मणिपुर गै़र-न्यायिक हत्या: अभियोग की मंज़ूरी के मुद्दे पर 6 माह में निर्णय का हाईकोर्ट को निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट से कहा कि वह 2000 से 2012 तक मणिपुर में कथित गै़र-न्यायिक हत्याओं के आरोपी सुरक्षाकर्मियों पर मुक़दमा चलाने की मंज़ूरी देने के मुद्दे पर छह महीने के भीतर फैसला करे. अदालत ऐसी हत्याओं के 1,528 मामलों की जांच की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

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(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट से कहा कि वह 2000 से 2012 तक मणिपुर में कथित गै़र-न्यायिक हत्याओं के आरोपी सुरक्षाकर्मियों पर मुक़दमा चलाने की मंज़ूरी देने के मुद्दे पर छह महीने के भीतर फैसला करे. अदालत ऐसी हत्याओं के 1,528 मामलों की जांच की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में 2000 से 2012 तक कथित मुठभेड़ में शामिल सुरक्षा बलों के खिलाफ अभियोग की मंजूरी के मुद्दे पर छह माह के भीतर निर्णय करने का हाईकोर्ट को बृहस्पतिवार को निर्देश दिया.

प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने इस बीच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को अदालत द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) को कुछ अतिरिक्त कार्य सौंपने की अनुमति दे दी.

न्यायालय ने यह निर्णय तब लिया जब उसे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि कथित गैर-न्यायिक मुठभेड़ (Extra Judicial Killing) मामले में एसआईटी की जांच का कार्य पूरा हो गया है.

भाटी ने बताया कि समय-समय पर इस मामले में स्थिति रिपोर्ट (Status Report) दाखिल की जा रही थी और एसआईटी द्वारा जांच किए जा रहे 39 मामलों में से 19 में आरोप-पत्र दाखिल किए जा चुके हैं, जबकि 18 में क्लोजर रिपोर्ट लगाई गई है.

एएसजी ने कहा कि जांच पूरी हो चुकी है, इसलिए एसआईटी के सदस्यों को कुछ अतिरिक्त कार्य करने की अनुमति दी जानी चाहिए.

हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस और मनेका गुरुस्वामी ने इस दलील का पुरजोर विरोध किया कि सभी मामलों की जांच पूरी हो गई है.

दोनों अधिवक्ताओं ने दलील दी कि एसआईटी ने जो जांच की है वह ‘केवल एक हिस्सा है, जबकि शेष हिस्सा अब भी अधूरा है.’

सुनवाई के शुरू में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह इस मामले में सुनवाई पूरी करने में सक्षम नहीं हो सकेंगे. इसके बाद उन्होंने इस मामले को दूसरी पीठ के समक्ष 15 नवंबर को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया. जस्टिस ललित आठ नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, शीर्ष अदालत कथित गैर-न्यायिक हत्याओं के 1,528 मामलों की जांच की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने एक मानवाधिकार संगठन द्वारा दायर एक याचिका पर 14 जुलाई, 2017 को एक एसआईटी का गठन किया था और ऐसी घटनाओं की जांच के लिए एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था.

संगठन ने कहा कि उसने राज्य में सुरक्षा बलों द्वारा किए गए 1528 कथित गैर-न्यायिक हत्याओं पर एक रिपोर्ट तैयार की है.

याचिकाकर्ता की ओर से पेश गोंजाल्विस ने कहा कि एसआईटी द्वारा जांच किए जाने वाले 655 मामलों में से केवल 39 मामलों की जांच की गई है. उन्होंने आरोप लगाया कि बाकी में पूछताछ को छोड़ दिया गया है.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भाटी ने उनके दावों का विरोध किया.

इससे पहले, जस्टिस मदन बी. लोकुर (सेवानिवृत्त), और यूयू ललित, जो अब सीजेआई हैं, की एक पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी और एसआईटी से सेना, असम राइफल्स और मणिपुर पुलिस द्वारा कथित फर्जी मुठभेड़ों के चार मामलों में अंतिम रिपोर्ट उपयुक्त अदालतों में दाखिल करने को कहा था.

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017 में उग्रवाद से प्रभावित मणिपुर में सेना, असम राइफल्स और मणिपुर पुलिस द्वारा की गई कथित गैर-न्यायिक हत्याओं के मामले की सीबीआई जांच का निर्देश दिया था.

यह निर्देश मणिपुर में वर्ष 2000 से 2012 के बीच सुरक्षा बलों और पुलिस द्वारा कथित रूप से की गई 1528 फर्जी मुठभेड़ और गैर-न्यायिक हत्याओं के मामले की जांच और मुआवजा मांगने संबंधी एक जनहित याचिका पर दिया था.

इस मामले पर पहले केंद्र ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. बाद में केंद्र ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल की.

सरकार का कहना था कि शीर्ष अदालत के इस आदेश से सेना की आतंकवाद से निपटने की योग्यता प्रभावित हो रही है. कोर्ट के आदेश का सीधा प्रभाव सेना के उग्रवाद के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों पर पड़ रहा है. इससे सेना का मनोबल गिरेगा.

क्यूरेटिव याचिका में सरकार ने था कि सैन्य अभियान के दौरान की गई कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती और पिछले दो तीन दशकों में जो कार्रवाइयां हुई हैं, उस बारे में अब एक्शन लेने से सेना का मनोबल टूटेगा.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)