जम्मू कश्मीर के शोपियां के अमशीपुरा इलाके में पिछले साल 18 जुलाई को तीन मज़दूरों को आतंकी बताकर मुठभेड़ में सेना द्वारा मार दिया गया था. एसआईटी ने अपने आरोप पत्र में कहा है कि सेना के कैप्टन सहित तीनों आरोपी पुरस्कार के 20 लाख रुपये पाने के लिए ग़लत सूचनाएं देते रहे. हालांकि सेना ने पुरस्कार दिए जाने की बात से इनकार किया है.
बीते जुलाई महीने में भी सेना ने शोपियां ज़िले में तीन आतंकियों को मार गिराने के दावा किया था. तब भी तीनों के परिजनों ने उन्हें आम नागरिक बताया था. मामले की जांच के बाद सेना ने स्वीकार किया कि तीनों युवक राजौरी के रहने वाले थे और मुठभेड़ के दौरान सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून के तहत मिलीं शक्तियों का उल्लंघन हुआ था.
जम्मू कश्मीर के शोपियां में इस साल जुलाई में तीन मज़दूरों को आतंकी बताकर एक मुठभेड़ में मार दिया गया था. प्रशासन द्वारा यह स्वीकार किए जाने के बाद कि तीनों युवक राजौरी के निवासी थे, सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस ने इस मामले में अलग-अलग जांच के आदेश दिए थे.
जम्मू कश्मीर के शोपियां के अमशीपुरा इलाके में इस साल 18 जुलाई को तीन मज़दूरों को आतंकी बताकर मुठभेड़ में मार दिया गया था. जांच के बाद 18 सितंबर को सेना ने स्वीकार किया कि तीनों युवक राजौरी के रहने वाले थे और मुठभेड़ के दौरान आफस्पा के तहत मिलीं शक्तियों का उल्लंघन हुआ था. दोषियों के ख़िलाफ़ हो सकती है कोर्ट मार्शल की कार्रवाई.
सेना ने जम्मू कश्मीर के शोपियां इलाके में बीते 18 जुलाई को तीन आतंकियों के मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया था. हालांकि, 18 सितंबर को सेना ने स्वीकार किया कि तीनों युवक राजौरी के रहने वाले थे और ऑपरेशन के दौरान आफस्पा, 1990 के तहत मिलीं शक्तियों का उल्लंघन हुआ था.
सेना ने जम्मू कश्मीर के शोपियां इलाके में बीते 18 जुलाई को तीन आतंकियों के मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया था. अब डीएनए टेस्ट से राजौरी के तीन परिवारों के उन दावों की पुष्टि हो गई है, जिसमें उनका कहना था कि मुठभेड़ में मारे गए लोग आतंकी नहीं, बल्कि मज़दूर थे.
सेना ने जम्मू कश्मीर के शोपियां इलाके में बीते 18 जुलाई को तीन आतंकियों के मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया था. वहीं राजौरी के तीन परिवारों का कहना था कि मुठभेड़ में मारे गए लोग आतंकी नहीं, बल्कि मज़दूर थे.
जम्मू कश्मीर सरकार ने 2001 से 2016 के बीच कथित फ़र्ज़ी एनकाउंटर, बलात्कार, हिरासत में मौत जैसे 50 मामलों में आरोपित सेना के जवानों के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए केंद्र सरकार से इजाज़त मांगी थी, जिसे स्वीकृति नहीं मिली. आरटीआई के तहत इसकी वजह जानने के लिए किए गए आवेदन के जवाब में केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा है कि वह सेना से जुड़े दस्तावेज़ों के निरीक्षण का आदेश नहीं दे सकता.