आईएलओ और यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, विश्वभर में बाल मज़दूरों की संख्या 16 करोड़ हो गई है. यह चेतावनी भी दी गई है कि कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप 2022 के अंत तक वैश्विक स्तर पर 90 लाख और बच्चों को बाल श्रम में धकेल दिए जाने का ख़तरा है.
श्रम पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफ़ारिश की है कि ग्रेच्युटी की सुविधा को सभी प्रकार के कर्मचारियों तक बढ़ाया जाना चाहिए, जिसमें ठेका मज़दूर और दैनिक या मासिक वेतन कर्मचारी शामिल हैं.
नरेंद्र मोदी सरकार की पिछली कई योजनाओं की तरह यह नई योजना भी दिखाती है कि लुटियन दिल्ली असली भारत की सच्चाई से कितनी दूर है.
आज़ादी के 71 साल: सरकार यह महसूस नहीं करती है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और सामाजिक सुरक्षा पर किया गया सरकारी ख़र्च वास्तव में बट्टे-खाते का ख़र्च नहीं, बल्कि बेहतर भविष्य के लिए किया गया निवेश है.
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा कि सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, सामाजिक सुरक्षा जैसे कई क्षेत्रों से जुड़ी ज़िम्मेदारियों को औद्योगिक घरानों या राज्य सरकारों के भरोसे छोड़ दिया है.
विश्व बैंक के एक पहचान कार्यक्रम की रिपोर्ट में बताया गया है कि पहचान प्रमाण पत्र के बिना ज़िंदगी बिता रहे लोगों की बड़ी संख्या एशिया और अफ्रीकी महाद्वीप में है.