसरे दशक तक पहुंचते-पहुंचते उनकी टिप्पणियों में अफ्रीकियों के भारतीयों से हीन होने का भाव ख़त्म होता गया.
सार्वजनिक तौर पर ‘लोक-कल्याणकारी मकसदों’ की हिमायत करके फायदा कमाने वाली कंपनियां अपने कामों के दौरान अक्सर ढिठाई से मानवाधिकारों का उल्लंघन करती पायी जाती हैं.