पुस्तक अंश: अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद में वर्ष 1949 में मूर्ति रखने के बाद की घटनाएं यह प्रमाणित करती हैं कि कम-से-कम फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन ज़िलाधीश केकेके नायर तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत यदि मूर्ति स्थापित करने के षड्यंत्र में शामिल न भी रहे हों, तब भी मूर्ति को हटाने में उनकी दिलचस्पी नहीं थी.
पुस्तक अंश: फ़ैज़ाबाद में 1948 में हुए उपचुनाव में समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव मैदान में थे. कांग्रेस ने उनके ख़िलाफ़ देवरिया के बाबा राघव दास को अपना प्रत्याशी बनाया. चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने कहा था कि आचार्य नरेंद्र की विद्वत्ता का लोहा भले दुनिया मानती है, लेकिन वे नास्तिक हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या ऐसे व्यक्ति को कैसे स्वीकार कर पाएगी?
आप कांग्रेस और भाजपा को कोस सकते हैं, लेकिन संघ परिवार को क्या कहेंगे जिसने धर्म और समाज के लिए लज्जा का यह काला दिन आने दिया?
भूमंडलीकरण की बाज़ारोन्मुख आंधी में कट्टरता और सांप्रदायिकता अयोध्या के बाज़ार की अभिन्न अंग बनीं तो अभी तक बनी ही हुई हैं.
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद सबसे पहले वर्ष 1949 में अदालत की चौखट पर पहुंचा था.