केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में हलफ़नामा दायर करने के तीन दिन बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने उन मीडिया रिपोर्ट पर कड़ी आपत्ति जताई थी, जिसमें कोरोना वायरस के एक स्वरूप ‘बी.1.617’ को ‘इंडियन वैरिएंट’ कहा गया था. सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों से कहा था कि वे अपने प्लेटफॉर्म से ‘इंडियन वैरिएंट’ संबंधी सामग्री को तुरंत हटा दें.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई जांच पूरी हो जाने के बाद अदालत फ़ैसला करेगी कि मामले को उत्तर प्रदेश से दिल्ली ट्रांसफर किया जाए या नहीं.
हाल ही में एएमयू प्रशासन ने जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में अस्थायी चिकित्साधिकारी के तौर पर काम कर रहे डॉक्टर मोहम्मद अज़ीमुद्दीन मलिक और डॉक्टर उबैद इम्तियाज़ हक़ की सेवाएं समाप्त कर दी थी. इन्होंने हाथरस बलात्कार मामले में पुलिस के उलट बयान दिया था.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के डॉ. अज़ीम मलिक ने यूपी पुलिस के दावों को ख़ारिज करते हुए कहा था कि फॉरेंसिक रिपोर्ट के लिए 11 दिन बाद सैंपल लिए जाने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि इससे बलात्कार होने की पुष्टि नहीं हो सकती है. घटना के बाद युवती का इलाज इसी अस्पताल में हो रहा था.
हाथरस मामले को उत्तर प्रदेश से बाहर ट्रांसफर करने समेत कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट ही करेगा. मामले में कई अन्य वकील भी बहस करना चाहते थे, जिस पर पीठ ने कहा कि हमें पूरी दुनिया की मदद की ज़रूरत नहीं है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस के तत्कालीन एसपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई किए जाने और डीएम को बख़्श देने पर सवाल खड़े किए हैं. कोर्ट ने एक मेडिकल रिपोर्ट के हवाले से युवती के साथ बलात्कार न होने का दावा करने वाले अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार को फटकार लगाते हुए बलात्कार की परिभाषा में हुए बदलावों की जानकारी मांगी.
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हाथरस मामले में शीर्ष अदालत में दायर किए हलफ़नामे में जान-बूझकर भ्रामक तथ्य पेश किए गए हैं. यह हलफ़नामा पुलिस के प्रोफेशनल ज्ञान, विश्वसनीयता और पीड़ितों को न्याय दिलाने की उनकी नीयत, तीनों पर सवालिया निशान खड़े करता है.
उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में 19 वर्षीय दलित युवती के साथ कथित सामूहिक बलात्कार और उसकी मौत के मामले में सीबीआई की टीम मंगलवार को उसके गांव पहुंची. टीम ने कथित बलात्कार और अंतिम संस्कार वाली वाली जगहों से सबूत जुटाए.
आरोप है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में 14 सितंबर को सवर्ण जाति के चार युवकों ने 19 साल की दलित युवती के साथ बर्बरतापूर्वक मारपीट करने के साथ कथित तौर पर बलात्कार किया था. 29 सितंबर को इलाज के दौरान युवती ने दम तोड़ दिया था, जिसके बाद प्रशासन ने आनन-फानन में देर रात उनका अंतिम संस्कार कर दिया था.
उत्तर प्रदेश के हाथरस में कथित सामूहिक बलात्कार की शिकार 19 वर्षीय दलित महिला के परिवार के साथ हाथरस के जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में उपस्थित हुए.
उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक 19 वर्षीय दलित महिला के साथ कथित सामूहिक बलात्कार और बाद में उसकी मौत के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ द्वारा स्वत: संज्ञान लिया था. हाथरस के उच्चाधिकारियों के साथ पीड़ित युवती के परिजन हाईकोर्ट में सोमवार को पेश होंगे.
वीडियो: उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 वर्ष की दलित युवती की कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार के बाद मौत हो गई थी. द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी ने पीड़िता के परिजनों व अन्य लोगों से इस संबंध में बात की.
आरोप है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में 14 सितंबर को सवर्ण जाति के चार युवकों ने 19 साल की दलित युवती से बर्बरतापूर्वक मारपीट करने के साथ बलात्कार किया था. युवती ने 29 सितंबर को दिल्ली के अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने हाथरस गैंगरेप मामले को असाधारण और चौंकाने वाला बताते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से कहा है कि मामले में गवाहों को किस प्रकार सुरक्षा दी जा रही है, इस बारे में वह हलफनामा दायर कर बताए. साथ ही अदालत ने पीड़ित परिवार तक वकील की पहुंच को लेकर भी राज्य सरकार से जवाब मांगा है.
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मज़दूरों के लिए तीन अधिनियमों को लागू नहीं करने पर महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार द्वारा हलफ़नामा दायर नहीं करने को लेकर नाराज़गी जताई है. ये अधिनियम लॉकडाउन के कारण संकटग्रस्त प्रवासी मज़दूरों की मदद के लिए हैं.