सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट से कहा कि वह 2000 से 2012 तक मणिपुर में कथित गै़र-न्यायिक हत्याओं के आरोपी सुरक्षाकर्मियों पर मुक़दमा चलाने की मंज़ूरी देने के मुद्दे पर छह महीने के भीतर फैसला करे. अदालत ऐसी हत्याओं के 1,528 मामलों की जांच की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
साल 2009 को इंफाल में दो व्यक्तियों की हत्या का आरोप मणिपुर पुलिस के कमांडो और 16 असम राइफल्स के जवानों पर लगा था. एनएचआरसी ने पिछले साल मणिपुर सरकार के दावे को ख़ारिज कर दिया था कि मुठभेड़ वास्तविक थी. इसके बाद परिजनों को पांच लाख रुपये का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया गया था.
मणिपुर में 2000 से 2012 के बीच सेना और पुलिस पर 1,528 ग़ैर-न्यायिक हत्याओं के आरोप हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसकी सीबीआई जांच के आदेश दिए गए हैं.
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आफ्स्पा सैन्य बलों को शांति के लिए ख़तरा माने जाने वालों पर गोली चलाने की आज़ादी देता है, लेकिन यह उन्हें फ़र्ज़ी मुठभेड़ या दूसरी तरह के अत्याचार करने का अधिकार प्रदान नहीं करता.
मणिपुर और जम्मू कश्मीर में सशस्त्र कार्रवाई में शामिल सैनिकों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज किए जाने को चुनौती देते हुए 300 से अधिक सैन्यकर्मियों ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी.
पुलिसकर्मियों ने याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि पीठ ने कुछ आरोपियों को पहले ही अपनी टिप्पणी में ‘हत्यारा’ बताया था. कोर्ट ने कहा कि एसआईटी द्वारा इन मामलों में की जा रही जांच पर संदेह का कोई कारण नहीं है.
क्या सैनिकों के ऐसे क़दम को सर्वोच्च अदालत के फैसले की जानबूझकर अवज्ञा माना जाए या आर्मी एक्ट के बुनियादी उसूलों का उल्लंघन? ये याचिकाएं भले राजनीतिक रूप से प्रेरित न हों, लेकिन ग़लत मशविरे का परिणाम लगती हैं. साथ ही यह उस ‘अनुशासन’ के ख़िलाफ़ हैं, जिसका प्रतिनिधित्व भारतीय सेना करती है.
यह क़दम इस बात का संकेत देता है कि सैनिकों को यह लगता है कि आफ्सपा लागू होने के बावजूद उस पर अन्यायपूर्ण तरीक़े से मुक़दमा चलाया जा रहा है. सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला चाहे जो भी आए, मगर ऐसा लगता है कि सैनिक अपने धैर्य के आख़िरी बिंदु पर पहुंच गया है.
मणिपुर में वर्ष 2000 से 2012 के बीच सुरक्षा बलों और पुलिस पर कथित रूप से की गई 1528 फ़र्ज़ी मुठभेड़ और ग़ैर-न्यायिक हत्याओं का आरोप है.
मणिपुर में वर्ष 2000 से 2012 के बीच सुरक्षा बलों और पुलिस पर कथित रूप से की गई 1528 फ़र्ज़ी मुठभेड़ और ग़ैर-न्यायिक हत्याओं का आरोप है.
मणिपुर में सन 2000 से 2012 के बीच सेना और पुलिस पर कथित रूप से 1528 गैर-न्यायिक हत्याएं करने का आरोप है. कोर्ट ने सीबीआई निदेशक से कहा, जांच अधिकारियों की टीम गठित करें.
केंद्र सरकार ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से 1528 कथित फर्जी मुठभेड़ों की जांच के आदेश पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है.