ग्रेच्युटी की समयसीमा पांच साल से घटाकर एक साल की जाए: संसदीय समिति

श्रम पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफ़ारिश की है कि ग्रेच्युटी की सुविधा को सभी प्रकार के कर्मचारियों तक बढ़ाया जाना चाहिए, जिसमें ठेका मज़दूर और दैनिक या मासिक वेतन कर्मचारी शामिल हैं.

Gurugram: Migrants wait to board a bus for Bihar at Tau Devi Lal Stadium, during the ongoing COVID-19 lockdown, in Gurugram, Tuesday, June 2, 2020. (PTI Photo)(PTI02-06-2020_000216B)

श्रम पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफ़ारिश की है कि ग्रेच्युटी की सुविधा को सभी प्रकार के कर्मचारियों तक बढ़ाया जाना चाहिए, जिसमें ठेका मज़दूर और दैनिक या मासिक वेतन कर्मचारी शामिल हैं.

Gurugram: Migrants wait to board a bus for Bihar at Tau Devi Lal Stadium, during the ongoing COVID-19 lockdown, in Gurugram, Tuesday, June 2, 2020. (PTI Photo)(PTI02-06-2020_000216B)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः श्रम मामलों की संसदीय समिति ने अपनी हालिया रिपोर्ट में सिफारिश की है कि कर्मचारियों के लिए ग्रेच्युटी की समयसीमा को घटाकर एक साल किया जाए.

बता दें कि फिलहाल ग्रेच्युटी पाने की समयसीमा पांच साल है.

श्रम पर संसद की स्थायी समिति ने शुक्रवार को लोकसभा अध्यक्ष को सामाजिक सुरक्षा संहिता पर अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी, जो श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा से संबंधित नौ कानूनों की जगह लेगी.

समिति ने बेरोजगारी बीमा और ग्रेच्युटी पाने के लिए लगातार काम करने की अवधि को पांच साल से कम करके एक साल करने की सिफारिश की है.

श्रम पर संसद की स्थाई समिति के अध्यक्ष बीजद सांसद भर्तृहरि महताब हैं.

द हिंदू के अनुसार, रिपोर्ट में कहा गया, भारत के श्रम बाजार की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए जहां ज्यादातर कर्मचारी केवल छोटी अवधि के लिए कार्यरत होते हैं, उन्हें मौजूदा मानदंडों के अनुसार ग्रेच्युटी के लिए अयोग्य बनाते हैं. समिति की इच्छा है कि भुगतान के लिए संहिता में प्रदान की गई पांच साल की समय सीमा के बजाय ग्रेच्युटी की योग्यता अवधि को एक साल किया जाए.

इसने आगे सिफारिश की है कि इस सुविधा को सभी प्रकार के कर्मचारियों तक बढ़ाया जाना चाहिए, जिसमें ठेका मजदूर, मौसमी श्रमिक और निश्चित अवधि के कर्मचारी और दैनिक/मासिक वेतन कर्मचारी शामिल हैं.

समिति ने जोर दिया है कि एक नियोक्ता द्वारा बकाया का भुगतान नहीं करने की स्थिति में एक मजबूत निवारण तंत्र होना चाहिए.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, समिति का विचार है कि इस तरह का प्रावधान प्रभावित कर्मचारियों/श्रमिकों के हित के खिलाफ है, जिन्हें अपना वैध बकाया प्राप्त करने के लिए ऊपर से नीचे तक दौड़ना पड़ता है. इसके बजाय समिति की सिफारिश है कि सामाजिक सुरक्षा संहिता में कर्मचारियों को निर्धारित समय सीमा के भीतर ग्रेच्युटी के भुगतान के लिए नियोक्ता को उत्तरदायी बनाए रखने का प्रावधान होना चाहिए.

इसी तरह समिति ने यह भी चिंता व्यक्त की कि भविष्य निधि कार्यालय (ईपीएफओ) पंजीकरण के लिए 20 या उससे अधिक कर्मचारियों की सीमा का इस्तेमाल नियोक्ता खुद ईपीएफओ कवरेज से बाहर करने के लिए कर सकते हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने कहा कि ईपीएफ अधिनियम को स्वरोजगार सहित सभी श्रमिकों पर लागू करने के लिए संभावनाओं की तलाश की जा रही है.

समिति ने सिफारिश की है कि सामाजिक सुरक्षा कोड को केंद्र सरकार को यह अधिकार देना चाहिए कि वह आपदा प्रबंधन अधिनियम के संदर्भ में ईपीएफ में कर्मचारी के योगदान को कम कर सके क्योंकि इससे सरकार कोविड महामारी जैसी स्थिति में प्रभावित व्यक्तियों को राहत प्रदान कर सकेगी.

इसके अलावा संहिता में सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को चलाने के लिए उनके वित्त पोषण के स्रोत को भी स्पष्ट करने के लिए कहा है.

रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने श्रम मंत्रालय से अनुरोध किया है कि वह संहिता के साथ रोजगार कार्यालयों (रिक्तियों की अनिवार्य अधिसूचना) अधिनियम, 1959 के प्रस्तावित विलय पर फिर से विचार करे.

इसमें कहा गया, ‘कानून रोजगार कार्यालयों में रिक्तियों की सूचना देने के लिए है और यह किसी भी रूप में सामाजिक सुरक्षा के विषय से जुड़ा नहीं है.’

समिति ने राय जाहिर की कि सिर्फ कानूनों की संख्या घटाने के लिए, कोई कानून अगर संहिता की विषय-वस्तु से मेल नहीं खाता है तो उसे अतार्किक रूप से इसके साथ नहीं जोड़ना चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)