राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोविड-19 के कारण माता-पिता में से किसी एक या फ़िर दोनों को खोने वाले बच्चों में 15,620 लड़के, 14,447 लड़कियां और चार ट्रांसजेंडर शामिल हैं. इनमें से अधिकतर बच्चे आठ से 13 आयु वर्ग के हैं. महाराष्ट्र में ऐसे बच्चों की संख्या सर्वाधिक है. इसके बाद उत्तर प्रदेश में और राजस्थान हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना काल में अभिभावक को खोने वाले या बेसहारा, अनाथ हुए बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि अनाथ बच्चों को गोद लिए जाने का आमंत्रण देना कानून के प्रतिकूल है, क्योंकि केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण की भागीदारी के बिना गोद लेने की अनुमति नहीं है.
बीते साल एयर इंडिया के कुछ पायलटों ने इस्तीफ़े देने के बाद उन्हें स्वीकार किए जाने से पहले ही वापस ले लिया था पर कंपनी ने इसके बावजूद इस्तीफ़े स्वीकार कर लिए. उनका तर्क था कि इस्तीफ़ों को दी गई स्वीकृति पूरी तरह से उचित है क्योंकि कंपनी कई वर्षों से वित्तीय संकट से जूझ रही है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 29 मई तक राज्यों की ओर से प्रदान किए गए आंकड़ों के मुताबिक 9,346 ऐसे बच्चे है, जो कोरोना महामारी के कारण बेसहारा और अनाथ हो गए हैं या फिर अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है. ऐसे सबसे ज़्यादा 2,110 बच्चे उत्तर प्रदेश में हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने कहीं पढ़ा था कि महाराष्ट्र में 2,900 से अधिक बच्चों ने कोविड-19 के कारण अपने माता-पिता में से किसी एक को या दोनों को खो दिया है. हमारे पास ऐसे बच्चों की सटीक संख्या नहीं है. न्यायालय ने कहा कि ऐसे बच्चों के साथ सड़कों पर भूख से तड़प रहे बच्चों की देखभाल करने का निर्देश राज्य सरकारों और संबंधित प्राधिकारियों को दिया है.
शिक्षा में साधनों की असमानता का एक पक्ष यह भी है कि जिन अकादमिक या बौद्धिक चिंताओं पर हम महानगरीय शिक्षा संस्थानों में बहस होते देखते हैं, वे राज्यों के शिक्षा संस्थानों की नहीं हैं. राज्यों के कॉलेजों के लिए अकादमिक स्वतंत्रता का प्रश्न ही बेमानी है क्योंकि अकादमिक शब्द ही उनके लिए अजनबी है.
बहुत सारे अधिकार संविधान सभा की बहसों से निकले थे, जब भारतीय संविधान बना तो उसमें उन अधिकारों को लिख दिया गया और बहुत सारे अधिकार बाद में दलितों ने अपने संघर्षों-आंदोलनों से हासिल किए थे. हालांकि दलितों का बहुत सारा समय और संघर्ष इसी में चला गया कि राज्य ने उन अधिकारों को ठीक से लागू नहीं किया.
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्रदर्शन समीक्षा समिति बैठक में पेश एजेंडा पेपर के अनुसार, मार्च के अंत तक देशभर में 54.57 लाख स्वयं सहायता समूहों को 91,130 करोड़ रुपये के बैंक क़र्ज़ दिए गए, जिनमें से 2,168 करोड़ रुपये एनपीए में तब्दील हो गए.
सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजे गए पत्र में केंद्रीय गृह सचिव ने कहा है कि ऐसी खबरें मिली हैं कि विभिन्न ज़िलों और राज्यों द्वारा स्थानीय स्तर पर आवाजाही पर पाबंदी लगाई जा रही है. ऐसी पाबंदियों से विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के अंतरराज्यीय आवागमन में दिक्कतें पैदा होती हैं और इससे आपूर्ति श्रृंखला पर असर पड़ता है.
कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में लागू लॉकडाउन के कारण रेलवे और एयरलाइन कंपनियों ने यात्री सेवाओं को 25 मार्च से 21 दिनों के लिए निलंबित कर दिया है.
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने 12 राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों पर एक से पांच लाख रुपये का तक जुर्माना भी लगाया है.
व्यापारियों के संगठन कनफेडरेशन आॅफ आॅल इंडिया ट्रेडर्स ने कहा, चार महीने बाद भी जीएसटी टुकड़ों में बंटा हुआ है, क्रियान्वयन की पूर्ण समीक्षा हो.
नीति आयोग ने अंतरराज्यीय अपराध और आतंकवाद से निपटने के लिए राज्य की क़ानून व्यवस्था में केंद्र की भूमिका बढ़ाने का सुझाव दिया है.
कोर्ट ने शहरी बेघरों के लिए दिए गए धन का आॅडिट कराने की हिमायत करते हुए कहा, कार्य विशेष के पैसे का उपयोग दूसरे काम में नहीं होना चाहिए.
व्यक्ति कुछ मौलिक अधिकारों से संपन्न है. संविधान इन अधिकारों की निशानदेही कर राज्य को बताता है कि वह व्यक्ति के जीवन में कहां हस्तक्षेप नहीं कर सकता.