2019 के चुनावों में संभावित ‘हेरफेर’ संबंधी शोध-पत्र के लेखक का अशोका यूनिवर्सिटी से इस्तीफ़ा

हरियाणा के सोनीपत स्थित निजी अशोका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. वह एक शोध-पत्र के लिए चर्चा में हैं, जिसमें उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में ‘हेरफेर’ की संभावना का आरोप लगाया था, जिसके बाद भाजपा 2014 की तुलना में अधिक अंतर के साथ सत्ता में वापस आई थी.

कविता सिंह: जिन्होंने भारत के कला इतिहास को दर्ज करने का महत्वपूर्ण काम किया

स्मृति शेष: भारतीय कला, संग्रहालयों की मर्मज्ञ इतिहासकार और जेएनयू शिक्षक कविता सिंह रीढ़विहीन होती जा रही भारत की अकादमिक दुनिया में उन बिरले लोगों में से थीं, जिन्होंने अकादमिक स्वायत्तता का पुरज़ोर समर्थन किया. अकादमिक दुर्दशा के हालिया दौर में उनका असमय चले जाना बड़ी क्षति है. 

अमेरिकी रिपोर्ट में 2022 में भारत को ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ देश माना गया

अमेरिकी सरकार द्वारा वित्तपोषित थिंक-टैंक 'फ्रीडम हाउस' ने 'फ्रीडम इन द वर्ल्ड' 2023 संस्करण में भारत को सौ में से 66 अंकों के साथ 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' देश मानते हुए कहा है कि भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों को ख़तरा बना हुआ है, आरटीआई क़ानून कमज़ोर हुआ है, लोकायुक्त संस्थाएं निष्क्रिय हैं और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले हो रहे हैं.

मेलबर्न विश्वविद्यालय के 13 शिक्षाविदों का इस्तीफ़ा, भारतीय उच्चायोग पर हस्तक्षेप के आरोप

मेलबर्न विश्वविद्यालय के ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टिट्यूट के 13 शिक्षाविदों ने कुलपति को भेजे एक पत्र में आरोप लगाया था कि भारतीय उच्चायोग लगातार संस्थान के कामकाज और शोध में हस्तक्षेप कर रहा है. जो विचार भारत सरकार की छवि के अनुरूप नहीं होते हैं, उन्हें प्रोपेगैंडा के तहत लगातार ख़ारिज किया जा रहा है.

भारत समेत वैश्विक स्तर पर अकादमिक स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है: रिपोर्ट

'फ्री टू थिंक 2021' रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारतीय अधिकारियों ने आतंकवाद विरोधी क़ानूनों के तहत शिक्षाविदों और छात्रों को ग़लत तरीके से हिरासत में लिया और उन पर मुक़दमा चलाया गया.

अकादमिक स्वतंत्रता: निजी बनाम सार्वजनिक विश्वविद्यालय

प्रताप भानु मेहता के इस्तीफ़े के बाद हुई बहस के दौरान एक अध्यापक ने कहा कि निजी के मुक़ाबले सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में अधिक आज़ादी है. शायद वे सोचते हैं कि यहां अध्यापकों को उनकी सार्वजनिक गतिविधि के लिए कुलपति तम्बीह नहीं करते. पर इसकी वजह बस यह है कि इन विश्वविद्यालयों के क़ानून इसकी इजाज़त नहीं देते.